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पाकिस्तान का उदार चेहरा

१७ मार्च २०१४

कई पाकिस्तानियों को शिकायत है कि उनके देश को पश्चिम में हमेशा असहिष्णु और कट्टरपंथी बनाकर पेश किया जाता है. उनके देश का एक प्रगतिशील चेहरा भी है जिसे मीडिया नहीं दिखाता.

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तस्वीर: Shamil Shams

कई पाकिस्तानी जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में अपनी बुरी छवि के बारे में जानते हैं, कहते हैं कि उनके देश को जानबूझकर खराब पेश किया जाता है. वह कहते हैं कि पाकिस्तान सिर्फ गरीबी, आत्मघाती हमले या महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह रखने वाला देश नहीं है.

कराची में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन पढ़ने वाले तनवीर अहमद दावा करते हैं कि पत्रकारों को पाकिस्तान का सच्चा चेहरा दिखाने में कोई रुचि ही नहीं है. वह कहते हैं, मुझे पक्का पता है कि पाकिस्तान के बारे में आप अच्छी बातों के बारे में चर्चा भी बुरी बातों से जोड़ के ही करेंगे. जैसे मानवाधिकार हनन, तालिबान और अफगानिस्तान. हम दूसरे देशों की ही तरह उदारवादी और रुढ़िवादी दोनों हैं." वहीं महिला पत्रिका द न्यूज के संपादक इराम मुजफ्फर कहते हैं, "आज की दुनिया में इमेज मेकिंग अहम है. यह सच्चाई से भी महत्वपूर्ण है. हमें अपने देश और संस्कृति के बारे में अच्छी चीजें बतानी चाहिए. जैसे कि भारत, जहां कई समस्याएं हैं लेकिन फिर वह अपने मीडिया के जरिए उदारवादी इमेज दिखाने में सक्षम है."

जिंदगी चलती है

यह भी सच है कि हिंसा और इस्लामिक कट्टरपंथ के बीच पाकिस्तान के लोग सामान्य जीवन जीते हैं. नाटक और महफिलें नियमित रूप से सजती हैं. महिलाएं और पुरुष एक साथ घूमते दिखाई देते हैं, आर्थिक रूप से संपन्न लोग सिगरेट और शराब पीते भी दिखाई देते हैं. अहमद पूछते हैं, "कौन कहते हैं कि यहां सिर्फ बंदूकों के साथ दाढ़ी वाले लोग ही रहते हैं. और कौन कहता है कि हमारे यहां मजा और जिंदगी नहीं है." अपनी बात साबित करने के लिए वो बताते हैं कि यहां ऐसे लोग भी हैं जो खाने पीने का मजा लेते हैं. बॉलीवुड के गानों पर यहां लोग नाचते हैं और नए सिनेमाघरों में फिल्में भी देखते हैं.

उम्मीदें कायम

शहरों में रहने वाले गायक, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता अभी के हालात पर चिंतित हैं लेकिन उनकी उम्मीदें बरकरार हैं. उनका कहना है कि पाकिस्तान को इस गड़बड़ी से निकालने का एक ही तरीका है वह है और वहां के नागरिकों को विकल्प देना. इन कलाकारों का कहना है कि ये सिर्फ कला और संस्कृति को आगे बढ़ा कर ही हो सकता है. 29 साल के संगीतकार अहमद मीर कहते हैं, "अगर इस्लामी कट्टरपंथियों के पास बंदूके हैं तो हमारे पास गिटार है. हमें उनसे डर लगता है लेकिन हम बजाते रहेंगें और लोगों का दिल बहलाते रहेंगे. पाकिस्तान को सांस्कृतिक प्रमोशन की जरूरत है. इस्लाम संगीत और कला के विरुद्ध नहीं है." कराची, इस्लामाबाद और लाहौर जैसे शहरों में ओपन माइक इवनिंग का चलन बढ़ रहा है. यहां युवा कलाकार अपना संगीत, कविताएं और गजल पेश करते हैं. पाकिस्तान के लोग शायरी के बारे में बहुत जुनूनी हैं. ऊर्दू साहित्य पढ़ने वाले मसरूर मिर्जा दलील देते हैं कि इस्लामी कट्टरपंथ की टक्कर के लिए उर्दू शायरी से बेहतर क्या हो सकता है."

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तस्वीर: Shamil Shams

यात्रा करने के हिसाब से पाकिस्तान को असुरक्षित माना जाता है लेकिन पाकिस्तानियों का कहना है कि विदेशियों के अपहरण और हत्या की कहानियां बनाई ज्यादा जाती हैं. अमेरिकी और यूरोपीय नागरिक आराम से आते जाते हैं. पेरिस में रहने वाली मारियोन रोलां फिलहाल कराची में रह रही हैं और फ्रेंच कल्चरल सेंटर में काम करती हैं. उन्हें खुशी है कि वह कराची आई. उन्हें लगता है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को पाकिस्तान आना चाहिए और देखना चाहिए कि पाकिस्तान की संस्कृति कैसी है. वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया हमें किस नजर से देखती हैं. एडवर्टाइजिंग एजेंसी में काम करने वाले उमैर काजी कहते हैं, "पाकिस्तान का असली चेहरा दुनिया के सामने लाना जरूरी क्यों है. इससे देश को क्या फर्क पड़ जाएगा. अगर दुनिया के दूसरे हिस्से के लोग सोचते हैं कि हम कट्टरपंथी देश हैं, तो उन्हें सोचने दो."

रिपोर्टः शामिल शम्स/एएम

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन