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क्या गलत व्यक्ति भेजा गया पागलखाने

१९ जुलाई २०१३

जर्मनी में एक व्यक्ति को मनोरोग अस्पताल में भेजे जाने का मामला विवादों में है. क्या न्यूरेम्बर्ग के गुस्टल मोलाथ को इसलिए पागलखाने भेज दिया गया था कि उसने असुविधाजनक सच्चाई बयान की थी? इस हफ्ते अदालत नया फैसला करेगी.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

मोलाथ मनोरोग अस्पताल में गुजर रही अपनी जिंदगी से नफरत करते हैं. वे कहते हैं कि वे "सामान्य जेल" में रहना ही पसंद करते. उन्हें रात को किए जाने वाले कंट्रोल से नफरत है, जिसकी वजह से उनकी नींद टूटती है. उन्हें वहां के खाने से नफरत है, जिसे वे शारीरिक चोट बताते हैं. वे सात साल से बायरॉयथ के प्रादेशिक अस्पताल के मनोरोग विभाग में हैं. हर साल इस मामले के लिए जिम्मेदार हाईकोर्ट इस बात की जांच करती है कि क्या मोलाथ को मनोरोग वाले वार्ड में रखना जरूरी है. अब तक हर साल इस सवाल का जवाब रहा है, हां.

लेकिन इस बीच बहुत से लोग इस फैसले पर शक कर रहे हैं. वे मोलाथ को न्याय प्रक्रिया का पीड़ित समझते हैं या फिर किसी बड़ी साजिश का शिकार, क्योंकि कभी पुरानी चीजों के मरम्मत करने वाले कारीगर रहे मोलाथ काले धन के एक स्कैंडल का पर्दाफाश करना चाहते थे. इंटरनेट में इस मामले पर खासी बहस हो रही है. लोग ब्लॉग लिख रहे हैं, मामले पर अपनी प्रतिक्रिया लिख रहे हैं, इस पर वोटिंग कर रहे हैं कि क्या 56 वर्षीय गोलाथ को छोड़ दिया जाना चाहिए. 44,000 लोगों ने इस बीच मोलाथ के लिए न्याय और आजादी की मांग करने वाले ज्ञापन पर दस्तखत किए हैं.

Gustl Mollath Akten
मोलाथ की फाइलेंतस्वीर: Getty Images

नया मुकदमा

गुस्टल मोलाथ को मनोरोग अस्पताल से छोड़े जाने की संभावना बढ़ गई है, कम से कम फौरी तौर पर. इस हफ्ते बवेरिया के एक हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि मोलाथ को मनोरोग वार्ड में रखे जाने की फिर से जांच की जानी चाहिए. इसी हफ्ते रेगेन्सबुर्ग की क्षेत्रीय अदालत इस बात का फैसला लेगी क्या मोलाथ पर मुकदमे की कार्रवाई दुहराई जाएगी. अगर अदालत यह फैसला लेती है तो मोलाथ नया मुकदमा शुरू होने तक रिहा हो सकते हैं.

आपराधिक मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर हंस कुडलिष का कहना है कि जज मोलाथ के मामले की सख्त जांच करेंगे. "कोई जज ऐसा फैसला नहीं करेगा, जिसके कारण आप मौजूदा वक्त के नजरिए से आलोचना के शिकार बनें." जर्मनी के नामी अखबार ज्युड डॉयचे साइटुंग में लंबे समय से लिखने वाले पत्रकार ऊवे रित्सर इस मामले में अब तक के आरोपों को कानूनी प्रक्रिया की पूरी विफलता मानते हैं.

तलाक का झगड़ा

मोलाथ मामले को समझने के लिए काफी पीछे जाना होगा. 2006 में न्यूरेम्बर्ग की क्षेत्रीय अदालत ने इस साबित हुआ मान लिया कि मोलाथ ने इस बीच तलाकशुदा पत्नी के साथ गंभीर दुर्व्यवहार किया था. इसके अलावा उसने बहुत से लोगों की कारों का टायर फाड़ दिया जिन्होंने तलाक के झगड़े में उसकी पत्नी का साथ दिया. चूंकि एक न्यूरोलॉजिस्ट ने उस समय उसे सनकी बताया था, इसलिए उसे जिम्मेदार लेकिन खतरनाक माना गया और उसे मनोरोग अस्पताल भेज दिया गया. मोलाथ की खतरनाक सनक का सबूत अदालत ने यह दिया कि वह अपने आसपास के सभी लोगों को काले धन के स्कैंडल में शामिल समझता था.

Gustl Mollath Untersuchungsausschuss im Bayerischen Landtag 11.06.2013
एसेंबली के आयोग के सामने मोलाथतस्वीर: picture-alliance/dpa

कालेधन का मामला और उस पर अदालत की प्रतिक्रिया इस मामले को खास तौर पर गंभीर बनाती है. मुकदमे के दौरान मोलाथ ने लगातार धन के संदिग्ध लेनदेन की बात कही थी, जिसमें उसकी तलाकशुदा पत्नी भी लिप्त थी. इसके बारे में उसने कई चिट्ठियों में हीपोफेराइंस बैंक को भी जानकारी दी थी, जहां पेत्रा मोलाथ काम करती थी. मुकदमे के दौरान मोलाथ ने 106 पेज की दलील दी, जिसमें यूगांडा में ईदी अमीन के सैनिक विद्रोह से लेकर चंद्रमा पर उतरने और पिता की कैंसर से मौत की जिक्र था, लेकिन बीच बीच में ठोस आरोप भी थे. हीपोफेराइंस बैंक के कर्मचारियों पर अवैध रूप से धन स्विट्जरलैंड ट्रांसफर करने के आरोप थे. बाद में उसने एफआईआर भी दर्ज कराया.

