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चांसलर मैर्केल का मुश्किल चीन दौरा

५ जुलाई २०१४

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल चीन का दौरा कर रही हैं. चांसलर की इस सातवीं चीन यात्रा का मकसद यूरोप और एशिया की आर्थिक सत्ताओं के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना है.

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तस्वीर: Bergmann/Bundesregierung/dpa

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए चीन महत्वपूर्ण बाजार है जहां की कंपनियां जर्मन तकनीकी चाहती हैं और देश के लाखों धनी हो रहे लोग आउडी कार से लेकर होम एप्लायंस जैसे जर्मन मालों के दीवाने हैं. मैर्केल के साथ एक उद्यमियों का बड़ा दल भी जा रहा है जिसमें सीमेंस, फोल्क्सवागेन, एयरबस, लुफ्थहंसा और डॉयचे बैंक के बड़े अधिकारी शामिल हैं. सरकारी सूत्रों ने कहा है कि कॉरपोरेट घरानों के अधिकारी इस दौरे पर बड़े समझौतों पर दस्तखत करेंगे.

चीन यूरोप से बाहर जर्मनी का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. पहला नंबर अमेरिका का है. पिछले साल जर्मनी ने चीन को 67 अरब यूरो का सामान बेचा, जबकि चीन से 73 अरब यूरो का आयात किया गया. विदेशी संबंधों पर यूरोपीय परिषद के रिसर्च डायरेक्टर हंस कुंदनानी कहते हैं, "पिछले एक दशक में चीन को जर्मन निर्यात में भारी इजाफा हुआ है." महत्वपूर्ण मोड़ 2008-09 के वित्तीय संकट और यूरो संकट के बाद आया, जब यूरोपीय देशों को जर्मन निर्यात में कमी आई. चीन का बाजार उसके बाद अहम हो गया, चीन को तकनीकी मदद चाहिए, जर्मनी को बाजार चाहिए.

राजकीय सम्मान

अपनी पिछली यात्राओं पर अंगेला मैर्केल ने चीन के तेज आर्थिक विकास की खुल कर सराहना की है. वे अक्सर कहती रही हैं कि संकट का सामना कर रहे यूरोप को वैश्विक बाजार में बने रहने के लिए पुनर्गठन और सुधारों की जरूरत है. चीन जैसे बड़ी आबादी वाले देश तेजी से विकास कर रहे हैं. चीन के प्रधानमंत्री ली केचियांग सोमवार को मैर्केल का पूरे सैनिक सम्मान के साथ स्वागत करेंगे. चीन के प्रोटोकॉल के तहत इसे राजकीय दौरा बताया जा रहा है हालांकि मैर्केल जर्मनी की सरकार प्रमुख हैं.

राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ चांसलर मैर्केल की मुलाकात इस साल नियोजित तीन में से दूसरी मुलाकात होगी. तीसरी मुलाकात इस साल अक्टूबर में बर्लिन में संयुक्त कैबिनेट मीटिंग के तहत होगी. जर्मन कुछ चुनिंदा देशों के साथ कैबिनेट की संयुक्त बैठक करता है जिनमें संबंधों के व्यापक आयाम की चर्चा होती है. इन देशों में भारत भी शामिल है. पिछली बार भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने कैबिनेट के कुछ सदस्यों के साथ इस तरह की बैठक के लिए जर्मनी के दौरे पर आए थे. फ्रांस और इस्राएल के साथ पूरे कैबिनेट के साथ बैठकों होती हैं.

Chinas Premier Li Keqiang Merkel Besuch in Deutschland
ली केचियांग और अंगेला मैर्केलतस्वीर: Reuters

मैर्केल का तीन दिवसीय दौरा 8 करोड़ की आबादी वाले सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू से शुरू हो रहा है. डेढ़ करोड़ की आबादी वाले इस शहर में 160 जर्मन कंपनियों का दफ्तर है. वहां वे जर्मन कार कंपनी फोल्क्सवागेन के ज्वाइंट वेंचर कारखाने का दौरा करेंगी और शहरीकरण पर एक सम्मेलन में हिस्सा लेंगी. चीन के आर्थिक विकास के साथ पैदा हुई सामाजिक समस्याओं पर ध्यान देने के लिए वे घरेलू प्रवासी मजदूरों के बच्चों की मदद करने वाले सोशल सेंटर का भी दौरा करेंगी.

मुश्किल सवाल

राजधानी बीजिंग में होने वाले संयुक्त कारोबारी सम्मेलन में जर्मन पक्ष बाजार में न्यायोचित पहुंच और बौद्धिक संपदा अधिकारों के आदर के मुद्दे उठाएगा. चीन में यूरोपीय वाणिज्य मंडल के योर्ग वुटके कहते हैं कि सबसे बड़ी समस्या बाजार में प्रवेश की बाधाएं हैं. इसकी वजह से यूरोपीय कंपनियों को 2013 में कारोबार में 20 अरब यूरो का नुकसान हुआ. खास कर सेवा क्षेत्र इससे प्रभावित है. चीन में पिछले सालों में ढांचागत संरचना का तेज विकास हुआ है, लेकिन अब विकास की जिम्मेदारी सर्विस और उपभोक्ता सेक्टर पर होगी.

मानवाधिकार जैसे जटिल मुद्दों पर बंद कमरों में चर्चा होगी. जर्मन अधिकारियों का मानना है कि निजी बातचीत चीन पर सार्वजनिक रूप से अंगुली उठाने से ज्यादा कारगर होगा. विवादास्पद मुद्दों की कमी नहीं है. बर्लिन में इस समय चीन के सरकार विरोधी आर्टिस्ट आई वेवे की सबसे बड़ी प्रदर्शनी हो रही है, लेकिन बीजिंग ने उन्हें इसमें हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी है. कूटनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि 2007 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से मुलाकात कर चीन को नाराज करने वाली अंगेला मैर्केल मानवाधिकार के मुद्दों को चीन के साथ जटिल संबंधों में बाधा नहीं बनने देंगी. कुंदनानी कहते हैं, "मानवाधिकारों के मुद्दों पर जर्मनी उतना जोर नहीं दे रहा है जितना दिया करता था." उनका कहना है कि जर्मनी की हैसियत को देखते हुए यह गंवाया हुआ मौका होगा.

प्रेक्षकों के अनुसार और मुश्किल मुद्दा जापान और वियतनाम जैसे पड़ोसी देशों के साथ चीन का इलाकाई विवाद, अमेरिका के साथ तनाव और हॉन्ग कॉन्ग में हाल में हुई लोकतंत्र समर्थक रैली है. बर्लिन में चीन अध्ययन संस्थान के सेबास्टियान हाइलमन कहते हैं, "अभी पारस्परिक संबंधों का स्वर्ण दशक बीता है. लेकिन ये रिश्ते तूफानी रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं."

एमजे/एजेए (एएफपी, डीपीए)