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घटता सुंदरबन, बढ़ती चिंताएं

२९ जुलाई २०१०

लगातार गरम होती जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप में तबाही मचा सकती है. बढ़ते जलस्तर से उफनते समंदर अपनी सीमा लांघकर जमीन को आगोश में लेने को बेकरार हैं. दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव क्षेत्र सुंदरबन के डूबने का खतरा.

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तस्वीर: WWF / Roger LeGUen

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बहुत से देशों के स्थानीय पर्यावरण तंत्र पर असर पड़ना शुरू हो गया है. इसका सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है समुद्र तटीय इलाकों पर. समुद्र का बढ़ता जलस्तर धीरे-धीरे इन क्षेत्रों की जमीन को अपने आगोश में ले रहा है. इसका सीधा मतलब है जमीन पर रहने वाली प्रजातियों के रहवास, भोजन, प्रजनन इत्यादि का संतुलन बिगड़ रहा है.

खतरे की घंटी

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 तक भारत और बांग्लादेश के बीच फैले विश्व के सबसे बड़े मैंग्रोव जंगलों में से एक सुंदरबन (जिसे स्थानीय भाषा में समुद्रबन भी कहा जाता है) ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते 15 प्रतिशत तक पानी में डूब जाएगा. इसमें साफ तौर से आगाह किया गया है कि इसके लिए वक्त रहते कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनाई गई तो आने वाले समय में इन क्षेत्रों की जलवायु में भी भयावह परिवर्तन झेलने पड़ सकते हैं.

Bildgalerie Obama in Berlin Klimaschützer vor dem Brandenburger Tor
तस्वीर: AP

यह आशंका 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और उत्तर दिनाजपुर की जिला मानव विकास रिपोर्ट (डीएचडीआर) में जाहिर की गई है जो संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम तथा पश्चिम बंगाल सरकार के विकास व नियोजन विभाग और योजना आयोग के साथ साझेदारी में जारी की गई है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दक्षिण 24 परगना में सुंदरवन अत्यधिक जलवायु परिवर्तन होने से असुरक्षित है और यह अनुमान है कि क्षेत्र के 15 प्रतिशत 2020 तक जलमग्न हो जाएगा. सुंदरबन की उपेक्षा से जलवायु परिवर्तन पर सिर्फ भारत और बांग्लादेश ही नहीं बल्कि वैश्विक प्रभाव पड़ सकता है.

कुछ करना होगा

रिपोर्ट में पाया गया कि मानव विकास संकेतकों के मामले में दक्षिण 24 परगना जिले के अंतर्गत आने वाले सुंदरबन क्षेत्र में अन्य सभी क्षेत्रों के मुकाबले में सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया गया.

इस क्षेत्र में बसे बासंती, कुल्ताली, पाथारप्रतिमा और सागर जैसे छितरे हुए द्वीपों को जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा खतरा है. अत्यधिक गरीब तथा पिछडे इन इलाकों में हालत वैसे ही बहुत खराब हैं ऊपर से मौसम की मार यहां के रहवासियों के जीवन-यापन का ही संकट पैदा कर देगी.

पानी से घिरे इन छोटे द्वीपों पर रहने वाले जैसे तैसे जंगल से उपलब्ध अल्प संसाधनों से जीविका चलाते हैं. बढ़ता पानी इन द्वीपों की मिट्टी काट इन्हें डूबाता जा रहा है जिसमें वजह से इनके शरणार्थी हो जाने का खतरा बना हुआ है.

Klimawandel Eisbär auf Eischolle Freies Format
तस्वीर: AP

ऐसा नहीं है कि सिर्फ इंसान ही इस विपदा के मारे है. अगर सुंदरबन का कुछ हिस्सा पानी में डूबता है तो जंगली जानवर भी बची-खुची जमीन की तरह जाएंगे जिस पर पहले ही इंसान अपना हक जमा चुका है. विलुप्ति की कगार पर खड़े शानदार रॉयल बंगाल टाइगर के अंतिम शरण स्थल सुंदरवन को अपने विशिष्ट प्राकृतिक परिवास और प्रजातियों के लिए विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त है.

जमीन बचाने के इस महासंग्राम में कई दशकों से मैंग्रोव जंगलों और प्राकृतिक नहरों के जाल से समुद्र की लहरों पर लगाम लगाए 'समुद्रबन' के छोटे-बड़े कई द्वीप अब यह लड़ाई हार रहे हैं और धीरे-धीर ऊचे होते जा रहे जलस्तर के आगे नतमस्तक हो रहे हैं.

सौजन्यः संदीप सिसोदिया (वेबदुनिया)

संपादनः ए कुमार

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