1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

खंडहर बनता भारतीय इतिहास

२३ जुलाई २०१४

लोग दूर दूर के देशों से बनारस देखने पहुंचते हैं. यहां की इमारतें भारत की प्राचीन संस्कृति को दर्शाती हैं. लेकिन एक एक कर ये ढह रही हैं और इन्हें बचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है.

https://p.dw.com/p/1Cgkq
Varanasi am Ganges
तस्वीर: J. Rogers

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी की पहचान है. यहां मुख्य भवन के नाम से प्रसिद्ध स्थापत्य कला की शानदार इमारत का एक और हिस्सा भारी बारिश के कारण धराशायी हो गया. दो शताब्दी से ज्यादा पुराने इस भवन का कोई न कोई हिस्सा रखरखाव के अभाव में प्रति वर्ष धराशायी हो रहा है. रोमन शैली में बनी इस आलीशान ऐतिहासिक इमारत को बचाने के लिए सरकार, विश्वविद्यालय प्रशासन और पुरातत्व विभाग में से कोई भी आगे नहीं आ रहा है.

इसके गिरने के साथ दो शताब्दियों से ज्यादा पुरानी और पत्थरों से तराशी यह धरोहर धीरे धीरे ढह रही है. भले ही यह इमारत रखरखाव के अभाव में जीर्णशीर्ण हो गई हो लेकिन कभी यह ज्ञान, विज्ञान का केंद्र थी. जाने माने संस्कृत के विद्वानों की इस स्थली में कई कक्षाएं चला करती थीं.

इस भवन की नींव अंग्रेज वास्तुविद मेजर मारखम किट्टो की देखरेख में 1848 में पड़ी थी. यह भवन 1852 में बन कर तैयार हुआ. इस इमारत को देश में ग्राफिक शैली का बेहतरीन नमूना माना जाता है. इसमें लगे पत्थरों का भी तेजी से क्षरण हो रहा है. छत में लगी नक्काशीदार शहतीरें गल रही हैं. हॉल के चारों तरफ रोशनदान की जगह लगे बेल्जियम के रंगीन शीशे गिर रहे हैं.

सर्वधर्म सम्भाव का प्रतीक माने जाने वाले इस भवन के मुख्य दरवाजे पर संस्कृत, हिन्दी, अरबी और पाली लिपि में अक्षर गुदे हुए हैं. पूरा भवन उस समय के राजे महराजाओं और जमींदारों के सहयोग से बना था. भवन में उस समय फाल्स सीलिंग का प्रयोग किया गया था जब कहीं इसका प्रचलन नहीं था. बारिश के पानी को संजोने की प्रणाली का उपयोग भी इस भवन में दिखायी देता है.

जीर्णशीर्ण हो चुके इस ऐतिहासिक भवन के जीर्णोद्धार के लिए समय समय पर चिंता भी प्रकट की गई, योजना भी बनी, मांग भी उठी, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. आज तक इसके संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.

आईबी/एजेए (वार्ता)