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गंदा पानी मच्छर का घर

२ फ़रवरी २०१६

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जीका वायरस पर लोक स्वास्थ्य इमरजेंसी की घोषणा कर दी है. अब रोकथाम के कदमों पर विचार हो रहा है. ब्राजील में इसके तेजी से फैलने की खबर है. आखिर मच्छरों से फैलने वाले इस वायरस को कैसे रोका जाए.

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Aedes Aegypti-Mücke
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Thais Llorca

डॉयचे वेले के फाबियान श्मिट ने मच्छर विशेषज्ञ प्रो. नॉर्बर्ट बेकर से बातचीत की और उनसे पूछा कि जीका वायरस फैलाने वाले मच्छरों का सामना किस तरह किया जा सकता है. नॉर्बर्ट बेकर जीव विज्ञानी हैं और सालों से वायरस फैलाने वाले मच्छरों पर शोध कर रहे हैं. वे मच्छरों से फैलने वाली महामारियों की रोकथाम के लिए पालिकास्तरीय कार्यमंडली के वैज्ञानिक निदेशक हैं.

डॉयचे वेले: इन खतरनाक मच्छरों से कैसे लड़ा जा सकता है?

नॉर्बर्ट बेकर: खास तौर पर खतरनाक अफ्रीका और एशिया के टाइगर मच्छर हैं. मच्छरों की ये प्रजाति वायरस फैलाती है. संभवतः वह जीका वायरस भी फैला सकती है. घरेलू मच्छरों की तरह टाइगर मच्छर भी बारिश के पानी में और गड्डों में जमा पानी में जीता है. वहां मादा मच्छर पानी के उपरी हिस्से में अंडा देती है और जब पानी का स्तर बढ़ता है तो अंडों से लार्वा निकलता है. इन मच्छरों के पैदा होने को रोकने के लिए जरूरी है कि घर के आस पास कहीं पानी जमा न होने दिया जाए. चाहे पौधों का गमला हो, या फूलों का वाज, पानी का बाल्टी हो या फूलों में पानी पटाने का बर्तन, उनमें बेकार पानी जमा हो सकता है.

चूंकि अंडे से पूरे जीव तक मच्छरों का विकास बहुत तेजी से होता है, इसलिए इन जगहों को साफ रखने की जरूरत हैं जहां वे पल बढ़ सकते हैं. वर्षा का पानी जमा करने के टब को ढक कर रखा जाना चाहिए ताकि मादा मच्छरों को पानी के उपरी सतह पर अंडे देने की जगह न मिले. इसके अलावा पानी में लार्वा को मारने के लिए बीटीआई नामक का रसायन भी इस्तेमाल किया जा सकता है जो टैबलेट के रूप में मिलता है.

Deutschland Prof. Norbert Becker KABS e.V.
प्रो. नॉर्बर्ट बेकरतस्वीर: privat

बीटीआई क्या है?

बीटीआई का मतलब है बासिलस थुरिजिंसिस इजराएलेंसिस. इस बैक्टीरिया का पता 1946 में नेगेव के मरुस्थल में एक पूल में चला था. यह प्रोटीन का उत्पादन करता है.यदि मच्छरों के लार्वा इसे खा लेते हैं तो वे मर जाते हैं.

मच्छरों के लार्वा को मारने के लिए बीटीआई को कितने दिन तक इस्तेमाल करना होता है?

पर्यावरण में प्रजातियों के विकास की दो रणनीतियां होती हैं. गाय की प्रजाति जीवित रहने के लिए प्रति साल और प्रति हेक्टेयर मैदान एक बछड़े को जन्म देती है. बछड़े लंबे समय तक अपनी मां के पास सुरक्षित रहते हैं. इसके विपरीत मच्छर अच्छी मांएं नहीं होती. वे प्रकृति को अपने बच्चों से भर देती है. यदि हर मादा 200 अंडे दे, और उनमें से 99 प्रतिशत मर जाएं फिर दो मच्छर बचते हैं, जो 200-200 अंडा देते हैं. इन्हें आर रणनीतिकार कहा जाता है, जो भारी संख्या में संतान पैदा कर प्रजाति के जीने को संभव बनाते हैं. इसलिए इंसानी प्रयासों का नतीजा यह नहीं होता कि मच्छरों की संख्या में भारी कमी हो. हमें हर साल उन्हें मारने के लिए कदम उठाना पड़ता है, क्योंकि वे जल्द ही मरे हुए मच्छरों की भरपाई कर देते हैं.

जीका, डेंगी या चिकुनगुनिया वायरस से लड़ने के लिए पर्यावरण सम्मत कदम जरूरी है. उन जगहों को खत्म करने की जरूरत है जहां मच्छर पल बढ़ सकते हैं. हर छोटी और बड़ी गंदे पानी की जगह. यह दवाओं के इस्तेमाल से बेहतर है. इसके लिए लोगों को बताना होगा कि मच्छर कहां पैदा होते हैं और कैसे बढ़ते हैं और उसके खिलाफ क्या किया जा सकता है. यदि हर कोई मच्छरों के खिलाफ कदम उठाने को तैयार हो तो वे इंसान के सामने टिक नहीं सकते.

हाइडेलबर्ग निवासी प्रो. नॉर्बर्ट बेकर जीव विज्ञानी और मच्छर विशेषज्ञ हैं. 1981 से वे मक्खियों से पैदा होने वाली महामारियों के खिलाफ म्यूनिसिपल एक्शन ग्रुप के वैज्ञानिक निदेशक हैं.

इंटरव्यू: फाबियान श्मिट