1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जरूरत आमूल बदलाव की

१५ अगस्त २०१४

आजादी के 68वें वर्ष में भारत विकास की कई सीढ़ियां चढ़ने के बावजूद अपनी पूरी आबादी को अच्छा भविष्य और सुरक्षा देने में नाकाम रहा है. देश को पूरी व्यवस्था में आमूल बदलाव की जरूरत है. समय आ गया है कि उस पर खुली बहस हो.

https://p.dw.com/p/1Cuxn
तस्वीर: AP

भारत एशिया की क्षेत्रीय सत्ता है. उसकी विशाल आबादी उसके विकास की गारंटी है. देश में शायद ही कोई ऐसा है जो कह सके कि वह जीवन की जरूरी सुविधाओं से संतुष्ट है. अनाज, पानी, तेल, गैस, मकान, स्कूल और अस्पताल कुछ भी ऐसा नहीं जिसमें सुधार की जरूरत नहीं. महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों की सुरक्षा बहुत ही गंभीर मुद्दा है. और भ्रष्टाचार देश की हर संरचना को खोखला किए जा रहा है.

हर क्षेत्र में विकास की जरूरत है. लेकिन विकास जितनी तेजी से होनी चाहिए वह हो नहीं रही है. सड़कें खस्ताहाल हैं, घर टूटे फूटे हैं, गांवों में लोगों के पास पक्के घर नहीं हैं, शहरों में स्लम हैं. गरीबी के कारण लोगों की जरूरतें कम है, उत्पादन सुविधाओं की कमी है और नौकरियों का अभाव है. हर कहीं सामान्य नागरिक सुविधाओं का अभाव दिखता है. अस्पताल नहीं हैं, जो हैं उनमें आम लोगों के लिए या तो समय नहीं है या सुविधाएं नहीं हैं.

सब कुछ बदल सकता है, यदि सही और भविष्योन्मुखी योजना बनाई जाए. और इन योजनाओं को पूरा करने के लिए भारत के पास कुशल लोगों की कमी नहीं है. कमी है तो सही योजना की और उसे पूरा करने की संरचना की. इस संरचना के लिए हर स्तर पर फैसलों में लोगों की भागीदारी जरूरी है. आत्मनिर्भरता के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे अपने लिए और अपने सामाजिक दायित्वों को निभाने के लिए खुदमुख्तार फैसला ले सकें. साथ ही प्रशिक्षण से गलत फैसलों पर सवाल उठाने की क्षमता भी आएगी.

बदलाव की जरूरत हर इलाके में है. चाहे वह राष्ट्रीय या प्रांतीय राजनीति हो या स्थानीय प्रशासन. अदालतें हों या गैर सरकारी अर्थव्यवस्था. लोकतंत्र का मतलब आम लोगों का तंत्र है. आम लोगों को राजनीति की हर प्रक्रिया के केंद्र में लाना होगा. उनकी जरूरतों और उनकी सुविधाओं को राजनीति का मकसद बनाना होगा. इसकी शुरुआत सिर से ही हो सकती है. पिछले सालों में लोगों ने हक मांगना शुरू किया है और राजनीतिक प्रक्रिया नीचे से ऊपर की ओर आई है. हिस्सेदारी के लिए यह जरूरी भी है. लेकिन राजनीति का मकसद सबकी भलाई और सबका हित होता है, व्यक्तिगत या किसी दल विशेष की बेहतरी नहीं.

इसकी शुरुआत राष्ट्र के स्तर पर करनी होगी. तभी लोग राष्ट्रहित को व्यक्तिगत हितों के ऊपर रख पाएंगे और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय हिस्सा लेंगे. राजनीतिक दलों को इस प्रक्रिया में जरूरी भूमिका निभानी होगी. इसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष को साथ मिलकर राष्ट्रीय मुद्दों पर फैसला करना होगा. लोकतंत्र को जीना होगा जिसका अर्थ बहुमत का शासन ही नहीं बल्कि सबका ख्याल रखना है. ऐसी एक शुरुआत स्वतंत्रता दिवस को मनाने का सबसे अच्छा तरीका होगी.

ब्लॉग: महेश झा

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी