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खाड़ी में डाकू रानी का आतंक

१९ अप्रैल २०१३

बंगाल की खाड़ी में समुद्री डाकुओं ने अपना अड्डा बना लिया है. वो लगातार मछुआरों को लूट रहे हैं और फिरौती के लिए उनका अपहरण कर रहे हैं. कुछ मछुआरों को जान से भी हाथ धोना पड़ा है. पिछले महीने एक हमले में 32 लोग मारे गए.

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तस्वीर: picture alliance/ZB

बंगाल की खाड़ी में एक हफ्ते तक मछली मारने के बाद बांग्लादेशी मछुआरों का एक दल चटगांव के नजदीक अपने गांव छनुआ लौट रहा था कि उन पर डाकुओं ने हमला कर दिया. उन्होंने मछुआरों पर गोलियां चलाई और तीन नावों को अपने कब्जे में ले लिया. तीन मछुआरे तो इस घटना से बचकर पानी में कूद गए और खुद को बचा लिया लेकिन बाकी 32 लोगों का डाकुओं ने अपहरण कर लिया. इतना ही नहीं उनकी मछलियां, जाल, मोटर वाली नाव और जनरेटर सब कुछ लूट लिया. इस हमले के एक हफ्ते बाद बांग्लादेश की नौसेना और तट रक्षकों को 23 अपहृत मछुआरों के शव मिले. इन लोगों के हाथ और पैर बंधे हुए थे.  

छनुआ के नूर हुसैन अपने साथ के तीन मछुआरों के साथ बच गए थे. उन्हें विश्वास नहीं होता कि अपहृत मछुआरों में से कोई जिंदा होगा. नूर हुसैन को भी भागते हुए गोली लग ही गई. उन्होंने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया, "हमले के दौरान हम तीनों समंदर में कूद गए और तीन घंटे तक तैरते रहे. फिर हमें दूसरे मछुआरों ने बचाया. "मैंने 30 में से कुछ डाकुओं को पहचान लिया. इनमें से अधिकतर दूसरे तटीय गांवों के थे. मिले शवों से साफ है कि हमारे लोगों को समंदर में फेंकने से पहले डाकुओं ने उनके हाथ पैर बांध दिए होंगे ताकि वह तैर कर बच नहीं सके. मुझे तो लगता है कि उन्होंने हमारे बाकी साथियों को भी इसी तरह मार डाला."

क्यों गई जान

Cox`s Bazar: Fischer an der Küste von Bangladesh
तस्वीर: AP

मछुआरों का एक दल कोक्स बाजार में नावों पर निकलने के तैयार है. यहां के स्थानीय पुलिस अधिकारी बाबुल अख्तर के मुताबिक पुलिस को बढ़े अपराधों से चिंता है. "मछुआरों के जाल, मशीनें लूटने और फिरौती के कई मामले बंगाल की खाड़ी में हुए हैं. लुटेरे इन मछुआरों से फिरौती की भी कई बार मांग करते हैं और मांग पूरी नहीं होने पर अक्सर अपहृत लोगों को मार देते हैं. लेकिन हमने अभी तक एक हमले में इतने मछुआरों को मारने की बात नहीं सुनी थी. इस बार उन्होंने बहुत ही क्रूर तरीके से इन लोगों को मारा. हमें लगता है कि जब डाकुओं को ये पता लगा कि मछुआरे उन्हें पहचान गए हैं और वे उनके बारे में बता देंगे तो उन्होंने इन्हें मार डालने का फैसला किया."  

डाकुओं की रानी

गांव लौटने पर हुसैन और उनके दो मछुआरे साथियों ने डाकुओं की पहचान की. साफ हुआ कि पड़ोसी गांव कुदुक्खली की 40 साल की रहीमा खातून ने ही हालिया हमला किया था.

तीन में से एक बड़ी नाव के मालिक जफर आलम ने बताया कि रहीमा ऐसे परिवार से आती हैं जो मछुआरों से डाकू बन गए. इलाके में वह एक दशक से डाकुओं की रानी कही जाती है. उन्होंने बताया, "उनके भाई और कई और रिश्तेदार खतरनाक लुटेरे हैं. वो समुद्र में लूटपाट करते ही हैं, जमीन पर भी करते हैं और कई लोगों को मारते हैं. रहीमा के हाथ में गैंग की कमान है. हाल ही में उसने लुटेरों के दो छोटे ग्रुपों को अपने साथ मिला लिया ताकि वह समंदर में आतंक मचा सके."

डाकुओं का स्वर्ग

रहीमा की गैंग स्पीड बोट भी चलाती है और चटगांव के साथ कोक्स बाजार में लूटपाट करती है. कई मछुआरों से वह पैसे भी मांगती है ताकि इस इलाके से उनका कार्गो या नाव आगे जा सके." वे इसे टैक्स कहते हैं. वैसे तो जो भी नावें खाड़ी से गुजरती हैं उन सबसे डाकू रानी पैसे वसूलती है. अगर आप पैसे देने से मना करें या उसके खिलाफ बोलें तो बहुत मुश्किल हो जाती है. कभी कभी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है."

Bangladesch Rohingya Bootsflüchtlinge
तस्वीर: DW/Shaikh Azizur Rahman

मिलीभगत का आरोप

बंगाल की खाड़ी में डाकुओं का हमला काफी दिनों से मुश्किल बना हुआ है. पिछले दो साल में कम से कम लूटपाट के 2000 मामले हुए हैं. कम से कम बनस्खली में मछुआरों के संघ के कार्यकारी यार अली का तो यही मानना है. "अधिकतर मामलों में मछलियां, जाल और मशीनें लूट ली जाती हैं. लेकिन कई मामलों में घटना दुखद हो जाती है. पिछले दो साल में 27 मार्च से पहले चटगांव के कम से कम 70 मछुआरे मार दिए गए. अगर पूरे देश की बात करें तो यह संख्या कम से कम 150 होगी. ताजा हमले के बाद जब डाकू कोक्स बाजार के महेशखली में छिपे थे तो हमने पुलिस को बताया था. लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई ही नहीं की."

हालांकि कोक्स बाजार के पुलिसकर्मी बाबुल अख्तर का कहना है कि डाकुओं को खाड़ी में पकड़ना लगभग असंभव है." खाड़ी की भौगोलिक स्थिति बहुत प्रतिकूल है. अगर हम छोटी टीम के साथ उन्हें पकड़ने का अभियान शुरू करें तो हम इसमें कभी सफल नहीं हो सकेंगे. क्योंकि वह ऐसी जगह है जो चारों ओर खुली है. और अगर हम बड़ी ताकत के साथ उन्हें पकड़ने जाएंगे तो उन्हें पहले से सूचना मिल जाएगी और वह समंदर की ओर भाग जाएंगे."

लेकिन मछुआरा संघ के नेता इस दलील से सहमत नहीं. "हमने जब पुलिस को डाकुओं के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा तो हमें उन्हें रिश्वत देनी पड़ी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए डाकुओं से उन्होंने दुगनी रिश्वत ली. संघ के प्रमुख अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें पुलिस का डर है. "पुलिस और दूसरी सुरक्षा एजेंसियां निश्चित तौर पर डाकुओं से कुछ न कुछ लेती हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो वो निश्चित ही इतने हमले नहीं कर पाते."

रिपोर्टः शेख अजीजुर्रहमान, कोलकाता (एएम)

संपादनः महेश झा

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