1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ग्रीनलैंड में शांति की खोज

२३ मार्च २०१६

पर्यटकों के लिए प्रोग्राम में ग्रीनलैंड की अद्भुत प्रकृति में कई घंटों की ट्रैकिंग भी शामिल है. इस ग्रुप में बिना कुछ बोले और खाए पिए, हर कोई अपने अंदर झांकता है, शांति और एकाग्रता के साथ.

https://p.dw.com/p/1IIEk
Symbolbild Waage Balanceakt
तस्वीर: Fotolia/styf

औद्योगिक पश्चिमी देशों के लोग आध्यात्मिक अनुभवों के लिए सदियों से दुनिया भर की सैर करते रहे हैं. तिब्बत लंबे समय से उनका लोकप्रिय लक्ष्य रहा है. बीटल्स ने 1960 के दशक में गोवा का दौरा कर भारत को लोकप्रिय बनाया और स्टीव जॉब्स तथा मार्क जकरबर्ग की कहानी भी सबको पता है. अब जलवायु परिवर्तन के युग में ग्रीनलैंड पर्यटकों का लोकप्रिय ठिकाना बन रहा है.

अंगांगगक अंगककोरसुआक ओझा हैं. वह सैलानियों को प्रकृति में पसरी शांति के बीच उन्हें अपने आप से रूबरू कराने में मदद करते हैं. वह बताते हैं, "ज्यादातर लोग प्रकृति से नाता खो चुके हैं. आपको और हमें फिर से चलना सीखना होगा, विचारों के जरिए और खासकर भावनाओं के जरिए. लेकिन चूंकि हम इंसान हैं, हमारी सोच हम पर बहुत हावी रहती है."

लोग सुनना ही नहीं चाहते

सैलानियों के कार्यक्रम में बर्फीले इलाकों की सैर भी शामिल है. ग्रीनलैंड का 82 प्रतिशत हिस्सा बर्फ से ढका है. लेकिन ग्लोबल वॉर्मिग की वजह से बर्फ की चादर लगातार सिमट रही है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो अंगांगगक के लिए अत्यंत संवेदनशील है. वे दशकों से संयुक्त राष्ट्र में आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

अंगांगगक अंगककोरसुआक कहते हैं, "हम इंसान किसी टीनएजर जैसे हैं. कल की परवाह नहीं करते, सिर्फ आज की सोचते हैं. मुझे यह सोचकर दुख होता है कि लोग सुनना ही नहीं चाहते. वे सुनते ही नहीं हैं. लेकिन यहां आ कर शायद वे सुनने लगेंगे. और अगर वे अब सुनना शुरू कर दें, तो उनमें बदलाव आएगा. हालांकि अब बहुत देर भी हो चुकी है. यह बर्फ पिघल जाएगी, आपके जीवन के दौरान ही. प्रलय की शुरुआत हो चुकी है. ऐसा प्रलय जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते." इस टूर में हिस्सा ले रहे बहुत से लोगों के लिए पिघलती बर्फ से सामना जिंदगी की भावनात्मक घड़ियों में एक है. यह उन्हें सोचने को मजबूर कर रही है.

आध्यात्म के नाम पर कारोबार?

ईको थेरैपिस्ट शैनिन डॉकरे ने अपना अनुभव बयान करते हुए कहा, "मैं तो रोने को हो उठी. जब बर्फ टूटती है और अलग होती है, तो आप उसकी आवाज सुन सकते हैं. यह जंग की तरह है, तूफान जैसा, बल्कि उससे भी ज्यादा जोरदार, और करिश्माई. मैंने उसे महसूस किया है." वहीं एक अन्य सैलानी मिरांडा स्टॉकमंस जो एक एनर्जी थेरैपिस्ट है, बताती हैं, "मेरे लिए यह अहम बात है कि हमें पता हो कि धरती से किस तरह पेश आना है. हम उससे क्या ले रहे हैं और हमें जितना चाहिए उससे ज्यादा ले रहे हैं. यह जितना ही स्पष्ट होगा, लोग उतनी ही सावधानी और सम्मान के साथ पेश आएंगे.".

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस तरह के टूर पैसा ऐंठने से ज्यादा कुछ भी नहीं. एक ऐसी एडवेंचरस ट्रिप जिसमें खूब पैसा खर्च होता है. यानि आध्यात्म के नाम पर कारोबार. लेकिन ओझा और ग्रुप के सदस्य इसे सही नहीं मानते. अंगांगगक अंगककोरसुआक इसके खिलाफ कहते हैं, "मैं यहां लोगों की जेबों से पैसा ऐंठने नहीं आया हूं. लेकिन यहां आने में खर्च तो होता ही है. यहां कैंप बनाने पर खर्च होता है. यह खर्च तो उठाना ही होगा."

आधी रात में भी यहां सूरज चमकता है. कई घंटों की ट्रैकिंग के बाद पहाड़ की चोटी पर चढ़ना आसान नहीं. लेकिन कोई भी ना नहीं कहता. जब मध्यरात्रि का सूरज और पूर्णिमा का चांद आमने सामने होते हैं, तो एक रस्म होती है, जिसे कोई भूल नहीं पाता. पृष्ठभूमि में वह ग्लेशियर रहता है, जो दुनिया के मौसम के लिए बेहद अहम है.

एसएफ/आईबी