1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मनी का वैकल्पिक संगलन रिएक्टर

१२ अप्रैल २०१०

अमेरिका में लेज़र किरणों द्वारा नाभिकीय संगलन का प्रयास चल रहा है. फ्रांस में बन रह अंतरराष्ट्रीय रिएक्टर ITER, जिस में भारत भी शामिल है, तापनाभिकीय टोकामाक रिएक्टर होगा, जबकि जर्मनी एक तीसरा रास्ता अपनाने जा रहा है.

https://p.dw.com/p/MtYQ
जर्मन रिएक्टर की सैद्धांतिक बनावटतस्वीर: Max-Planck Institut für Plasmaphysik

नाभिकीय संगलन के ज़रिये सूर्य की तरह अक्षय परमाणु ऊर्जा प्राप्त करने के प्रयास इस समय बड़े ज़ोरशोर से चल रहे हैं. फ्रांस में बन रहा कदराश का रिएक्टर 2018 से पहले बन कर तैयार नहीं होगा और प्रयोग के तौर पर केवल कुछेक मिनटों के लिए ही बिजली पैदा कर पायेगा. इसलिए जर्मनी में ग्राइफ्सवाल्ड के प्लाज़्मा भौतिकी माक्स प्लामक संस्थान के वैज्ञानिक एक तीसरे तकनीकी विकल्प के साथ प्रयोग करने जा रहे हैं. वे 2014 तक एक ऐसा रिएक्टर बना लेना चाहते हैं, जिसके माध्यम से दिखा सकें कि नाभिकीय संगलन के द्वारा लगातार बिजली प्राप्त करना भी संभव है.

ग्राइफ्सवाल्ड रिएक्टर बनाने का काम ज़ोरों से चल रहा है. दो बड़े-बड़े हालों में धातु के बड़े बड़े छल्ले रखे हैं. हर रिंग या छल्ला दो मीटर से अधिक व्यास वाला है और तरह-तरह के केबलों से लिपटा हुआ है. कुल 70 छल्ले हैं. उनका आकार सुपर कंप्यूटरों की सहायता से एक-एक मिलीमीटर तक सटीक रखा गया है.

इस काम की देखरेख कर रहे लुत्स वेगेनर बताते हैं कि वे बाद में चुंबकीय छल्लों वाले एक ऐसे पिंजड़े का काम करेंगे, जिस के भीतर नाभिकीय संगलन की क्रिया चलेगीः "चुंबकों से पैदा होने वाले क्षेत्र एक दूसरे को इस तरह आच्छादित करेंगे कि उनके सम्मिलित आच्छादन से पिंजड़े के भीतर एक त्रिआयामी चुंबकीय पाइप-जैसा बनेगा. उसी में अतितप्त प्लाज़्मा को क़ैद रखा जायेगा."

Kernfusion
रिएक्टर का एक तैयार मॉड्यूलतस्वीर: Max-Planck Institut für Plasmaphysik

प्लाज़्मा क्या है

प्लाज़्मा के रूप में अत्यंत झीनी चादर जैसा गैसीय हाइड्रोजन ही वह ईंधन है, जिस के नाभिक भारी दबाव और अत्यंत ऊंचे तापमान पर गल कर आपस में घुलमिल जायेंगे और साथ ही विद्युत आवेशधारी कण मुक्त करेंगे. रिएक्टर की सुचारुता के लिए ज़िम्मेदार प्रो. रोबर्ट वोल्फ़ प्लाज़्मा के बारे में बताते हैं: "जब भी आप कोई चीज़ गरम करते हैं, तो वह पहले ठोस से तरल और फिर तरल से गैसीय बन जाती है. और यदि आप तब भी गरम करते जायें, वह कभी न कभी प्लाज़्मा बन जायेगी."

हाइड्रोजन बनेगी रिएक्टर का ईंधन

इस प्लाज़्मा से ही वह प्रचंड ऊर्जा मिलेगी, जो नाभिकीय संगलन के लिए चाहिये. संगलन की इस क्रिया में हाइड्रोजन के ड्यूटेरियम और ट्रीशियम कहलाने वाले आसोटोप-रूपों का विलय होता है. विलय से बनती है अहानिकारक निष्क्रिय गैस हीलियम और मुक्त होते हैं नाभिक में बंधे न्यूट्रॉन कण. उन में छिपी ऊर्जा को बिजली में बदला जा सकता है.

Kernfusion
फ़रवरी में चांसलर अंगेला मेर्कल ने निर्माणस्थल का अवलोकन कियातस्वीर: Max-Planck Institut für Plasmaphysik

ड्यूटेरियम को पानी से प्राप्त किया जा सकता है और ट्रीशियम को लीथियम से, जो चट्टानों में मिला होता है. इन दोनो ईंधनों की केवल एक ग्राम मात्रा से 11 हज़ार टन कोयले को जलने जितनी ऊर्जा प्राप्त हो सकती है. कोई कार्बन डाइऑक्सड नहीं बनेगी. आजकल के परमाणु बिजलीघरों जैसा रेडियोधर्मी कचरा भी नहीं निकलेगा. रिएक्टर में विस्फोट का भी ख़तरा नहीं होगा.

सूर्य जैसा तापमान चाहिये

लेकिन, इस साफ़-सुथरी ऊर्जा को पाने के लिए दस करोड़ डिग्री सेल्ज़ियस का प्रचंड तापमान पैदा करना पड़ेगा. प्लाज्मा को चुंबकीय क्षेत्र के भीतर इस तरह अधर में लटकाये रखना होगा कि वह कहीं किसी चीज़ को स्पर्श न करे. यही सबसे बड़ी चुनौती है, जैसाकि प्रो. रोबर्ट वोल्फ़ बताते हैं: "क्योंकि यदि उसने कहीं किसी पाइप की दीवार को छू लिया, तो प्लाज्मा प्रदूषित भी हो जायेगा और ठंडा भी."

चुंबकीय क्षेत्र में बंधा रहेगा अतितप्त प्लाज़्मा

इसे तभी रोका जा सकता है जब अतितप्त प्लाज़्मा अत्यंत शक्तिशाली चुंबको से बने चुंबकीय क्षेत्र से बंधा रहे और कहीं किसी चीज़ को स्पर्श नहीं करे. चुंबक अपनी अधिकतम क्षमता पर तभी पहुंच सकते हैं, जब उन्हें और उनके केबलों को तरल हीलियम की सहायता से ऋण 269 डिग्री सेल्ज़ियस के अतिसुचालक तापमान पर ठंडा रखा जा सके.

इस चुनौती का उत्तर देने के लिए जर्मनी के ग्राइफ़्सवाल्ड संगलन रिएक्टर के लिए तथाकथित स्टेलरेटर तकनीक अपनायी गयी है. उस के बारे में 1950 वाले दशक में विकसित टोकामाक रिएक्टर तकनीक की अपेक्षा बहुत कम शोधकार्य हुए हैं. फ्रांस के कदराश में बन रहा रिएक्टर भी टोकामाक रिएक्टर ही होगा और एक बार में अधिकतम केवल दस मिनट के लिए संगलन क्रिया को टिका पायेगा.

कहना मुश्किल है कि ग्रइफ्सवाल्ड की स्टेलरेटर तकनीक नाभिकीय संगलन के द्वारा निरंतर बिजली देने के अपने प्रलोभन को पूरा कर पायेगी. इसका सही जवाब तो तब मिलेगा, जब स्टेलरेटर रिएक्टर बन जायेगा और काम करने लगेगा.

रिपोर्टः रिशार्द फ़ुक्स/राम यादव

संपादनः उज्ज्वल भट्टाचार्य