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ग्रीस पर उतावली हो रही हैं जर्मन पार्टियां

१८ जून २०१५

ग्रीस को नई सहायता खेप दिए जाने का फैसला जर्मन संसद में भी होगा. संसद के वित्तीय आयोग के सदस्य हंस पेटर विल्श मैर्केल सरकार से अलग राय रखते आए हैं. वे ग्रीस के साथ वित्तीय सहायता पैकेज पर बातचीत के खिलाफ हैं.

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तस्वीर: dapd

क्लाउस पेटर विल्श सीडीयू सांसद हैं और जर्मन संसद के वित्तीय आयोग के सदस्य हैं. ग्रीस को मदद के मामले में वे सरकार से अलग रुख अपनाते रहे हैं और उनका मानना है कि ग्रीस को यूरोजोन से बाहर हो जाना चाहिए. डीएलएफ की बेटीना क्लाइन ने चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के सांसद क्लाउस पेटर विल्श से बातचीत की. पेश है बातचीत के कुछ अंश.

बेटीना क्लाइन: क्या सब कुछ यूं ही था? क्या सारे प्रयास रोक दिए जाने चाहिए?

विल्श: ग्रीस सरकार में यह रुझान है कि दोषी अपने यहां न खोजकर कहीं और खोजा जाए. यदि आप देखें कि सिप्रास और उनके साथियों ने किस तरह शुरुआत की, जब कट्टर वामपंथियों ने कट्टर दक्षिणपंथियों के साथ सरकार बनाई, इसका स्वागत भी हुआ. फ्रांस की सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव ने इसे बड़ी जीत और एक महत्वपूर्ण मोड़ बताया. हर कहीं सद्भावना थी जिसे उन लोगों ने अपने बर्ताव से खत्म कर दिया. उन्होंने खुद मामले को बंद गली तक पहुंचा दिया है.

जर्मनी की वामपंथी पार्टी का कहना है कि ग्रीस को कोई धन नहीं मिला है, एक बैंक ने दूसरे बैंक को धन बैंकों को स्थिर करने के लिए दिया.

हां, ये आम दलीलें हैं. यदि आप कुल मिलाकर देखें तो एक तिहाई बैंकों को गया. लेकिन ये ग्रीक बैंक थे जिनके पास ग्रीस सरकारी बॉन्ड थे. एक तिहाई ऊंचे जीवनस्तर को बनाए रखने पर खर्च हुआ यानि विदेश व्यापार में घाटे को दूर करने के लिए और एक तिहाई का इस्तेमाल पूंजी पलायन में हुआ. ये धन देश से बाहर ले जाया गया है.

मैं फिर जानना चाहूंगी कि क्या बातचीत चलती रहनी चाहिए या जो कुछ अभी हो रहा है उसमें यह बेतुका है?

ईमानदारी से पूछिए तो मुझे यह अनुचित लगता है कि हम मिस्टर फायमन की तरह मिस्टर सिप्रास के पीछे भाग रहे हैं और उनसे याचना कर रहे हैं कि वे धन ले लें. मुझे यह थोड़ा अजीब लग रहा है.

लेकिन कीमत कितनी होगी? ग्रीस के यूरो जोन से बाहर होने के विरोधी और समर्थक जब तक हो सके ग्रीस को यूरो में रखना चाहते हैं. उनका कहना भी है कि ग्रीस का बाहर निकलना हमारे लिए भी उससे ज्यादा महंगा होगा जितना उसका यूरो में रहना.

मैंने इसका अभी तक कोई गंभीर हिसाब किताब नहीं देखा है. यदि हम देखें कि इस समय कितना धन आग में है, तो उसमें से ज्यादातर खत्म हो चुका. वे उसे वापस नहीं कर सकते हैं. अभी तक कोई सरकार इस तरह दिवालिया नहीं हुई कि कर्ज जीरो हो जाए. थोड़ा बहुत वापस आ ही जाता है लेकिन अधिकांश खो ही चुका है. अब सवाल यह है कि हम गंदे धन में और अच्छा पैसा लगाएं या कहें कि अब बस हुआ. अपनी प्रतिस्पर्धी क्षमता के आधार पर ग्रीस यूरो ग्रुप में रहने लायक नहीं है. सरकार ने संरचना बदलने का जो वादा किया है, वह सालों से पूरा नहीं हो रहा है. वहां कोई सक्षम टैक्स दफ्तर नहीं है, भू पंजीकरण दफ्तर नहीं है. यदि आप यूरोपीय संघ की रिपोर्ट देखें तो 95 फीसदी अनुदान है, ग्रीस को सिर्फ 5 फीसदी वापस करना है, उसके अलावा उसे ईयू और दूसरे देशों के अधिकारियों की मदद मिल रही है. लेकिन वे इसे कर नहीं पा रहे हैं.

आप कहते हैं कि ग्रीस की तरह साझा मुद्रा से बाहर होने की ब्रिटेन में भी प्रतिक्रिया होगी, लेकिन उससे इस प्रोजेक्ट पर सवाल नहीं उठेगा?

ये दो अलग अलग बातें हैं. यदि ग्रीस यूरो से बाहर जाता है और यूरोपीय संघ में बना रहता है तो मेरी नजर में यह सामान्य होगा. जहां तक ब्रिटेन का सवाल है तो वह मेरी नजरों में ज्यादा महत्वपूर्ण है. ग्रीस के मामले में बात यूरोप के दो प्रतिशत सकल उत्पादन की है, लेकिन ब्रिटेन बड़ा हिस्सा है और वहां मामला यह है कि वे यूरोपीय संघ में रहते हैं कि नहीं. वहां मामला यूरो का नहीं, यूरोपीय संघ का है और मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वह संघ में रहे. मैं नहीं चाहता कि हम एक समुदाय हो जाएं जहां सिर्फ सामाजिक कल्याण के मदों का ट्रांसफर आयोजित हो. उसे पहले कमाना भी होगा.

इंटरव्यू: बेटीना क्लाइन/एमजे