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दर्द से दवा का सफर

आद्रियान क्रीश्ख/ओएसजे२१ मई २०१५

तबियत खराब होने पर दवा ले ली. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक दवा को विकसित करने में वैज्ञानिक और आम लोग कितनी मेहनत करते हैं? इबोला की दवा इसकी तसदीक कर रही है.

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Afrika Ebola in Guinea (Symbolbild)
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Palitza

पश्चिमी अफ्रीका में 2014 में इबोला ने 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान ली. अब धीरे धीरे यह बीमारी थम रही है. हाल के समय में बहुत कम मामले सामने आए हैं. लेकिन वैज्ञानिक अब भी इसे गंभीरता से ले रहे हैं. वे इबोला के खिलाफ वैक्सीन तैयार कर चुके हैं. अफ्रीका के गैबॉन में इबोला मरीजों पर वैक्सीन के पहले नमूनों का टेस्ट किया जा रहा है.

आम लोगों से मदद

एंटोनिये मागांगा मोम्बो के लिए ब्लड टेस्ट करवाना हर महीने की बात है. 22 साल के मोम्बो पर बीते साल से इबोला की वैक्सीन टेस्ट की जा रही है. उनके खून की नियमित जांच हो रही है. मोम्बो कहते हैं, "मेरे लिए यह आसान है, मैं फिट हूं और यहां लोगों की मदद करना चाहता हूं."

एंटोनिये मोम्बो को मेडिकल स्टडी का हिस्सा बनने पर कोई संकोच नहीं है. हालांकि कई दोस्तों ने उन्हें रोकने की कोशिश भी की. स्टडी से मिले 400 यूरो से वो अपने परिवार की मदद करेंगे. गैबॉन के ज्यादातर लोगों की तरह उनका परिवार भी गरीबी का शिकार है. इबोला ने हालात और बदतर किए हैं. ऐसे में नए टीके का मतलब है नई उम्मीद.

क्या करेगी वैक्सीन

होजे फर्नांडेस गैबॉन में बतौर डॉक्टर काम कर रहे हैं. अब वो दवा के परीक्षण को देख रहे हैं. 60 लोगों पर वह नियमित नजर बनाए रखते हैं. पहले चरण के ट्रायल में सुरक्षा और खुराक की मात्रा टेस्ट की जा रही है. जर्मनी में अपनी दूसरी डॉक्ट्रेट की पढ़ाई छोड़कर होजे फर्नांडेस इस काम में जुटे, "मेरे लिए फैसला आसान था क्योंकि यह अहम चुनौती है. वैज्ञानिक नजरिए से भी इस बीमारी के खिलाफ एक असरदार वैक्सीन खोजना उपयोगी है."

सबसे पहले शरीर के प्रतिरोधी तंत्र को इबोला को एक बीमारी के रूप में पहचानना होगा. इसके लिए पहले शरीर में एक और विषाणु डाला जाता है, जिसमें इबोला वायरस का एक प्रोटीन होता है. प्रतिरोधी तंत्र को इस प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी बनाना होगा. लैब में खून की जांच से पता चलता है कि इसमें कोई समस्या तो नहीं है. जल्द शुरू होने वाले दूसरे चरण में टीके को पश्चिम अफ्रीका में परखा जाएगा.

वैश्विक सहयोग

गैबॉन के रिसर्चर जर्मनी के ट्यूबिंगन मेडिकल कॉलेज के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. यहां के ट्रॉपिकल मेडिसिन इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ इबोला के टीके पर शोध कर रहे हैं. प्रोफेसर बेरट्राम लेल के मुताबिक इस पूरे अभियान को अंतरराष्ट्रीय जगत से अच्छा सहयोग मिला, "जिन चीजों को करने में आम तौर पर सालों लगते हैं, वे महीनों में हो चुकी हैं. जो चीजें महीनों में होती हैं, वे हफ्तों में हो चुकी है. यह सब डब्ल्यूएचओ जिनेवा के कोऑर्डिनेशन से हाथों हाथ हो रहा है. उन्हीं की वजह से यह सब कुछ इतनी तेजी से हो पाया है."

होजे फर्नांडेस के मुताबिक बहुत जल्द पक्के नतीजे दिखाई देंगे. उन परिणामों की मदद से पुख्ता तौर पर कुछ कहा जा सकेगा. परीक्षण सफल रहे तो जल्द ही इबोला के टीके को प्रभावित इलाकों में इस्तेमाल किया जाने लगेगा और इस बीमारी को पश्चिम अफ्रीका से बाहर फैलने से भी रोका जा सकेगा.