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चुनौती है शरणार्थियों का आना

फेलिक्स श्टाइनर/एमजे२० अगस्त २०१५

जर्मनी में पिछले साल के मुकाबले इस साल चारगुना शरणार्थी आएंगे. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इतने शरणार्थी पहले कभी नहीं आए. डॉयचे वेले के फेलिक्स श्टाइनर का कहना है कि यह मौका है कुछ मामूली बातों को याद करने का.

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तस्वीर: Reuters/S. Loos

ईसाई चरित्र वाले यूरोप में शरणार्थियों को आश्रय देना स्वाभाविक होना चाहिए. ईसाई लोग भगवान के बेटे में विश्वास करते हैं जिसने खुद भागकर हत्यारे शासक से जान बचाई थी. इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि नए आनेवाले शरणार्थियों के भरोसेमंद मददगार ईसाई समुदाय के हैं. लेकिन कुल मिलाकर यूरोप को बड़ी संख्या में आते शरणार्थियों से मुश्किल हो रही है.

सभी शरणार्थी नहीं

शरणार्थी अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत स्पष्ट रूप से व्याख्या किया हुआ शब्द है. यही बात जर्मनी में शरण पाने के मौलिक अधिकार की भी है. इसकी निर्णायक शर्त उत्पीड़न है, न कि भेदभाव या आर्थिक मुश्किल. यूरोप आने वाले लोगों का इरादा अच्छा हो सकता है लेकिन आने वाले आधे से ज्यादा लोग शरण पाने की शर्तों को पूरा नहीं करते. वे यह रास्ता सिर्फ इसलिए चुन रहे हैं कि उनके पास और कोई रास्ता नहीं है. जर्मनी की स्थित आपादा में मदद कर रहे डॉक्टर वाली है, जो सबकी मदद करना चाहता है लेकिन कर नहीं सकता. कम घायल लोग छूट जाते हैं भले ही उनको भी दर्द हो रहा हो. इसी तरह पहले युद्धक्षेत्र से आने वाले और उत्पीड़न के शिकार शरणार्थियों की मदद करनी होगी, न कि उनकी जो आर्थिक मुश्किल से बचने के लिए यहां आते हैं.

Steiner Felix
डॉयचे वेले के फेलिक्स श्टाइनर

न्यू टेस्टामेंट में साफ लिखा है कि राजा हेरोडेस के मरने के बाद यीशु, मारिया और जोसेफ फिर अपने घर वापस लौट गए. लेकिन आने वाले दिनों में शांतिपूर्ण सीरिया और आतंकवाद से मुक्त इराक या स्थिर अफगानिस्तान के बारे में कौन सोच रहा है? एरिट्रिया और सोमालिया में शांति, और घाना, सेनेगल या कोसोवो में खुशहाली हालफिलहाल असंभव सा लगता है. इस बात की बड़ी संभावना है कि इस समय यहां आ रहे शरणार्थी स्थायी रूप से यहीं रहेंगे, इसलिए समाज में उनके बेहतरीन और फौरी समेकन के बारे में सोचना होगा. और सरकार यदि इमानदार है तो उसे और भी करना होगा. यूरोप के आसपास के संकट क्षेत्र कम नहीं होंगे, इसलिए और शरणार्थियों के लिए तैयार रहना होगा.

काम और शिक्षा

हालांकि यब स्वाभाविक है और सबको पता है. यदि शरणार्थियों के काम करने पर रोक उन्हें डराने के मकसद से लगाई गयी, तो यह सिद्धांत विफल हो गया है. सरकारों की सबसे बड़ी मदद यह होगी कि वे जल्द से जस्द स्वाबलंबी हो जाएं. और यही शरणार्थी भी चाहते हैं. वे सुरक्षा और स्वतंत्रता के अलावा यहां का जीवनस्तर भी चाहते हैं. बहुत से लोग देश में रह गए अपने परिवार के लोगों की मदद भी करना चाहते हैं. इसलिए शरणार्थियों को वहां बसाना होगा जहां उनके काम पाने की संभावना हो. शुरू में पूर्वी हिस्से के खाली पड़े फ्लैट शरणार्थियों को ठहराने के काम आ सकते हैं, लेकिन वे वहां करेंगे क्या? बेहतर होगा आर्थिक रूप से सफल शहरों के पास सरकार की मदद से सस्ते घरों का निर्माण. जर्मनी यूरोप में शरणार्थियों का बोझ बांटने की मांग कर रहा है, लेकिन शरणार्थियों को वहां भेजकर क्या होगा जहां 30 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं? ऐसे में मेलजोल के बदले घृणा, विद्वेष और सामाजिक संकट ही पैदा होगा.

कानून का ख्याल

सरकार को अपने कानूनों पर ध्यान देना होगा. यदि वह ये नहीं चाहती तो उसे दूसरा कानून बनाना चाहिए. मसलन आप्रवासन कानून. यदि ऐसा करना संभव नहीं तो यह सरकार की विफलता है. वह नागरिकों का सम्मान खो देगी जो सरकारी नियमों का पालन करने की कोई वजह नहीं देखेंगे. नागरिकों की सहमति पर निर्भर लोकतंत्र के लिए यह अत्यंत खतरनाक है. शरण की ऐसी प्रक्रिया जिसमें हजारों लोगों को मना कर दिया जाता है लेकिन वे फिर भी देश में रहते हैं, किसी काम की नहीं है. इसी तरह यूरोपीय संघ में शरण का डब्लिन नियम भी है जो पिछले 25 सालों से काम नहीं कर रहा है. या तो नियम खत्म करो या उसे लागू करो. बाकी सबकुछ जनता के साथ धोखाधरी है.

जरूरत पड़ने पर सरकार को अपनी जनता के खिलाफ भी कदम उठाना पड़ता है.उनके खिलाफ जो विदेशियों पर हमला करते हैं, शरणार्थी गृहों में आगजनी करते हैं या इंटरनेट में विदेशियों के खिलाफ घृणा फैलाते हैं. कुछेक मामलों में आपराधिक मुकदमे सहायक साबित हो सकते हैं. लेकिन सरकारी अधिकारी अकेले इस चुनौती का सामना नहीं कर सकते. सरकार को नागरिकों की जरूरत है. वे अभी ही शरणार्थियों और सरकार की विभिन्न तरीकों से मदद कर रहे हैं. इससे भी बड़ी मदद होगी कि जर्मन चांसलर कहें, "हमारे सामने बड़ी चुनौती है. मुझे आपकी मदद चाहिए."

सामाजिक हकीकत यह भी है कि जर्मनी में बहुत से लोग शरणर्थियों के आने से आशंकित हैं. खासकर देश के पूर्वी हिस्से में और समाज के गरीब और कम पढ़े लिखे तबके में आशंका है कि उनसे कुछ छिन जाएगा, घर, काम, सामाजिक भत्ते. भरोसेमंद राजनीति का मतलब है इन चिंताओं को गंभीरता से लिया जाए. जर्मनी यह कर सकता है.