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जर्मनी में गर्ल्स और बॉयज़ डे साथ-साथ

२२ अप्रैल २०१०

जर्मनी में गुरुवार को लड़कियों का दिन और लड़कों का दिन. ऐसा नहीं है कि इस दिन लड़के लड़कियों से मिलते हैं, या लड़कियां सुंदर सुंदर कपड़े पहन कर घूमती हैं या फैशन शो में हिस्सा लेती हैं. जर्मनी की एक अनोखी कोशिश.

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चांसलर के साथ गर्ल्स डेतस्वीर: AP

जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल के आमंत्रण पर हज़ारों स्कूली लड़कियां गर्ल्स डे पर इकट्ठा हुईं. किसी फ़ैशन परेड में हिस्सा लेने नहीं बल्कि पुरुषों के एकाधिकार वाले कामों में अपने करियर की शुरुआत करने के लिए.

पिछले दस साल से हर 22 अप्रैल को जर्मनी में गर्ल्स डे मनाया जा रहा है ताकि लड़कियों को पुरुषों वाली नौकरियों के बारे में पूरी जानकारी दी जाए और उन्हें इन नौकरियों या कामों के लिए प्रेरित किया जाए. बीलेफेल्ड में समन्वय कार्यालय ने जानकारी दी कि पूरी जर्मनी में कम से कम एक लाख तीस हज़ार इस तरह की नौकरियां ख़ाली हैं. हालांकि गर्ल्स डे में कई कंपनियों में लड़कों को आने की भी अनुमति थी.

जब से गर्ल्स डे की शुरुआत हुई है तब से अब तक नौ लाख लड़कियों ने इसमें हिस्सा लिया है. इस साल ये आंकड़ा निश्चित ही दस लाख तक पहुंचने की उम्मीद है.

अब तक जिन नौकरियों के बारे में लड़कियां सोचती ही नहीं हैं, उन सब कामों में आने के लिए लड़कियां प्रेरित हो इसलिए कंपनियों और कॉलेजों ने गुरुवार को अपने कारख़ाने और प्रयोगशालाएं खोली और उन्हें इस बारे में पूरी जानकारी दी.

Kinderarmut in Bosnien-Herzegowina
किन्डरगार्टन में पुरुषों की कमीतस्वीर: DW/Mirsad Camdzic

जबकि जर्मनी की परिवार मंत्री क्रिस्टीना श्रोएडर का कहना है कि लड़कों को भी मदद की ज़रूरत है. उन्हें उतना प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा जितना लड़कियों को. जहां ताकत और हाथ के कामों की बात होती है ऐसे पारंपरिक पुरुषों के कामों में पुरुषों की संख्या कम होती जा रही है. साथ ही बेरोज़गार युवकों की और पुरषों की संख्या बढ़ती जा रही है. तो जर्मनी में बॉयज़ डे भी आयोजित किया जाना चाहिए, ऐसा श्रोएडर का मानना है. इस दिन वे पुरुषों के लिए ऐसी नौकरियों के बारे में जानकारी देंगी जहां अभी तक महिलाओं का दबदबा था. जैसे कि किन्डरगार्टन में.

परिवार मंत्री श्रोएडर का मानना है कि लड़कों के ख़राब रिज़ल्ट का कारण है कि शिक्षकों के तौर पर कम पुरुष काम करते हैं.

लड़कियां तो धीरे धीरे पुरुषों के प्रभुत्व वाले कामों में कदम रख रही हैं, क्या पुरुष भी महिलाओं वाले कामों में हाथ डालेंगे...

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा मोंढे

संपादनः राम यादव