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चीन की मुश्किलें - कहीं भूकंप तो कहीं सूखा

२२ अप्रैल २०१०

दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश चीन में पानी की किल्लत से सूखे के स्थिति बनी हुई है. एशिया के सबसे बड़े देश में भले ही दुनिया की बीस प्रतिशत आबादी रहती हो, लेकिन पानी यहां केवल सात प्रतिशत ही है.

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सूखे से बेहाल है चीनतस्वीर: AP

चीन अब तक के सबसे बुरे सूखे से गुज़र रहा है. हालात इतने बुरे हैं कि हांकांग मैं भी इसका असर महसूस किया जा रहा है. यूनान, सिचुआं, गिज्हा़ऊ और गुंग्क्सी जैसे प्रान्तों में करीब ढा़ई करोड़ लोग इस से प्रभावित हुए हैं, यहां पिछले साल अक्टूबर से ही बारिश नहीं हुई है. कृषि के क्षेत्र में साढ़े तीन करोड़ डॉलर का नुक्सान हो चुका है और साथ ही महंगाई भी बढ गई है. ज़्यादातर खेत बंजर हो गए है और बांधों वाली झीलें सूख जाने से बिजली उत्पादन पर भी भारी असर पड़ा है.

चीन की लंज्हाऊ की साइंस अकैडमी के सुन किंग्वाई ने बताया कि सूखे से प्रभावित कई गांवों को खाली कराना पड़ा, क्योंकि सब कुएं सूख चुके हैं. उन्होंने कहा कि कई गांवों में तो घरों में रेत भर चुकी है. "बातें तो बहुत की गईं, पर किया कुछ भी नहीं गया. इसलिए मैं किसी बदलाव की उम्मीद नहीं करता. किसी एक जगह पेड़ लगा देने से सूखा नहीं रुक जाएगा."

China Alltag 2009 Dürre in Henan
चीन के कई इलाके रेगिस्तान में तब्दील हो रहे हैंतस्वीर: AP

पडोसी देश परेशान

चीन के पड़ोसी देश थाईलैंड, विएतनाम, कम्बोडिया, लोस और बर्मा ने चिंता जताई है कि ऐसी स्थिति चीन में मेकोंग नदि पर बने बांध के कारण बनी है. इस नदी पर करीब अस्सी बिजली घर हैं जिन्हें चलाने के लिए चीन यहां चौथा बांध बनाने के काम में लगा है. पड़ोसी देशों को चिंता इसलिए सता रही है क्योंकि वे सब भी इसी नदी के पानी पर निर्भर हैं, और अगर हालात ऐसे ही रहे तो जल्द ही आसपास के देशों में भी सूखा फैल जाएगा. थाईलैंड मैं पहले ही चौदह हज़ार गांव इस से प्रभावित हो चुके हैं.

हालांकि चीन का इस बारे में कहना है कि यह एक प्राकृतिक समस्या है और उसके हाथ में कुछ भी नहीं है. सूखे की स्थिति क्यों बनी है इस पर अटकलें लगाई जा रही हैं. मौसम वैज्ञानिक मौसम में बदलाव को इसका दोष दे रहे हैं, तो भूगोल शास्त्री इसे धरती के नीचे टेक्टॉनिक प्लेटों की हरकत का नतीजा बता रहे हैं. वहीं पर्यावरणविद इसे वन विनाश का परिणाम समझते हैं और राजनेता ग्लोबल वॉर्मिंग का नाम ले कर अपना दामन छुड़ाने में लगे हैं.

Welttag gegen Kinderarbeit - Kirgisen am Karakorum-Highway in Xinjiang in China Flash-Galerie
तस्वीर: dpa

रेगिस्तान में तब्दील हो रहा है चीन

Bauer in China Luhun Major Kanal
बंजर ज़मीन पर खेती करना भी मुश्किलतस्वीर: AP

चीन का हुंशान्देक एक ऐसा इलाका है जो पिछले कई सालों से इंसानी गतिविधियों के कारण रेगिस्तान में तब्दील होता जा रहा है. इसी को रोकने के काम में लगे वांग जियांफेंग ने इस पर नाराज़गी जताई है. उनका कहना है कि कई इलाकों में कम्पनियां पर्यावरण पर ध्यान दिए बिना बस मुनाफे बनाने में लगी हैं. "हुंशान्देक रेगिस्तान अब बीजिंग से केवल दो सौ किलो मीटर दूर ही है. मुझे नहीं लगता की रेत के इस तूफ़ान को रोका जा सकता है. धरती पर लोगों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है. पर्यावरण को नष्ट करने के लिए तो एक ही साल काफी होता है, लेकिन उसे दोबारा ठीक होने में सौ भी कम पड़ते हैं."

सरकार ने लोगों को सूखे की स्थिति से बचाने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं. टैंकर से लोगों तक पानी पहुंचाया जा रहा है. कई जगह नए कुएं खोदे जा रहे हैं, यहां तक कि बादलों में सिल्वर ऑक्साइड डाल कर अप्राकृतिक रूप से बारिश कराने की भी कोशिश की जा रही है. लेकिन इसमें भी कोई सफलता हाथ आती नहीं दिख रही. हवा में नमी न होने के कारण जून तक तो बारिश के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं.

पाइपलाइन पहुंचाएगी रेगिस्तान में पानी

अब एक ऐसे प्रोजेक्ट की बात की जा रही है जिसमें एक पाईपलाइन द्वारा दक्षिणी चीन से सूखे ग्रस्त उत्तर तक पानी लाया जाएगा. उम्मीद जताई जा रही है कि 2014 तक यह पाईपलाइन शुरू हो जाएगी. भूगोलवेत्ता बैर्न्ड विउनेमन जर्मनी के एक रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत कई सालों से चीन में सूखे की स्थिति की जांच कर रहे हैं. उनका कहना है "मैं इस से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं रखता, क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से नहीं किया जा रहा है. इस तरह से पानी के लिए रास्ता बनाने का मतलब है कि आप एक तरफ से कुछ ले कर उसे दूसरी तरफ पहुंचा रहे हैं. अगर इस बात पर ध्यान दिया जाए कि यह कितनी लम्बी दूरी है तो समझ में आएगा कि यह घाटे का सौदा है, क्योंकि भारी मात्रा में पानी रास्ते में ही भाप बन कर उड़ जाएगा. मुझे तो नहीं लगता कि यह योजना सफल हो पाएगी. शायद कुछ समय के लिए यह एक इलाके की परिस्थिति सुधार पाए, लेकिन आगे चल कर दूसरे इलाके के लिए चिंता का विषय बन जाएगी."

ज़ाहिर है, एक बार जब हम प्रकृति को चुनौती देते हैं तो उसका फल तो हमें भुगतना ही पड़ता है. फिलहाल चीन इस मुसीबत से बाहर निकलने की कोशिश तो खूब कर रहा है, कामयाबी मिलेगी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. तब तक के लिए तो उसे आलोचनाओं का सामना करना ही पड़ेगा.

रिपोर्ट: ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे