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चांसलर मैर्केल के लिए जर्मनी के मायने

इनेस पोल
२३ जून २०१७

लोगों के लिए "जर्मन" शब्द का क्या मतलब है? जर्मनी के भीतर इस पर खूब बहस हो रही है. चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस पर अपना जवाब दे दिया है, जिसका डॉयचे वेले की मुख्य संपादक इनेस पोल विश्लेषण कर रही हैं.

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Deutschland Angela Merkel mit deutscher Flagge
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler

उम्मीदों का दबाव इस समय अंगेला मैर्केल पर किसी भी दूसरे जर्मन राजनेता से कहीं ज्यादा है. जबसे अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभाला है, उन्हें तर्कपूर्ण बातें करने वाली आखिरी ताकतवर आवाज और पश्चिमी दुनिया की आखिरी संरक्षक के रूप में देखा जा रहा है. मैर्केल को ऐसा एकलौता इंसान भी माना जा रहा है जो यूरोपीय संघ को टूटने से बचा सकता है. उनके साथ ही जर्मनी ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है. इस समय पूरा विश्व जर्मनी की ओर देख रहा है.

लेकिन नई जिम्मेदारियों, महत्व और ताकत के बढ़ने के साथ ही नये डर भी बढ़े हैं. ऐसी पुरानी चिंताएं भी सामने आ रही हैं कि अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जर्मनी बेशर्मी से केवल अपना ही हित साधने की कोशिश करेगा. एक ऐतिहासिक दुविधा एक बार फिर प्रासंगिक हो गयी है: पूरे यूरोप को संभालने के लिए जर्मनी एक छोटा और कमजोर देश होगा, लेकिन बाकियों में शामिल दिखने के लिहाज से वह काफी मजबूत देश है.

क्या रखता है देश को एकजुट?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जर्मनी की नयी वैश्विक भूमिका पर सबका ध्यान है. लेकिन घरेलू मोर्चे पर एक अलग ही बहस केंद्र में हैं. मुद्दा है कि 2017 में "जर्मन होने" का क्या अर्थ है? देश में शरणार्थियों के भारी संख्या में आगमन से पहले भी, जर्मन नागरिक यह बहस करते थे कि उनके देश को एकजुट रखने वाली ताकत क्या है. सबसे ताकतवर धर्म कौन सा है? इस्लाम जर्मनी को कैसे बदल रहा है? शरण और आश्रय की तलाश में आये शरणार्थियों का जर्मनी के वर्तमान और भविष्य की पहचान पर क्या असर होगा?

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इनेस पोल, मुख्य संपादक, डॉयचे वेले

इस जटिल और आवेशपूर्ण बहस के बीच, चांसलर मैर्केल ने एक रोचक प्रस्ताव पेश किया है. आम चुनाव को 100 दिन से भी कम रह गये हैं और जर्मनी में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले टैबलॉयड 'बिल्ड' ने मैर्केल की "जर्मनी की एबीसी" नाम का लेख प्रकाशित किया है. इस लेख पर पाठकों से उनकी प्रतिक्रिया भी मांगी गयी है. इस जटिल मुद्दे को हैंडिल करने का इससे बेहतर और सीधा तरीका शायद हो ही नहीं सकता.

इस बात को सामने रखने के लिए मैर्केल से बेहतर व्यक्ति हो भी कौन सकता है कि जर्मनी संविधानतुल्य अपने बेसिक लॉ के आर्टिकल 1 पर हर हाल में अटल रहेगा. इस आर्टिकल में लिखा है कि "मानव गरिमा का किसी हाल में उल्लंघन नहीं होगा." फिर लेख में आगे चांसलर मैर्केल ने जर्मनी में दोहरी शिक्षा प्रणाली और पसंदीदा भोजन ब्राटवुर्स्ट जैसी हल्की फुल्की बातें भी की हैं. इसी क्रम में वे संघवाद, होलोकॉस्ट को लेकर जर्मनी की सतत जिम्मेदारी और एकीकरण सबकी बातें करती हैं. मैर्केल की एबीसी में आलू, चर्च टावर, "मेड इन जर्मनी" प्रोडक्ट और मुस्लिम - सबको देश का हिस्सा बताया गया है.

विस्तृत सूची

अगर ऐसी अलग अलग तरह की चीजों का एक साथ जिक्र किये जाने को लेकर आप यह सोच रहे हों कि यह एक बेतरतीब लिस्ट है, तो यह सही नहीं होगा. कम से कम मेरे लिए, उन जर्मनों के लिए, जो एक ऐसा उदार देश चाहते हैं जहां सभी तरह की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपराएं हों. जागरुकता, पर्यावरण को लेकर सचेत रहना और बहुलता भी जर्मनों का उतना ही अहम किरदार है, जितना मशरुम चुनना और समय का पाबंद होना.

जाहिर है कि बेहद चतुर राजनेता ने अपनी इस सूची में खुद को बचा सकने के लिए भी कुछ मोहलत रखी है. लेकिन इसे सही मायनों में मैर्केल सरकार के घोषणापत्र जैसा कहा जा सकता है. धार्मिक आजादी पर कोई समझौता ना होना, खुले दिमाग का और लचीला होना भी इस एबीसी का हिस्सा है.