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चीन-ताइवान का ऐतिहासिक व्यापार समझौता

२९ जून २०१०

मंगलवार को को ऐतिहासिक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए चीन और ताइवान ने गृहयुद्ध के ख़ात्मे के 60 साल बाद आपस की खाई को पाटने की दिशा में एक साहसी क़दम उठाया है.

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चेन यूलीन और चिआंग पिन-कुंगतस्वीर: AP

आर्थिक सहयोग के ढांचे के इस समझौते को दोनों पक्षों ने मील की पत्थर बताया है. दोनों के बीच यह अब तक का सबसे महत्वपूर्ण समझौता है, और उम्मीद की जा रही है कि क्षेत्रीय सहयोग के इस दौर में इस समझौते से व्यापार को काफ़ी बढ़ावा मिलेगा.

ताइवान के प्रतिनिधिमंडल के नेता चिआंग पिन-कुंग ने इस सिलसिले में कहा कि यह समझौता सिर्फ़ द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों के सिलसिले में मील की पत्थर नहीं है, बल्कि इसके साथ दोनों पक्षों ने क्षेत्रीय आर्थिक समन्वय और भूमंडलीकरण की दिशा में एक लंबा क़दम उठाया है. चीनी पक्ष के नेता चेन युलीन ने इसे दोनों पक्षों के लिए लाभकारी फ़ार्मुला बताते हुए इस पर ज़ोर दिया कि यह समझौता सिर्फ़ व्यापार के क्षेत्र के लिए है.

सन 2008 में सत्ता में आने के बाद ताइवान के राष्ट्रपति मा यिंग जेओयु ने चीन के साथ बेहतर संबंधों की नीति की शुरुआत की थी. इस समझौते को उनकी नीति का परिणाम समझा जा रहा है. लेकिन चीन के साथ निकटता के विरोधियों का कहना है कि यह क़दम द्वीप राज्य ताइवान की स्वतंत्रता के लिए ख़तरनाक भी हो सकता है.

सप्ताहांत के दौरान हज़ारों लोगों ने इस समझौते के ख़िलाफ़ ताइपेई में प्रदर्शन किया था. पूर्व राष्ट्रपति ली तेंग हुई का कहना था कि इस समझौते से ताइवान के हितों को नुकसान पहुंचेगा.

ताइपेई के सुखोव युनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्री यांग युंग मिंग का कहना है कि चीन पर आर्थिक निर्भरता बढ़ने से ताइवान के राजनीतिक विकल्प भी घटते जाएंगे.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: राम यादव