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गोल से ज्यादा कार्ड दिख रहे हैं वर्ल्ड कप में

अनवर जे अशरफ (संपादनः ओ सिंह)१६ जून २०१०

जर्मनी जीत गया. इंग्लैंड नहीं जीत पाया. मेसी का जादू चल पड़ा और रोनाल्डो के मैच का इंतजार है. मैच के नतीजे आने लगे हैं और अंक तालिका में टीमें इधर उधर सरकने लगी हैं. लेकिन मैचों से ज्यादा इस बार चर्चा है कार्डों की.

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तस्वीर: AP

ऐसे कार्ड, जो किसी भी फुटबॉलर के लिए बुरे सपने की तरह आते हैं और ऐसे कार्ड जो फुटबॉलरों का करियर खत्म कर देते हैं. पीले कार्ड, लाल कार्ड.

इसका कारण है दो नए नियम. अब रैफरियों को कड़ी नज़र रखने को कहा गया है. एक तो कि अगर कोई खिलाड़ी दूसरी टीम के खिलाड़ी का शर्ट भी पकड़ता है तो रैफरी को कार्ड दिखाना है. अगर कोई खिलाड़ी फाउल दिखाने के लिए गिर जाता है, जब कि दूसरे डिफेंडर ने उसे छुआ भी नहीं है, तब भी रैफरी को कार्ड दिखाने के निर्देश दिए गए हैं.

पिछले वर्ल्ड का आखिरी मैच खेल चुके फ्रांस के जिनेदिन जिदान बड़ी उम्मीद लेकर अल्जीरिया और सर्बिया का मैच देखने पहुंचे. अल्जीरियाई मूल के जिदान को इस टीम से बड़ी उम्मीद रही होगी लेकिन 72वें मिनट में वही हुआ, जो 2006 फाइनल में उनके साथ हुआ था. अल्जीरिया के अब्दुल कादिर ग़ज़ाल को रेड कार्ड मिल गया और 10 खिलाड़ियों पर आ टिकी टीम दबाव नहीं झेल पाई और गोल खा बैठी. टीम का वही हश्र हुआ, जो जिदान की फ्रांस का फाइनल में हुआ था. अल्जीरिया हार गया.

WM100613 Ghana Serbien Weltmeisterschaft Südafrika Flash-Galerie
तस्वीर: AP

फीफा वर्ल्ड कप 2010 में तीन दिनों के खेल के बाद गोल से ज्यादा कार्ड मिल रहे हैं. आठ मैचों में सिर्फ 13 गोल हुए लेकिन 34 बार कार्ड दिखा दिए गए हैं, जिनमें से चार लाल कार्ड हैं. उरुग्वे के निकोलस लोडिरो इस वर्ल्ड कप में दो येलो कार्ड की वजह से रेड कार्ड देखने वाले पहले फुटबॉलर रहे, तो ऑस्ट्रेलिया के टिम केहिल को दो पीले कार्ड की बजाय सीधे रेड कार्ड ही दिखा दिया गया.

पीले कार्डों की तो बात ही मत पूछिए. आठ मैचों में 30 बार रेफरी को हाथ पॉकेट तक ले जाना पड़ा है. इंग्लैंड और अमेरिका के बीच बेहद धक्का मुक्की वाला खेल हुआ और दोनों टीमों के तीन तीन खिलाड़ियों को येलो कार्ड दिखा दिया गया. फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ने भी तीन तीन बार येलो कार्ड देख लिया है, जबकि सात देशों के खिलाड़ियों को दो दो बार पीला कार्ड दिखाया गया है. अर्जेंटीना, ग्रीस, नाइजीरिया और अल्जीरिया के एक एक खिलाड़ियों को येलो कार्ड दिखाया गया.

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इन सबके बीच एशिया की दक्षिण कोरियाई टीम एक शांत और सहज टीम बन कर उभरी है. पहला मुकाबला 2-0 से जीतने के बाद भी इसके खिलाड़ियों ने खेल भावना को बनाए रखा और ग्रीस के खिलाफ मुकाबले में उसके किसी भी खिलाड़ी को कोई कार्ड नहीं देखना पड़ा है.