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जर्मनी में बढ़ती विदेशी और इस्लाम विरोधी लहर

मिषाएल मार्टिन/आरपी (डीपीए,ईपीडी)१६ जून २०१६

बीते दो सालों में जर्मनी में मुसलमानों को नापसंद करने या उन पर शक करने की प्रवृत्ति बढ़ी है. लाइपजिग यूनिवर्सिटी की स्टडी में पता चला है कि इसके अलावा लोग राजनीति और पुलिस पर पहले से ज्यादा अविश्वास करने लगे हैं.

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Deutschland Muslime Freitagsgebet Moschee Berlin
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Schwarz

हर दो साल पर होने वाले सर्वे में जर्मन लोगों के रुझानों की तुलना की जाती है. इसमें विदेशी-विरोधी, इस्लाम-विरोधी, लिंग-विरोधी या नाजीवाद जैसे विचारों को मानने वालों के बारे में भी जानकारी ली जाती है.

लाइपजिग यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम के ओलिवर डेकर और एल्मार ब्रेलर ने जर्मन राजधानी बर्लिन में इस स्टडी को जारी करते हुए बताया कि उन्हें मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती घृणा और अतिदक्षिणपंथी विचारधारा को कायम रखने के लिए हिंसा तक के इस्तेमाल के लिए समर्थन दिखा.

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रिसर्चर ओलिवर डेकर और एल्मार ब्रेलरतस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld

देश के 40 फीसदी से अधिक लोगों का मानना है कि मुसलमानों को जर्मनी आने से रोकना चाहिए. जबकि इंटरव्यू में शामिल करीब आधे लोगों ने कहा कि कई बार उन्हें अपने ही देश में अजनबी होने का एहसास होता है. दो साल पहले हुए सर्वे में 43 प्रतिशत लोगों का ऐसा मानना था.

इसके अलावा सर्वे में शामिल लोगों में समाज के समलैंगिक या जिप्सी जैसे अल्पसंख्यक समूहों के प्रति बढ़ती वैमनस्य की भावना का सबूत मिला. 40 फीसदी से अधिक का मानना है कि समलैंगिकों को खुलेआम चूमते देख कर उन्हें कोफ्त होती है. 2011 के सर्वे में ऐसा मानने वाले लोग 25 फीसदी ही थे. एक-तिहाई लोग चाहते हैं कि समलैंगिक शादियों पर प्रतिबंध लगे. हर पांच में से तीन लोगों का मानना है कि जिप्सी लोगों के अपराध करने की ज्यादा संभावना है.

शरणार्थी संकट का लिटमस टेस्ट

पिछले साल जर्मनी पहुंचे 10 लाख से अधिक प्रवासियों के कारण हर पांच में से चार लोगों का मानना रहा कि जर्मनी को इतना उदार नहीं होना चाहिए था. 60 प्रतिशत जर्मन इस धारणा से असहमत हैं कि शरण की चाह में पहुंचे लोग अपने देशों में उत्पीड़ित थे.

देश के सामाजिक-राजनीतिक संगठनों में लोगों का विश्वास काफी कम हुआ है. कई लोगों ने रिसर्चरों को बताया कि उन्हें नहीं लगता कि राजनीतिक तंत्र में उनका सही प्रतिनिधित्व हो रहा है.

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मुसलमानों की इबादत की जगह मस्जिदों के खिलाफ दक्षिणपंथियों का प्रदर्शनतस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg

पिछले दो सालों में समाज में ऐसे तमाम मुद्दों को लेकर हुआ ध्रुवीकरण और अतिवादी विचारधाराओं के लिए बढ़ते समर्थन के कारण ही अलेटरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) जैसे दक्षिणपंथी दल और आप्रवासी विरोधी अभियान पेगीडा का आधार मजबूत हुआ है. इस सर्वे में शामिल ज्यादातर जर्मनों को लगता है कि एकीकरण तब तक ही हो सकता है जब तक जर्मन संस्कृति यहां की प्रमुख संस्कृति बनी रहे.