जर्मनी में नस्लवाद विरोधी अभियान
१२ मार्च २०१४नस्लवाद विरोधी पखवाड़े की शुरुआत इस साल लोवर सेक्सनी की राजधानी हनोवर में हुई. जर्मनी का लोवर सेक्सनी प्रांत इस साल प्रदेशों की परिषद का अध्यक्ष है और उसके मुख्यमंत्री श्टेफान वाइल पदेन उपराष्ट्रपति भी हैं. देश भर में आयोजित किए जाने वाले पखवाड़े की शुरुआत करते हुए वाइल ने विदेशी पृष्ठभूमि के लोगों के लिए अधिक मान्यता और सम्मान की मांग की. उन्होंने स्वीकार किया, "नस्लवाद पहले की ही तरह हमारे समाज में मौजूद है" और कहा कि एकल ग्रुपों के खिलाफ पूर्वाग्रह हैं और यह बहुत आम है.
वाइन ने चिंता जताते हुए कहा कि नस्लवाद समाज के केंद्र तक पहुंच गया है और कहा कि जर्मनी को इस तरह के आयोजनों की जरूरत है. उन्होंने कहा है कि बहुत से युवा लोगों के लिए नस्लवाद और भेदभाव का अनुभव आम है. इसे खेल के मैदान और डिस्कोथेक के दरवाजों पर देखा जा सकता है. नौकरी खोजने के दौरान भी उन्हें अनुभव करना पड़ता है कि जर्मन नाम वाले युवाओं को नौकरी पाने की ज्यादा संभावना होती है.
संयुक्त राष्ट्र के नस्लवाद विरोधी अभियान के तहत जर्मनी में 1,000 से ज्यादा गोष्ठियां और अभियान हो रहे हैं. इनका आयोजन जर्मनी की अंतरसांस्कृतिक परिषद कर रही है. जर्मन फुटबॉल संघ के पूर्व प्रमुख थियो स्वांसिगर अब संयुक्त राष्ट्र अभियान के दूत हैं. उन्होंने कहा कि खेल और फुटबॉल के मैदान पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. मैचों और प्रतियोगिताओं के दौरान अक्सर खिलाड़ियों को नस्लवादी हमलों का सामना करना पड़ता है.
जर्मन सरकार की आप्रवासियों के समेकन की प्रभारी आयदान ओएजोगुज ने मांग की पुलिस और न्यायपालिका में और ज्यादा आप्रवासियों की भर्ती की जानी चाहिए. अंतरसांस्कृतिक परिषद के अध्यक्ष युर्गेन मिक्श ने पराये से विद्वेष के खिलाफ लोगों की बढ़ती सक्रियता की सराहना की, "बढ़ते पैमाने पर लोग महसूस कर रहे हैं कि नस्लवाद हकीकत है, और वे उसका विरोध कर रहे हैं." उन्होंने कहा कि धीरे धीरे नस्ली बहुलता के प्रति रवैया सकारात्मक हो रहा है. उन्होंने मांग की कि भविष्य में गोएथे, बेथोफेन और फुटबॉल की तरह नस्लवाद विरोध भी जर्मनी की छवि का हिस्सा होना चाहिए.
बच्चों की मदद करने वाली जर्मन संस्था ने शरणार्थियों के बच्चों के साथ भेदभाव की निंदा की है. संगठन के प्रमुख थोमस क्रूगर ने कहा कि शरणार्थियों के बच्चों के साथ मौजूदा कानून में भेदभाव किया जाता है. क्रूगर ने शिकायत की कि उन्हें शरणार्थी सुविधा कानून के तहत गंभीर रूप से बीमार होने की स्थिति में ही चिकित्सीय सुविधा मिलती है. बाल सहायता संगठन ने शरणार्थियों के बच्चों के लिए स्कूल में भर्ती की अनिवार्यता में भी खामियों की शिकायत की. नस्लवाद विरोधी अंतरराष्ट्रीय अभियान की शुरुआत का फैसला संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1966 में लिया था.
एमजे/ओएसजे (डीपीए, ईपीडी)