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क्या निराश हो रहे हैं भारतीय

महेश झा८ अप्रैल २०१५

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के एक साल पूरा होने से पहले दबी दबी आवाजें उठाने लगी हैं कि कहां हैं अच्छे दिन. यहां तक कि उद्योग जगत भी शिकायत कर रहा है कि जमीन पर कारोबार करने के हालात बदले नहीं हैं.

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तस्वीर: Getty Images/ Punit Paranjpe

भारत में चुनाव से पहले हर किसी को कोई न कोई उम्मीद थी. लोग मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार से निराश थे और किसी सक्रिय नेता की तलाश में थे. उन्हें बीजेपी में वह पार्टी मिली और नरेंद्र मोदी में वह नेता. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हर तबका बेहतरी की सोच रहा था. विकास के गुजरात मॉडल के देश भर में लागू होने की उम्मीदें थी. दस महीने बाद बहुत से लोग पूछ रहे हैं कि कुछ हो क्यों नहीं रहा है. मधु किश्वर ने मानुषी के एक आर्टिकल के बारे में ट्वीट किया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने वाले एकमात्र पत्रकार फरीद जकारिया भी पूछ रहे हैं क्या प्रधानमंत्री माउंट एवरेस्ट को साफ करने में सफल होंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादे बहुत किए हैं, योजनाएं कई शुरू की हैं, लेकिन उनपर तेज अमल के लिए उनके पास टीम की कमी लगती है. 4600 करोड़ वाली कंपनी मारीको के प्रमुख हर्ष मारीवाला के ट्वीट उद्योग जगत की निराशा झलकाते हैं.

आरपीजी के ग्रुप चेयरमैन हर्ष गोयनका की सरकार से लगी अधूरी उम्मीदें उनके ट्वीटों में झलकती है.

पत्रकार तवलीन सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा है कि फसल खराब होने पर किसानों की आत्महत्या का मामला दिखाता है कि देहातों में असली रोजगार बनाने की जरूरत है.

सोनाली रानाडे ने किसानों की आत्महत्याओं पर अपना आक्रोश कुछ इस तरह व्यक्त किया है.

अच्छे दिन के साथ उम्मीदें जोड़ी जा रही थीं, अब कार्टून बनाए जा रहे हैं.