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खनिज भुलाएगा आतंकवाद

८ जुलाई २०१३

अफगानिस्तान का नाम इस वक्त आतंकवाद से जुड़ा हुआ है लेकिन हाल ही में वहां दुर्लभ खनिज पदार्थों की खोज हुई है. जर्मनी और अफगानिस्तान कच्चे खनिजों के लिए अभी से योजना बना रहे हैं.

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तस्वीर: USDA, ARS, IS Photo Unit

अफगान अधिकारियों के मुताबिक उनके देश में दो अरब यूरो का कच्चा खनिज उपलब्ध है. इसमें लीथियम, लोहा, तांबा, सीसा और जिंक जैसे धातओं के अलावा दुर्लभ धातु भी शामिल हैं जिनका इस्तेमाल कंप्यूटर से लेकर मोटरों तक में होता है. लीथियम और रेयर अर्थ जर्मनी के लिए अहम हैं क्योंकि दोनों का इस्तेमाल जर्मनी में पवनचक्कियों के निर्माण के लिए होता है.

जर्मनी ने हाल में अफगान खनन, तेल और गैस मंत्री वहीदुल्लाह शाहरानी को बर्लिन आने का निमंत्रण दिया. शाहरानी कहते हैं कि अफगानिस्तान खनिज पदार्थों से मुनाफा कमा सकता है. उनका कहना है कि जर्मनी के साथ समझौता करने से फायदा इसलिए होगा क्योंकि जर्मनी में खनिज पदार्थों की खपत काफी ज्यादा है. अफगानिस्तान में अभी से कुछ जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं.

भ्रष्टाचार का क्या होगा

इस वक्त अफगान अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है. लेकिन अब यह बदलने वाला है. शाहरानी मानते हैं कि कच्चे खनिज से दस सालों में हर साल सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत कमाया जा सकेगा.

लेकिन अभी इस मकसद तक पहुंचने में कुछ दिक्कतें हैं. इसमें से एक बड़ी परेशानी है भ्रष्टाचार. अफगानिस्तान में खनन उद्योगों के संगठन ईआईटीआई के जरगोना रासा कहते हैं, "अफगानिस्तान एक संकटग्रस्त इलाका है. सुरक्षा काफी नहीं है. यहां दस प्रांत हैं जिनमें खनिज पदार्थ मिलते हैं लेकिन वहां कंपनियां जिस तरह से काम करती हैं, वह अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा नहीं उतरता." रासा का संगठन इस मामले में अफगान सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है और कोशिश कर रहा है कि इस उद्योग में और पारदर्शिता लाई जा सके.

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तस्वीर: picture alliance / dpa

जर्मन विश्वविद्यालय गीसन में शोधकर्ता आंद्रेयास डिटमान बहुत उत्साहित नहीं हैं. उनका कहना है कि कई दशकों से अफगानिस्तान में कच्चे खनिज के बारे में पता था और इस खबर से सनसनी नहीं फैल रही. अफगान खनिज को उसके मूल्य से ज्यादा भी नहीं आंकना चाहिए क्योंकि आसपास के देशों में भी खनिज है. लेकिन अफगानिस्तान के लिए अहम है कि 2014 में अंतरराष्ट्रीय सेना के जाने के बाद वह अपना भविष्य किसी तरह सुरक्षित करे. हालांकि डिटमान का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय फौज इससे पहले भी अफगानिस्तान के साथ खनिज पर समझौता कर सकती थी.

कहां हैं मूलभूत संसाधन

अफगानिस्तान में आधारभूत संरचना का न होना, यह खनिज निर्यातकों के लिए एक और समस्या है. अफगानिस्तान न तो सागर के पास है और न ही वहां कोई रेल है जिससे सामान को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जा सके. निवेशकों को खुद अपना बंदोबस्त करना पड़ेगा. डिटमान के मुताबिक पाकिस्तान से भी सामान भेजना मुश्किल है क्योंकि पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ अपनी सीमाओं को बंद करने में लगा है.

साथ ही निजी निवेश के लिए सही कानून भी नहीं है. इसके लिए 2013 मई में अफगान संसद में विधेयक पर बहस हुई. मंत्री वहीदुल्लाह शाहरानी का मानना है कि गर्मी की छुट्टियों के बाद यह कानून पारित किए जाएंगे और इन्हें लागू किया जाएगा.

अफगान लोगों पर इस तरह के कानून के असर के बारे में सोच रहे जावेद नूरानी कहते हैं कि खनन कानून अब भी विवादास्पद हैं. इंटिग्रिटी वॉच अफगानिस्तान नाम की संस्था चला रहे नूरानी कहते हैं कि मंत्रिमंडल को ऐसे कानून पर बहस करने में वक्त लगता है. उन्हें डर है कि विदेशी खनन कंपनियों उनके देश आएंगी और सबकुछ लूटकर चली जाएंगी. अभी से भारत, अरब अमीरात, अमेरिका, कनाडा, पोलैंड और जर्मनी जैसे देश दिलचस्पी ले रहे हैं. जल्द ही जर्मनी इस संदर्भ में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करना चाहता है.

रिपोर्टः वसलत हसरत नजीमी/एमजी

संपादनः आभा मोंढे

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