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खतरनाक है वोट बैंक की राजनीति

प्रभाकर, कोलकाता१ मार्च २०१६

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में पांच साल या उससे ज्यादा समय से रहने वाले तमाम बांग्लादेशियों को नागरिकता दिए जाने की वकालत की है. लेकिन उनके इस प्रस्ताव पर अंगुलियां उठने लगी हैं.

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गायक गुलाम अली के साथ ममतातस्वीर: DW

राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने राज्य के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए ही यह शिगुफा उछाला है. दरअसल, ममता बनर्जी ने बंगाल में वही दांव चला है जो बीते लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा ने पूर्वोत्तर राज्य असम में चला था. भाजपा ने तब कहा था कि अत्याचार के शिकार हो कर बांग्लादेश से आकर असम में बसने वाले लोगों को नागरिकता देने की कवायद शीघ्र शुरू की जाएगी. अब ममता ने वही प्रस्ताव बंगाल के मामले में दिया है.

राज्य के दस सीमावर्ती जिले मुस्लिम बहुल हैं और वहां अल्पसंख्यकों के वोट ही निर्णायक हैं. ममता की दलील है कि अगर बांग्लादेश से आने वाले लोग राज्य में वैध तरीके से रह रहे हैं और उनके पास तमाम संबंधित दस्तावेज हैं तो उनको नागरिकता देने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. मुख्यमंत्री का कहना था कि नागरिकता देने का जिला अधिकारियों का अधिकार बहाल किया जाना चाहिए. राज्य में लगभग 28 फीसदी मुस्लिम आबादी है और किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता हासिल करने की खातिर उनका समर्थन बेहद अहम है. सीपीएम और कांग्रेस के बीच प्रस्तावित गठजोड़ की काट के तौर पर ही ममता ने अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए यह दांव फेंका है.

An der Grenze zwischen Indien und Bangladesch
भारत बांग्लादेशी सीमातस्वीर: S. Rahman/Getty Images

पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता ने अपने सियासी फायदे के लिए इस मामले में केंद्र पर दबाव डालने का प्रयास किया है. राज्य के खासकर बांग्लादेश से लगे जिलों में जिस तेजी से आबादी बढ़ रही है वह एक खतरनाक संकेत है. राज्य के बाकी इलाकों के मुकाबले इन जिलों में जनसंख्या वृद्धि की दर काफी अधिक है. आम राय यह है कि बीते लोकसभा चुनावों में अल्पसंख्यकों के कुछ वोट भाजपा को भी मिले थे. उनके सहारे ही पार्टी को 17 फीसदी वोट मिले थे. अब ममता उन वोटों को अपनी झोली में खींचना चाहती हैं. विपक्ष ने ममता पर चुनावी फायदे के लिए यह चाल चलने का आरोप लगाया है. विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "दरअसल, कांग्रेस व सीपीएम के बीच प्रस्तावित गठजोड़ से डर कर ही ममता ने यह दांव फेंका है." उनका आरोप है कि अगर ऐसा हुआ तो सीमा पार से होने वाली घुसपैठ कई गुना बढ़ जाएगी.

लेकिन कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि सीमा पार से आने वालों में सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि हिंदू भी हैं. ऐसे में इस कदम को महज मुस्लिम तुष्टिकरण के तौर पर देखना सही नहीं है. समाज विज्ञानी प्रोफेसर अरुणाभ मुखर्जी कहते हैं, "वर्ष 1951 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हिंदुओं की आबादी 22 फीसदी थी जो अब घट कर महज सात फीसदी रह गई है." उनका सवाल है कि आखिर यह हिंदू कहां गए? इसका आसान जवाब है कि यह लोग सीमा पार कर भारत में आ गए हैं.

बांग्लादेश से अवैध तरीके से सीमा पार कर बंगाल में पहुंचने वाले लोगों को नागरिकता देने के किसी भी प्रयास से देश के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में बदलाव का अंदेशा तो है ही, सुरक्षा के लिए भी यह खतरनाक है. अब बंगाल या पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों को शरण देना उचित नहीं होगा. ममता के बयान पर विवाद शुरू हो गया है. लेकिन क्या उनको इसका कोई सियासी लाभ