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इबोला को समझें

४ अगस्त २०१४

इबोला वायरस एक बार शरीर पर हमला कर दे, तो बचने की उम्मीद बहुत कम होती है. अफ्रीका में इलाज के दौरान संक्रमित हुए एक डॉक्टर की जर्मनी के अस्पताल में मौत गयी. जानिए कैसे फैलता है यह जानलेवा वायरस.

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Ebola Virus Hamburg
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

90 फीसदी मामलों में इबोला के शिकार लोगों की मौत हो जाती है. इसके लिए अभी तक कोई दवा नहीं बन पाई है और न ही टीका. 1976 में पहली बार इबोला के मामले सामने आए. तब से अफ्रीका के कई देशों में इसका कहर फैल चुका है. इस साल 800 से ज्यादा लोग इबोला के हाथ अपनी जान गंवा चुके हैं. माइक्रोस्कोप के नीचे देखने पर यह वायरस धागे जैसा नजर आता है. इसकी कई किस्में होती हैं और कुछ ही हैं जो इंसानों पर हमला करती हैं और यह हमला जानलेवा साबित होती हैं.

पसीने से संक्रमण

इबोला एक संक्रामक रोग है, इसीलिए इबोला के मरीज को सबसे अलग रखा जाता है. लेकिन यह सांस के जरिए नहीं फैल सकता, इसका संक्रमण तभी होता है यदि कोई व्यक्ति मरीज से सीधे संपर्क में आए. मिसाल के तौर पर मरीज के पसीने से यह वायरस फैल सकता है. मरीज की मौत के बाद भी वायरस सक्रिय रहता है. अस्पतालों में इसके फैलने की सबसे बड़ी वजह यह है कि मरीज की मौत के बाद जब उसके रिश्तेदार वहां पहुंचते हैं तो अंतिम संस्कार से पहले लाश को छूते हैं. संक्रमण के लिए यह काफी है. यही वजह है कि जिन अफ्रीकी देशों में इबोला फैला हुआ है, वहां सरकारें लोगों को अंतिम संस्कार के लिए भी शव नहीं दे रही है. जानवरों के जरिए भी संक्रमण होता है. चमगादड़ों को इबोला की सबसे बड़ी वजहों में से एक माना गया है.

बीमारी के लक्षण

इबोला वायरस के शरीर में प्रवेश करने के दो से 21 दिन के बीच मरीज कमजोर होने लगता है. बुखार आता है, लगातार सरदर्द और मांसपेशियों के दर्द की शिकायत रहती है. भूख मर जाती है, पेट में दर्द रहता है, चक्कर आने लगते हैं और उल्टी दस्त भी होते हैं. बहुत तेज बुखार के बाद रक्तस्राव और खून की उल्टियां भी शुरू हो जाती हैं. आंतड़ियों, स्प्लीन यानि तिल्ली और फेंफड़ों में बीमारी फैल जाने के बाद मरीज की मौत हो जाती है.

इबोला वायरस के खिलाफ वैज्ञानिक अब तक कोई टीका नहीं बना पाए हैं और ना ही कोई इसे खत्म करने के लिए बाजार में कोई दवा उपलब्ध है. इसकी रोकथाम का केवल एक ही तरीका है, जागरूकता. विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोशिश है कि लोगों को समझाया जा सके कि इबोला के मामलों को दर्ज कराना कितना जरूरी है.

रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टेराथ/आईबी

संपादन: आभा मोंढे