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चीन, ताइवान बातचीत को तैयार

१० फ़रवरी २०१४

सालों गृहयुद्ध का दंश झेलने के बाद अलग हुए ताइवान और चीन अब 65 साल के बाद एक दूसरे की ओर अहम कदम उठाने जा रहे हैं. पहली बार दोनों देशों के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल आपसी रिश्ते सुधारने के मुद्दे पर चर्चा करेंगे.

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ताइवान की ओर से मुख्य मध्यस्थ वांग यू ची ने उम्मीद जताई है कि दोनों देशों के बीच एक स्थाई प्रतिनिधि कार्यालय बनाने पर सहमति बन सकेगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस मंगलवार जब चीन और ताइवान के सरकारी अधिकारी बातचीत के लिए एक दूसरे से मिलेंगे तो दोनों देशों के बीच रिश्तों का एक नया अध्याय शुरू होगा. साल 1949 में दोनों देशों के बीच हुए विभाजन के बाद यह पहला मौका होगा जब इतने बड़े स्तर का प्रतिनिधिमंडल मिलकर आपसी रिश्तों को सुधारने पर चर्चा करेगा. 65 साल के बाद भी अब तक चीन ने ताइवान को कभी आधिकारिक रूप से एक स्वतंत्र देश की मान्यता नहीं दी. ताइवान एक स्वतंत्र द्वीप के रूप में अपना कामकाज चलाता आया है. जबकि चीन इतने साल से ताइवान को अपने साथ मिलाने की राजनीतिक कोशिशें करता रहा है.

वैसे तो अब तक बातचीत के मुख्य मुद्दों के बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं आई है. लेकिन ताइवान की ओर से मुख्य मध्यस्थ वांग यू ची ने उम्मीद जताई है कि दोनों देशों के बीच एक दूसरे की सीमा में एक स्थाई प्रतिनिधि कार्यालय बनाने पर सहमति बन सकेगी. साथ ही अंतरराष्ट्रीय संगठनों में ताइवान का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर भी बात होगी. चीन ताइवान को अपने अधिकार क्षेत्र में मानता आया है. चीन की कोशिश रही है कि ताइवान उसकी राजनीतिक सत्ता को स्वीकार कर ले. ऐसा न करने पर चीन ने ताइवान पर हमला कर देने की भी धमकी दी थी. ताइवान पर दबाव बनाने के लिए चीन ने सेना का एक ऐसा जत्था तैनात कर रखा है जो मौका आने पर ताइवान तक को संभावित अमेरिकी मदद रोक सकेगा. अमेरिका ताइवान की सुरक्षा के लिए कानूनी तौर पर प्रतिबद्ध है.

इस तरह की सैन्य तैयारी के बावजूद चीन पिछले दस साल से ताइवान के साथ किसी भी तरह की सीधी मुठभेड़ को टालने की कोशिश करता आया है. तत्कालीन राष्ट्रपति और चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हू जिंताओ के नेतृत्व में ताइवान के प्रति यह नए तरह का रवैया अपनाया गया.

वर्तमान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी जिंताओ के दिखाए रास्ते पर ही आगे बढ़ते दिख रहे हैं. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले साल इंडोनेशिया में एक अंतराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान ताइवान के प्रतिनिधि से कहा था, "हम इन समस्याओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलने नहीं दे सकते."

इसके अलावा अटकलें लगाई जा रही हैं कि बीजिंग इस बात से निराश है कि ताइवान को दिए गए कई तरह के आर्थिक सहयोग के बावजूद वहां की जनता चीन के साथ आने के लिए तैयार नहीं है. चीन चाहता है कि ताइवान व्यापार सेवाओं से संबन्धित एक समझौते में बदलाव लाए जो कि ताइवानी संसद में पिछले काफी समय से अटका हुआ है. इससे चीन के साथ उसके व्यापार संबंध और सुधरेंगे. इसके अलावा चीन सागर में मौजूद कुछ द्वीप भी दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के बीच कई सालों से मतभेद और विवाद का अहम मुद्दा रहा है.

दूसरी ओर दोनों देशों के बीच इस ऐतिहासिक बातचीत के मौके पर ताइवान से चीन पहुंचने की कोशिश कर रहे ताइवानी पत्रकारों और कानूनविदों ने चीन की निंदा की है. उनका कहना है कि उन्हें इस मौके पर चीन जाने का वीजा नहीं दिया गया. ये पत्रकार ताइवान के प्रतिनिधिमंडल के साथ चीन जाने वाले थे.

आरआर/एएम(एपी,डीपीए)

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