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चिटफंड ने उड़ाई फुटबॉल की रौनक

८ मई २०१३

पश्चिम बंगाल में सक्रिय चिटफंड कंपनियों ने महज आम आदमी के सपनों को ही नहीं लूटा है, इसने फुटबॉल का मक्का कहे जाने वाले कोलकाता के नामी-गिरामी फुटबॉल क्लबों की चमक भी फीकी कर दी है.

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तस्वीर: DW

ज्यादातर बड़े क्लबों से प्रायोजक के तौर पर कोई न कोई चिटफंड कंपनी जुड़ी थी. अब शारदा समूह समेत विभिन्न कंपनियों की ओर से हजारों करोड़ के चिटफंड घोटाले के सामने आने के बाद ऐसी कंपनियां अपना हाथ खींच रही हैं. इससे इन क्लबों के अस्तित्व और फुटबॉल के खेल पर संकट के गहरे बादल मंडराने लगे हैं. इसके साथ ही बंगाल और कोलकाता की पहचान रहे फुटबॉल पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है.

पिछले दिनों चिटफंड घोटाला सामने आने के बाद अब फुटबॉल के मक्का में इस खेल की सूरत और सीरत बदल रही है. इसका सबसे बड़ा नुकसान आईएफए लीग चैंपियन प्रयाग यूनाइटेड एससी को होना तय है. इस क्लब की मुख्य प्रायोजक कंपनी प्रयाग भी चिटफंड के धंधे से जुड़ी है. अब इस कंपनी के भविष्य पर लगे ग्रहण ने क्लब की भावी योजनाओं पर खतरा पैदा कर दिया है. अपने भारी-भरकम बजट के चलते क्लब ने पिछले सीजन में नामी-गिरामी फुटबॉलरों को खरीदा था. क्लब के निदेशक नवाब भट्टाचार्य कहते हैं,"अभी तो हमारा भविष्य अधर में है. प्रायोजक कंपनी अपना वादा पूरा करने को भरोसा दे रही है. लेकिन ट्रांसफर के सीजन में क्या होगा, कहना मुश्किल है.पश्चिम बंगाल में सक्रिय चिटफंड कंपनियों ने महज आम आदमी के सपनों को ही नहीं लूटा है, इसने फुटबॉल का मक्का कहे जाने वाले कोलकाता के नामी-गिरामी फुटबॉल क्लबों की चमक भी फीकी कर दी है." वह बताते हैं कि पिछले साल क्लब का बजट 17 करोड़ था. लेकिन इस साल पैसे कहां से आएंगे?

ईस्ट बंगाल और मोहन बागान जैसे मशहूर क्लबों के साथ भी सह-प्रायोजक के तौर पर चिटफंड कंपनियां जुड़ी हैं. शारदा समूह ने पिछले तीन साल में मोहन बागान में 1.8 करोड़ और ईस्ट बंगाल में साढ़े तीन करोड़ रुपए का निवेश किया था. एक अन्य चिटफंड कंपनी रोजवैली भी ईस्ट बंगाल के साथ जुड़ी है. कोलकाता के ज्यादातर छोटे-बड़े क्लबों को इन चिटफंड कंपनियों से किसी न किसी सहायता मिलती रही है. यही वजह है कि हाल के वर्षों में इन क्लबों में मशहूर फुटबॉलरों को खरीदने की प्रवृत्ति बढ़ी है और इसके लिए भारी-भरकम रकम खर्च की गई है.

Indien Demos pro und contra Chit funds
चिटफंड का भारी विरोधतस्वीर: DW/P. M. Tewari

भारत के पूर्व कप्तान और जाने-माने फुटबॉलर बाइचुंग भूटिया फुटबॉल क्लबों और चिटफंड कंपनियों के जुड़ाव से सहमत नहीं हैं. वह कहते हैं, "इन कंपनियों से मिलने वाले पैसों की बदौलत फुटबॉलरों को भारी-भरकम वेतन मिल रहा था. अब यह खत्म हो जाएगा." उन्होंने कहा कि अगर यह घोटाला पहले सामने आया होता तो उनका क्लब यूनाइटेड सिक्किम भी कम पैसों में बेहतर खिलाड़ियों को खरीद सकता था. भूटिया मानते हैं कि चिटफंड घोटाले से कोलकाता के फुटबॉल क्लबों को भारी झटका लगा है. ईस्ट बंगाल और मोहन बागान जैसे मशहूर क्लबों का मुख्य प्रायोजक विजय माल्या का यूबी समूह है. इसके बावजूद इन क्लबों के पदाधिकारी फुटबॉल के भविष्य पर चिंतित हैं. ईस्ट बंगाल के मैनाक साहा कहते हैं, "हम मजबूर हैं. पैसे आखिर कहां से आएंगे. इस सीजन में महंगे खिलाड़ियों को बरकरार रखना भी मुश्किल लगता है. ऐसे में विदेशी खिलाड़ी कहां से खरीदेंगे?" मोहन बागान के देवाशीष दत्त कहते हैं, "चिटफंड घोटाला फुटबॉल के लिए एक सदमा है. छोटे क्लबों को इसका ज्यादा नुकसान होगा. लेकिन बड़े क्लबों को भी इसका झटका सहना होगा. हमारा बजट निश्चित तौर पर कम हो जाएगा."

पश्चिम बंगाल के 325 क्लब इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन (आईएफए) में पंजीकृत हैं. ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) ने इस घोटाले के बाद ही आई-लीग में खेलनी वाली टीमों को किसी प्रायोजक के साथ अनुबंध करने से पहले उसकी पृष्ठभूमि और पिछले रिकार्ड की पुष्टि करने का निर्देश दिया है. एआईएफएफ के उपाध्यक्ष सुब्रत दत्त कहते हैं, "हम इस घोटाले से चिंतित हैं और नहीं चाहते कि इसका असर फुटबॉल के खेल पर पड़े. फिलहाल परस्थिति पर नजर रखी जा रही है."

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तस्वीर: DW

आम लोग भी चिंतित

कोलकाता में क्रिकेट के मौजूदा दौर में भी फुटबॉल के प्रति लोगों की दीवानगी कम नहीं हुई है. एक फुटबॉलप्रेमी गिरीश मुखर्जी कहते हैं, "यह बहुत बुरी बात है. चिटफंड घोटाले से इस खेल का आकर्षण कम हो जाएगा. हमें विदेशों के मशहूर खिलाड़ी मैदान पर देखने को नहीं मिलेंगे." पूर्व फुटबॉलर सुब्रत भट्टाचार्य कहते हैं, "यहां फुटबॉल पहले कभी चिटफंड कंपनियों पर निर्भर नहीं था. लेकिन अब ऐसा क्यों है ? चिटफंड को किसी फुटबॉलर की कीमत तय करने का अधिकार नहीं होना चाहिए."

फुटबॉल से जुड़े क्लबों, पदाधिकारियों और आम लोगों को फिलहाल यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर यह खेल चिटफंड घोटाले के साए से कैसे और कब तक उबर पाएगा.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: आभा मोंढे

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