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"क्यों ना असहयोग आंदोलन छेड़ा जाए"

विश्वरत्न श्रीवास्तव, मुंबई३ फ़रवरी २०१६

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने भ्रष्टाचार के मामलों में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि यदि सरकार भ्रष्टाचार को रोकने में नाकाम रहती है तो नागरिकों को टैक्स का भुगतान नहीं करना चाहिए.

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तस्वीर: Getty Images

1920 में महात्मा गांधी ने तत्कालीन औपनिवेशिक शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया था, तब इसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की थी. आज 96 साल बाद भ्रष्टाचार से व्यथित अदालत ने एक बार फिर असहयोग आन्दोलन छेड़ने की वकालत की है. अदालत ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोगों से एकजुट होकर इसके विरुद्ध अपनी आवाज उठाने को कहा है.

सख्त रुख के पीछे का दर्द

लोकशाहिर अनभउ साथे विकास महामंडल में 385 करोड़ के गबन के एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण चौधरी ने कहा, "अगर हर कोई मिलकर काम करे तो भ्रष्टाचार की दूषित हवा को मिटाया जा सकता है. अगर ये चलती रहे तो करदाताओं को असहयोग आंदोलन चलाकर टैक्स भरने से इनकार कर देना चाहिए." महाराष्ट्र सहित पूरे देश में छोटे बड़े हर काम के लिए आम आदमी को परेशानी उठानी पड़ती है. बड़े बड़े घोटाले तो आम जनता पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं लेकिन जनता को रोजमर्रा के कामों को करवाने के लिए सरकारी बाबुओं को रिश्वत देनी पड़ती है. अदालत की टिप्पणी से सहमति जताते हुए स्मिता नाडकर्णी कहती हैं कि भ्रष्टाचार को रोकने में सरकारें नाकाम साबित हो रही हैं. भ्रष्टाचार को लेकर एक सर्वमान्य सोच यही है कि नगर निगम में रिश्वत दिए बगैर कोई मकान बनाने की अनुमति नहीं मिलती तो जन्म या मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भी प्रभाव या पैसे का सहारा लेना पड़ता है. पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए भी आम लोगों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है. अस्पताल, शिक्षण संस्थाएं, न्यायपालिका और अब तो सेना भी भ्रष्टाचार की जद में है.

Infografik Korruptionsindex 2015 Englisch
भ्रष्टाचार सूचकांक

देश में है बेचैनी

भ्रष्टाचार को लेकर अपनी ही सरकार के साथ असहयोग आन्दोलन छेड़ने की बात भले अदालत ने कही हो पर भारतीय जन मन की इच्छा भी यही है. सामाजिक कार्यकर्ता एसके आनंद कहते हैं कि भ्रष्टाचार से देश का आम आदमी परेशान है. उनका कहना है, "भ्रष्टाचार की जहरीली हवा को खत्म करने के लिए बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी." अन्ना आन्दोलन और नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रचार से भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बना था, लेकिन जो उम्मीद की किरण जगी थी, अब वह खत्म होती जा रही है. एडवोकेट आशीष उपाध्याय का कहना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए कानूनों की कमी नहीं है लेकिन सरकारों में इच्छाशक्ति नहीं है. उनके अनुसार, "राजनीतिक दलों से उम्मीद करना बेईमानी है." प्रबंधन के छात्र प्रमोद पाटिल को लगता है कि जटिल प्रशासनिक संरचना और नौकरशाही के कारण ही भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमाने में कामयाब रहा है. प्रमोद कहते हैं, "सरकार किसी भी पार्टी की हो उसकी कोशिश भ्रष्टाचार रोकने से ज्यादा इसे होता हुआ न दिखाने की होती है."

केंद्र और महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सत्ता में शामिल शिवसेना ने भी भ्रष्टाचार को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में अभिनेत्री और बीजेपी सांसद हेमा मालिनी को करोड़ों रुपये कीमत का भूखंड मात्र 70,000 रुपए में दे दिए जाने पर सवाल उठाया है. नौकरशाही के बहाने को खारिज करते हुए शिवसेना ने तंज कसते हुए कहा, "इस भूखंड को आवंटित करने में नौकरशाही ने कोई रुकावट नहीं डाली. इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि नौकरशाही सरकार की नहीं सुनती."

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक भी भारत में भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आई है. भारत के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स यानी सीपीआई स्कोर में 2014 के मुकाबले सुधार नहीं आया है. तब भी भारत की सीपीआई 38 थी और नई सरकार के आने के बाद भी 38 ही है. सीपीआई में 0 से लेकर 100 तक अंक होते हैं. जिस देश को जितने अंक दिए जाते हैं उस देश में उतना ही कम भ्रष्टाचार होता है. सीपीआई रिपोर्ट के मुताबिक भारत और श्रीलंका के नेता अपने वादों को पूरा करने में नाकाम साबित हुए हैं. भारत की रैंकिंग 85 से 76 हो गई है, लेकिन इस बार सर्वे में 2014 के 176 देशों के मुकाबले 168 देश ही शामिल थे.

भारत का एक बड़ा वर्ग चाहे वह राजनीति से जुड़ा हो या न्यायपालिका, चिकित्सा या समाजसेवा, पुलिस या पत्रकारिता से या फिर आम जनता ही क्यों न हो, सभी भ्रष्टाचार से परेशान हैं. बहुमत की इस परेशानी के बावजूद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सरकारें बहुमत को नजरअंदाज कर रही हैं. ऐसे में सवाल यही उठता है, "सरकार के खिलाफ असहयोग आन्दोलन क्यों न छेड़ा जाए?"