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जर्मनी में भारत ने शुरू की विदेश नीति सीरीज

महेश झा
२३ जनवरी २०१७

जर्मनी में इस साल होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले भारतीय दूतावास ने विदेश नीति से जुड़े मुद्दों पर संगोष्ठियों की श्रृंखला शुरू की है. विदेश नीति सीरीज की शुरुआत आतंकवाद के वैश्वीकरण के मुद्दे पर हुई.

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Deutschland Dikussionsrunde in der indischen Botschaft in Berlin
तस्वीर: DW/M. Jha

भारतीय दूतावास की विदेश नीति सीरीज का मकसद जर्मनी में भारतीय नीतियों के लिए समझ पैदा करना और जर्मन संस्थानों और बुद्धिजीवियों के साथ पारस्परिक हित के मुद्दों पर चर्चा बढ़ाना है. श्रृंखला की शुरुआती गोष्ठी का विषय था, "आतंक का वैश्वीकरण: हालिया परिदृश्य और क्षेत्रीय डायनामिक्स".

एक महीना पहले ही बर्लिन में क्रिसमस बाजार पर हुए आतंकी हमले ने इसे प्रासंगिक बना दिया था. आतंकवाद की समस्या से निबटने के लिए उसके कारणों से निबटने पर जोर देता रहा जर्मनी इस बीच खुद उसका निशाना बन रहा है और सुरक्षा कदमों को चुस्त करने के प्रयासों में लगा है.

गैर सरकारी किरदारों द्वारा बलप्रयोग के अवैध इस्तेमाल या धमकी को आतंकवाद के रूप में परिभाषित किया गया है. 2008 से 2015 के बीच आतंकी हमलों में मरने वाले लोगों की संख्या 8,500 से बढ़कर करीब 33 हजार हो गई है. बदलते चरित्र वाले आतंकी हमलों का लक्ष्य पश्चिमी देशों के अलावा भारत जैसे देश भी हो रहे हैं. भारत में हो रहे आतंकी हमलों के लिए भारत पाकिस्तान समर्थित संगठनों को जिम्मेदार ठहराता है लेकिन पाकिस्तान इन आरोपों से इंकार करता है. इसके अलावा पश्चिम एशिया में आईएस जैसे आतंकी संगठनों पर कस रही नकेल का असर दूसरे देशों में छोटे-बड़े हमलों के रूप में सामने आ रहा है.

संगोष्ठी में आतंकवाद के बढ़ते दायरे और उसे रोकने के लिए हो रहे अंतरराष्ट्रीय प्रयासों और मुश्किलों पर खुलकर चर्चा हुई. पैनल चर्चा में जर्मन सांसद आंद्रेयास निक, चांसलर कार्यालय में विदेश और सुरक्षा नीति के लिए जिम्मेदार डॉ. योआखिम बेरटेले, यूरोपीय विदेश नीति काउंसिल की अंजेला स्टांसेल और भारत के मिशन उप प्रमुख अभिषेक सिंह ने हिस्सा लिया. आतंकवाद से किसी न किसी रूप में बहुत सारे देश प्रभावित रहे हैं, लेकिन इस बीच वह वैश्विक समस्या बन गया है और दुनिया का कोई भी इलाका उससे सुरक्षित नहीं है. खासकर एशियाई देशों में आतंकवाद के मौजूदा खतरे और विभिन्न देशों के रवैये की भी चर्चा हुई.

सीरीज की शुरुआत करते हुए भारतीय राजदूत गुरजीत सिंह ने भारत और जर्मनी के संबंधों पर जोर दिया और कहा, "हम आर्थिक सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान प्रदान के क्षेत्र में बहुत कुछ कर रहे हैं लेकिन राजनीति और विदेशनैतिक मुद्दे हमारे संपर्क में पिछली कतारों में रहे हैं.” इन मुद्दों पर आपसी चर्चा बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई सीरीज में दूतावास कॉर्बर फाउंडेशन, जर्मन काउंसिल फॉर फॉरेन रिलेशन और ग्लोबल पॉलिसी प्लानिंग इनिशिएटिव जैसे संस्थानों के साथ सहयोग कर रहा है. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में यूरोपियन स्टडीज के प्रो. आरके जैन इस सीरीज को बहुत अच्छी पहल मानते हैं, "यदि इन्हें नियमित तौर पर आयोजित किया जाए तो ये भारत की नीतियों, संवेदनशीलताओं और पहचान के लिए जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होगा."

जर्मनी इस साल जी-20 का मेजबान है और उसने शिखर सम्मेलन के लिए जो लक्ष्य तय किए हैं उनमें आतंकवाद को मिलने वाले धन के प्रवाह को रोकने के कदम और मनी लॉन्ड्रिंग पर रोक लगाना भी शामिल है. जर्मनी टेरर फाइनैंसिंग पर काबू पाने के लिए फाइनैंशियल एक्शन टास्क फोर्स के सुझावों पर अमल का समर्थन करता है. सम्मेलन में टास्क फोर्स के कामकाज की विवेचना होगी. जर्मनी कंपनियों, संस्थानों और फाउंडेशनों की आय पारदर्शिता के लिए सरकारी एजेंसियों के बीच अधिक सहयोग पर भी जोर दे रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद भारत और जर्मनी ने अपने सामरिक सहयोग के नए चरण की शुरुआत की है जिसका आधार विदेश और सुरक्षा नीति के मामलों में बढ़ती निकटता है. दोनों सरकारों ने आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष के अलावा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में अपना सहयोग बढाया है. विदेश नीति सीरीज की शुरुआत दोनों देशों के बीच विदेश नीति के विभिन्न मुद्दों पर विचारों के व्यापक आदान प्रदान और एक दूसरे की नीतियों के लिए समझ पैदा करने का अवसर देगा.