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मोबाइल टावर से सेहत को खतरा

२३ जनवरी २०१४

शंका पहले भी थी और इस पर काफी विवाद भी हो चुका है, लेकिन अब एक ताजा अध्ययन का कहना है कि मोबाइल फोन के लिए लगाए ऊंचे टावरों से पैदा होने वाला विकिरण आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

मोबाइल फोन के टावर से पैदा होने वाले विकिरण से जो बीमारियों हो सकती हैं उनमें सिरदर्द के अलावा थकान, याददाश्त में कमी और दिल व फेफड़ों की बीमारियां शामिल हैं. यह अध्ययन कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट ने किया है. शोधकर्ताओँ का दावा है कि इन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से कैंसर तक हो सकता है. शोधकर्ताओं ने इन टावरों के आसपास रहने वाले सैकड़ों लोगों से बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. इनमें से कुछ लोग तो उन इमारतों में रहते हैं. जिनकी छतों पर ऐसे टावर लगे हैं. बाकी लोग उनके 50 मीटर के दायरे में रहते हैं.

कोलकाता के केंद्रीय इलाके में ऐसे टावरों का घनत्व बहुत ज्यादा है. इन सबका कहना था कि उनको किसी न किसी बीमारी से जूझना पड़ रहा है. इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि विकिरण की वजह से टावर के पास रहने वाले ज्यादातर लोग किसी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते. बहुत से लोगों को रात को ठीक से नींद भी नहीं आती.

विशेषज्ञों की राय

संस्थान के एक शोधकर्ता आशीष मुखर्जी कहते हैं, "ज्यादातर लोगों का कहना था कि अपने घर से दूर जाने पर उनकी बीमारियों का असर कम हो जाता है. लेकिन घर आते ही वे पहले जैसी हालत में लौट आते हैं." शोधकर्ताओं का कहना है कि इस रिपोर्ट के नतीजों की पुष्टि के लिए और तकनीकी सबूत जरूरी हैं. लेकिन इस मामले पर गंभीरता से ध्यान देना होगा. मुखर्जी कहते हैं, "टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें कोशिकाओं को नष्ट कर कैंसर पैदा करने में सक्षम हैं. इससे दिल की बीमारियां भी पैदा हो सकती हैं."

महानगर के चित्तरंजन नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक जयदीप विश्वास कहते हैं, "टावर के आसपास रहने वाले लोग चौबीसों घंटे विकिरण की जद में रहते हैं. इससे उन लोगों को खासकर बहरापन, अंधापन और मेमोरी लॉस होने की आशंका ज्यादा है." वह कहते हैं कि विकिरण का ब्रेन ट्यूमर से कोई सीधा संबंध है या नहीं, इसकी पुष्टि के लिए अभी और विस्तृत अध्ययन जरूरी है. विश्वास का कहना है कि ऐसे अध्ययनों के होने तक मोबाइल फोन के टावरों को ज्यादा आबादी वाले इलाकों में लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

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मोबाइल टावर के पास रहने वालों को ज्यादा खतरातस्वीर: DW/P. M. Tewari

कैंसर विशेषज्ञ गौतम मुखर्जी कहते हैं, "चौबीसों घंटे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की जद में रहने का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ना लाजिमी है. इससे ब्रेन ट्यूमर भले नहीं हो, कई दूसरी बीमारियां हो सकती हैं." कुछ साल पहले राज्य सरकार ने ऐसे टावरों से पैदा होने वाले विकिरण पर अध्ययन के लिए एक टीम का गठन किया था. उस टीम के सदस्य और आईआईटी, खड़गपुर के प्रोफेसर सुदर्शन नियोगी कहते हैं, "0.92 वाट्स प्रति वर्गमीटर की निर्धारित सीमा सही नहीं है. छह मिनट तक विकिरण की जद में रहने पर शरीर को उसके कुप्रभाव से मुक्त होने में 23 घंटे 54 मिनट लगते हैं. लेकिन जिन इलाकों में टावरों का घनत्व ज्यादा है वहां ऐसा संभव नहीं होता." नियोगी भी इस मामले को गंभीर बताते हुए और अधिक अध्ययन की जरूरत पर जोर देते हैं.

बचाव में दलील

सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन आफ इंडिया के महानिदेशक राजन मैथ्यूज इन टावरों का बचाव करते हैं. वह कहते हैं कि विकिरण का स्तर निर्धारित सीमा के भीतर है और अब तक इसके नुकसानदेह होने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है. राजन कहते हैं, "दुनिया के ज्यादातर देशों के मुकाबले भारत में विकिरण का निर्धारित स्तर कम है. यह स्तर हमने नहीं, सरकार ने तय किया है. अब तक कहीं से इसके उल्लंघन की शिकायत नहीं मिली है."

लेकिन मोबाइल फोन के ग्राहकों की संख्या में वृद्धि के साथ टावरों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. देश के दूसरे शहरों की हालत कोलकाता से बहुत अलग नहीं है. इस ताजा अध्ययन के बाद शुरू हुई बहस के बीच कुकुरमुत्ते की उग रहे इन टावरों पर नियंत्रण के लिए ठोस नियम बनाने और उनकी निगरानी के लिए एक ताकतवर तंत्र का गठन करने की मांग जोर पकड़ने लगी है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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