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चीन की ललक, श्रीलंका को दे मदद

१७ अगस्त २०१०

श्रीलंका में लिट्टे के खात्मे के बाद विकास कार्यों को आगे बढा़ने में जुटी महिंदा राजपक्षे सरकार को चीन बढ़चढ़ कर मदद दे रहा है. श्रीलंका सरकार ने चीन की मदद से दक्षिणी तट पर हंबनटोटा बंदरगाह का पुनर्निर्माण किया है.

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तस्वीर: RIA Novosti

श्रीलंका को समुद्री मार्ग से होने वाले व्यापार का मुख्य केन्द्र बनाने की राष्ट्रपति की योजना के तहत बनने वाला यह चौथा बंदरगाह है. इसे राष्ट्र को समर्पित करते हुए राजपक्षे ने कहा कि भविष्य में यह बंदरगाह देश की समृद्धि का मुख्य आधार साबित होगा. "इससे न सिर्फ जहाज़रानी विभाग और नौसैना मजबूत होगी बल्कि वित्तीय, बैंकिंग एवं अन्य क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे. साथ ही हमारे उत्पादों के लिए विश्व बाजार के दरवाजे भी खुल सकेंगे."

बंदरगाह के निर्माण पर 36 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत आई है. इसकी 80 प्रतिशत राशि बतौर कर्ज चीन के आयात निर्यात बैंक ने दी है. राजपक्षे ने इसके लिए चीन का शुक्रिया अदा किया. इस मदद के रणनीतिक और कूटनीतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए दक्षिण एशिया मामलों की विशेषज्ञ चारु लता हॉग का मानना है कि इस मदद के पीछे चीन का महत्वपूर्ण हित जुडा़ है. उन्होंने कहा, "इससे श्रीलंका पर आर्थिक मामलों में भारत और पश्चिमी देशों का दबाव कम होगा. कूटनीतिक लिहाज से यह श्रीलंका और चीन दोनों के लिए फायदेमंद होगा."

हालांकि सुरक्षा मामलों से जुड़े कुछ भारतीय जानकारों ने चीन की मदद पर चिंता जाहिर की है. इनका मानना है कि चीन ने हिंद महासागर में बंदरगाहों का नेटवर्क खडा़ करने के लिए श्रीलंका के इस बंदरगाह को मदद दी है.

हॉग ने कहा कि भारत की चिंता के सटीक कारण बता पाना मुश्किल है लेकिन उपमहाद्वीप में भारत की अहम भूमिका को देखते हुए उसका रुतबा प्रभावित होने के कारण उसकी चिंता जायज है.

इस बीच श्रीलंकाई अधिकारियों ने बताया कि नए बंदरगाह से जहाजों का आवागमन इस साल नवंबर से शुरू हो जाएगा. इसकी क्षमता के मुताबिक सालाना 2500 जहाज़ यहां से आ जा सकेंगे.

रिपोर्टः एन. थॉमस/निर्मल

संपादनः आभा एम