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कोमा से बाहर लाएगी स्कैनिंग तकनीक

२८ जून २०१४

हाल ही में फॉर्मूला वन स्टार मिषाएल शूमाखर छह महीने के कोमा से बाहर निकले. वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक ढूंढ निकाली है जिससे कोमा में सो रहे मरीज के दिमाग की हरकतों को समझ उनकी हालत में सुधार का ठीक अंदाजा लग सकेगा.

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Michael Schumacher
तस्वीर: picture-alliance/dpa (Archiv)

दुनिया के सबसे सफल फॉर्मूला वन रेसर 45 साल के शूमाखर को कृत्रिम रूप से कोमा में रखा गया था. एक स्की दुर्घटना में सिर पर गंभीर चोट लगने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें कोमा की स्थिति में रखने का फैसला लिया. मगर ऐसे कई लोग हैं जिनकी कोमा में जाने के बाद वापस होश में आने की संभावना का अंदाजा भी नहीं लग पाता. बेल्जियम के रिसर्चरों ने स्कैनिंग की एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसमें दिमाग की नसों में इंजेक्ट किए गए कुछ खास अणुओं के दिमाग की स्थिति को समझा जा सकेगा. स्कैन में दिमाग के सक्रिय हिस्से प्रकाशित नजर आएंगे. इन्हें देख कर पता चलेगा कि मरीज के कोमाटोज स्थिति से बाहर निकलने की कितनी संभावना है.

लंबे समय तक निष्क्रिय रहने के बावजूद अपने किसी परिवारजन को लाइफ सपोर्ट से हटवा लेने का फैसला लेना किसी के लिए भी आसान नहीं होता. विशेषज्ञ बताते हैं कि कोमा में आ चुके करीब 40 फीसदी मरीजों की हालत का आज भी सही तरह से पता नहीं चल पाता है. ऐसे में पुख्ता आंकड़े और टेस्ट इन परिवारों की काफी मदद कर सकते हैं. इस नई स्कैनिंग तकनीक के विकास पर काम करने वाले लीग यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के कोमा साइंस ग्रुप के निदेशक स्टीवन लॉरीज बताते हैं, "हमारी कोशिश है कि नई तकनीक और ब्रेन स्कैन के इस्तेमाल से हम सीधे तौर पर जान पाएं कि दिमाग में क्या चल रहा है." लॉरीज बताते हैं कि उनके सेंटर पर आने वाले करीब एक तिहाई मामलों में मरीजों का डायग्नोसिस गलत हुआ होता है, इसीलिए दिमाग की सक्रियता को पकड़ने वाली तकनीक की सख्त जरूरत है.

Künstliches Koma hilft Patienten zu überleben
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस नई रिसर्च में दो तकनीकों पर खास ध्यान दिया गया. पहली है फंक्शनल एमआरआई टेस्टिंग, जिसमें डॉक्टर मरीज से बोलकर कुछ शारीरिक गतिविधियां करवाने की कोशिश करते हैं. अगर मरीज निष्क्रिय रहता है तो डॉक्टर अगले चरण में उसके मस्तिष्क की जांच करना चाहते हैं. ऐसा संभव होता है कि कोई मरीज कोमाटोज ना हो, बल्कि केवल पैरालिसिस यानि लकवे का शिकार हो. दूसरा टेस्ट है पीईटी स्कैन. इसमें मरीज के दिमाग में एक खास तरह का द्रव्य इंजेक्ट किया जाता है. लॉरीज बताते हैं, "रेडियोएक्टिव गुणों वाले ग्लूकोज को दिमाग में डालने का मतलब है ढेर सारी ऊर्जा शरीर में जाना. अगर कोई मरीज कोमाटोज है तो इसके बाद भी वह निष्क्रिय रहता है या फिर बहुत कम गतिविधि दिखाता है." लॉरीज कहते हैं कि जिस मरीज के दिमाग में थोड़ी बहुत सक्रियता भी दिखाई देती है, उनकी एक साल के बाद फिर से जांच करके सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है.

पहली बार रिसर्चर दिमाग के अंदर इतनी गहराई तक झांक पाए हैं और चिकित्सा के क्षेत्र में बेल्जियम की इस रिसर्च से बड़ी उम्मीदें जगी है. फिलहाल इसे करीब सौ लोगों पर ही परखा गया है जिसे और ज्यादा लोगों पर टेस्ट करने की जरूरत है. अभी तकनीक महंगी है, लेकिन न्यूरोसाइंटिस्ट आशा कर रहे हैं कि इसे आने वाले समय में सस्ता भी बनाया जा सकेगा. सिर की गहरी चोटों से अपने होश गंवा बैठे लोगों के लिए नई तकनीक किसी वरदान से कम साबित नहीं होगी.

रिपोर्टः रिचर्ड मूरी/आरआर

संपादनः ईशा भाटिया