हीपोफेराइंस बैंक ने अपने लेखा परीक्षकों को आरोपों की जांच पर लगाया लेकिन अदालत हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. जज ने मोलाथ के दलीलों को पढ़ा ही नहीं. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार जब भी मोलाथ कालेधन पर कुछ बोलना चाहते थे, उनके बोलने पर भी रोक लगा दी जाती. कहा गया कि मोलाथ की शिकायत ठोस नहीं थी, उसमें खातों के नंबर, ट्रांसफर किए गए धन की रकम और उसके बारे में जानकारी नहीं थी.ऊवे रित्सर जैसे पत्रकार के लिए वह इतना साफ था कि चाहने पर उसकी जांच की जा सकती थी.

आरोपों की सच्चाई

दुनिया से दूर छह साल तक मोलाथ पागलखाने में बंद रहा. 2012 में कुछ ऐसा हुआ जिसने मोलाथ के मामले को फिर से सुर्खियों में ला दिया. हीपोफेराइंस बैंक की अंदरूनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई. सालों तक बैंक ने उसे दबाकर रखा था. पत्रकार रित्सर के अनुसार उस रिपोर्ट में कहा गया था कि सारे जांचे जा सकने लायक आरोप सही थे और मोलाथ को बैंक की अंदरूनी जानकारी थी.

यह रिपोर्ट ज्युड डॉयचे साइटुंग को दी गई थी. उसमें कर्मचारियों की भारी गलतियों, बैंक के अंदरूनी नियमों और मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट जैसे बाहरी कानूनों की अनदेखी की बात कही गई थी. हालांकि जितने बड़े कालाधन स्कैंडल की मोलाथ ने आशंका जताई थी, वह नहीं था. एक टैक्स अधिकारी ने तो रोजमर्रे में होने वाले चकमे की बात कही. मोलाथ को रास्ते से हटाने के लिए बैंक, अदालत और राजनीति की मिलीभगत से साजिश के सबूत नहीं मिले.

Bezirkskrankenhaus Bayreuth Gustl Mollath
बायरॉयथ का मनोरोग अस्पतालतस्वीर: picture alliance / David Ebener

लेकिन लोगों में शंका थी, सरकार और अदालतों पर दबाव बढ़ गया है. इन सर्दियों में बवेरिया में चुनाव होने वाले हैं, और मोलाथ का मामला मुद्दा बन गया है. 2013 के शुरू में विधान सभा ने एक जांच आयोग का गठन किया. उसने जांच की और सचमुच नई बातें सामने आईं. आयोग ने मोलाथ को भी सुना. जर्मनी के संसदीय इतिहास में पहला मौका था कि संसदीय आयोग ने एक ऐसे व्यक्ति को सुना जिसे पागल और खतरनाक करार दिया गया है.

कानूनी पचड़े

प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि आयोग की सुनवाई के दौरान मोलाथ शांति और एकाग्रता से बोले. हालांकि आयोग में सुनवाई के एक दिन बाद ही बायरॉयथ के क्षेत्रीय अदालत ने घोषणा की कि मोलाथ को मनोरोग अस्पताल में ही रहना होगा. सामान्य सजायाफ्ता अभियुक्त होने पर मोलाथ की सजा कब की समाप्त हो गई होती. लेकिन आपराधिक मामलों के विशेषज्ञ हंस कुडलिष की राय में मेंटल अस्पताल में रखा जाना सजा नहीं , बल्कि समाज की सुरक्षा की कार्रवाई है. "मुकदमे में मोलाथ से खतरे की बात तय हुई. और रिपोर्ट थी कि आजाद होने पर वह इसे दुहरा सकता था. अगर इसे सही मान लें तो ऐसे इंसान को बंद करने के अलावा कोई और उपाय नहीं है."

रेगेंसबुर्ग की अदालत इस मुकदमे पर फिर से विचार करने का फैसला ले सकती है. मामले की फिर से सुनवाई करने की दो अपील अदालत के सामने है. इनमें तीन वजहें बताई गईं हैं. पहला यह कि एक नया गवाह मिला है जिसका कहना है कि मोलाथ की पत्नी ने उसे मेंटल अस्पताल भेजने की बात कही थी. दूसरे यह कि पेत्रा मोलाथ की शारीरिक दुर्व्यवहार की शिकायत कानूनी तौर पर सही नहीं थी. और तीसरे यह कि मोलाथ के सनकी होने की रिपोर्ट संदेहास्पद है.

मुकदमे पर नजर रखने वाले पत्रकार ऊवे रित्सर का कहना है, "गुस्टल मोलाथ के मामले में कानूनी प्रक्रिया ने बहुत सी विश्वसनीयता खो दी है." अब नए मुकदमे से इस भरोसे को फिर से जीतने की कोशिश की जा सकती है.

रिपोर्ट: डियाना पेसलर/एमजे

संपादन: एन रंजन

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