1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कौन हैं बायोहैकर्स

२९ मई २०१४

बायोहैकिंग या बायोहैकर नाम सुनते ही कंप्यूटर के हैकर दिमाग में आते हैं जो सॉफ्टवेयरों की कमजोरी का फायदा उठा कर किसी के कंप्यूटर को अपने कब्जे में ले सकते हैं. यहां हैकिंग तो है लेकिन एक अलग किस्म की.

https://p.dw.com/p/1C8xC
projekt Biohacker

ये वेबकैम के लेंस को उल्टा कर फिट कर देते हैं ताकि माइक्रोस्कोप बन जाए, वो भी 400 गुना बड़ी इमेज दिखाने वाला. रसोई, टॉयलेट, घर के पिछवाड़े की खंडहर इमारत या फिर गैरेज को भी बायोलॉजी के ये दीवाने प्रयोगशाला में बदल डालते हैं. ये शौक से प्रयोग करने वाले लोग हैं, जो मजे के लिए और एक तरह से बड़ी लैबोरेट्रियों को ठेंगा दिखाने का काम करते हैं.

ये सस्ती चीजों से बायोरिएक्टर बना लेते हैं. पौधों को चमकाने में लगे रहते हैं. इसके लिए खुद चमकने वाले जीवों से इस प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार जीन निकाल कर पौधों में डाल देते हैं ताकि पौधे चमकने लग जाएं. इतना ही नहीं, कुछ बायोहैकर तो यहां तक जाते हैं कि वो मशीन का कोई हिस्सा या फिर चिप अपने शरीर में फिट करवा लेते हैं.
शोध में किफायत के लिए ये उपकरण या तो खुद ही बना लेते हैं या फिर पुराने उपकरण रिसाइकल कर उन्हें और बढ़िया बना देते हैं. इतना ही नहीं अपने उपकरणों को वो ईबे पर बेचते भी हैं. कंप्यूटर हैकरों की तरह सारी दुनिया के बायोहैकर एक दूसरे से जुड़े हैं लेकिन अधिकतर काम अकेले ही करते हैं.

बायोहैकर अलग अलग प्रयोग कर एक दूसरे से साझा करते हैं. कुछ नई एंटीबायोटिक दवाएं खोज रहे हैं तो कुछ मलेरिया की नई जांच का तरीका. कुछ उपकरण कबाड़ी बाजार तो कुछ घर पर ही बनाए जाते हैं. जैसे चूहे के फंदे और वेबकैम से बना माइक्रोस्कोप. उनका मकसद है कि बड़ी कंपनियां ही नहीं, बल्कि सभी शोध कर सकें.

बायोहैकिंग के तहत अमेरिका से भारत तक विज्ञान के शौकीन लोग जुड़े हैं जो अपने सपने को या स्कूल कॉलेजों में की गई पढ़ाई को प्रयोगों में ढालना चाहते हैं और कुछ नए प्रयोग करना चाहते हैं, सस्ते उपकरण बनाना चाहते हैं. और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इन प्रयोगों में शामिल करना चाहते हैं.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः ए जमाल