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चट्टगांव के क्रांतिकारियों को गांव वाले भी भूल गए

१२ दिसम्बर २०१०

भारत की जंग ए आजादी में चट्टगांव की क्रांति ने इतिहास के पन्नों में तो जगह बनाई और नए विषय की तलाश में जुटे बॉलीवुड की भी उस पर नजर पड़ गई. लेकिन सूर्यो सेन और प्रीतिलता वाडेदार को इलाके के लोग ही भूल गए.

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तस्वीर: AP

हाल ही में सूर्यो सेन की कहानी पर बनी एक फिल्म खेलें हम जी जान से आई तो वक्त की धूल के नीचे दबी चट्टगांव की कहानी ताजा हो गई. लेकिन बांग्लादेश में ढाका चट्टगांव हाईवे की ऊबड़ खाबड़ सड़कों से होकर चट्टगांव में सूर्यो सेन के घर पहुंचे तो वहां एक साइन बोर्ड भी नहीं था जो यह बता सके कि भारत की आजादी का एक नायक यहीं रहता था. घर गिराया जा चुका है और बस एक पत्थर की पट्टी बची है जो बताती है कि 22 मार्च 1894 को सूर्यो सेन का यहीं जन्म हुआ.

Chittagong
अब ऐसा है चट्टगांवतस्वीर: DW/Kumar Dey

इस पट्टी की पीछे इस बात का भी जिक्र है कि 'मास्टरदा' के नाम से मशहूर हुए क्रांतिकारी स्कूल मास्टर सूर्योसेन ने 18 अप्रैल 1930 की चट्टगांव विद्रोह और इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की चट्टगांव शाखा का नेतृत्व किया. जिस जगह कभी 'मास्टरदा' का घर था वहां अब एक दोमंजिला इमारत में महिलाओं और बच्चों का हेल्थ सेंटर है.

मास्टर दा ने चट्टगांव की पुलिस लाइन और सेना की बैरक पर कब्जा करने की योजना बनाई. इसके साथ ही रेलवे लाइन और संचार के माध्यमों को भी खत्म करने की तैयारी थी. इन सबके साथ पहाड़ताली यूरोपीयन क्लब के सदस्य सेना और सरकारी अधिकारियों को मारने की भी योजना थी. क्लब में 'कुत्तों और भारतीयों' के अंदर जाने पर पाबंदी थी.

ब्रिटिश शासन ने 12 जनवरी 1934 को सूर्यो सेन को फांसी दे दी. मास्टरदा के बारे में बताने वाला बस एक ही शख्स मिला जिसके पूर्वज सूर्यो सेन के गांव में रहते थे. समाचार एजेंसी पीटीआई को इसी शख्स ने बताया कि स्थानीय भूमाफिया ने मास्टर दा का घर तोड़ दिया और उसकी जमीन पर कब्जा कर लिया. अंग्रेजों के जिन शस्त्रागारों पर क्रांतिकारियों ने हमला किया उसे भी गिरा दिया गया. इस बंगाली वीर के बारे में बताने वाली एकमात्र पत्थर की पट्टी अवामी लीग की सांसद और फिलहाल संसद की डिप्टी स्पीकर सईदा सजदा चौधरी ने लगवाई.

ब्रिटिश शासन को हिला कर रख देने वाली चट्टगांव की क्रांति को हुए 80 साल बीत चुके हैं. पहले पूर्वी पाकिस्तान रहे बांग्लादेश को नया देश बने भी 39 साल हो चुके हैं लेकिन क्रांतिकारियों को याद करने की किसी को सुध नहीं.

रिपोर्टः पीटीआई/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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