छठ की धूम
छठ का त्योहार सूर्योपासना का पर्व है. चार दिनों के बाद यह पर्व संपन्न हो गया. ब्रह्मांड में सूर्य वह शक्ति है जो सबको शक्ति प्रदान करती है. धरती पर जीवन का अहम स्रोत है.
छठ के दौरान पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है. आम तौर पर यह तालाबों और नदियों में होता है.
इस बार एक बार फिर नदियों की गंदगी एक मुद्दा रही. कुछ जगहों पर नदियों के घाट पर अलग से स्नान की व्यवस्था की गई.
छठ धार्मिक पूजा से ज्यादा प्रकृति पूजा है. मान्यता है कि यह तब से चली आ रही है जब लोग प्रकृति के ताकतवर प्रतीकों की पूजा किया करते थे.
किसानों से पूछिए तो वे बताएंगे कि यह प्रकाश के प्रतीक सूरज की पूजा है जिन्हें इस मौसम में पैदा होने वाली सारी सामग्री चढ़ा दी जाती है.
छठ के मौके पर चाहे तालाबों और नदियों पर घाट बनाने का सवाल हो या लोगों को वहां तक पहुंचाने का, सामूहिक प्रयासों की बानगी दिखती है.
छठ एकता का भी त्यौहार है. ऊंच-नीच, गरीब-अमीर और बड़े-छोटे का भेद त्याग कर सभी उसी पानी में खड़े होते हैं और सूर्य वंदना करते हैं.
छठ गीतों का त्यौहार है. यहां पंडितों का पतरा काम नहीं आता, मंत्रोच्चारण नहीं होता, यहां गीत गाए जाते हैं. लोकगीतों में लोगों की आत्मा बसती है.
छठ अब राजनीति का भी त्यौहार बन गया है. राजद नेता लालू यादव और उनके परिवार के लिए यह बिहार से बाहर समर्थन पाने का जरिया है.
छठ के प्रसाद स्थानिकता की पूजा हैं, चाहे ठेकुआ हो या दूसरे फल सब्जियां. गन्ने और धान की फसल इसी समय कटती है. माहौल में उसकी गंध मिली होती है. पर्यटकों में लोकप्रिय है.