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जर्मन सत्ता केंद्र को दक्षिणपंथी चुनौती

१४ सितम्बर २०१०

द्वितीय विश्व युद्ध के पैंसठ साल बाद पूर्वी इलाकों से निष्कासित जर्मन विस्थापितों का संगठन देश में दक्षिणपंथी राजनीतिक ताकत के रूप में उभर रहा है,

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भाषण देती श्टाइनबाखतस्वीर: DW

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण दुनिया भर में लोगों का व्यापक विस्थापन हुआ. युद्ध समाप्त हुआ तो लाखों जर्मनों को भी नाजी जर्मनी द्वारा हथियाए गए इलाकों से बाहर निकाल दिया गया. वहां सदियों से रहने वाले जर्मन बेघर हो गए. सोवियत रेड आर्मी द्वारा खदेड़े, नाराज ग्रामीणों द्वारा भगाए और अंजाने मुल्क में ठंडे स्वागत की लगभग डेढ़ करोड़ विस्थापित जर्मनों की कहानी बहुत मार्मिक है. और नाजी जर्मनी के अत्याचारों का शिकार होने वाले बहुत से लोगों के लिए यह कहानी सहानुभूति भी पैदा नहीं करती.

लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो जाने के 65 साल बाद भी इस कहानी का अंत नहीं हुआ है. क्योंकि बाल्कान और पूर्वी यूरोप से जर्मनों के निष्कासन और उनकी असली मातृभूमि जर्मनी में उनको बसाया जाना समकालीन राजनीति का महत्वपूर्ण कारक बना हुआ है.

युद्ध के अंत में बेघर हो गए जर्मनों और उनके उत्तराधिकारियों की संस्था है बुंड डेअ फरट्रीबेने, विस्थापितों का संघ. वह मानवता के देवप्रदत्त अधिकार के रूप में मातृभूमि के अधिकार की मान्यता के लिए संघर्ष करती है. अपने संविधान में यह संगठन बदले और प्रतिशोध के विचार को नकारता है लेकिन नाजी अत्याचारों का कोई जिक्र नहीं करता, जिसकी वजह से युद्ध की शुरुआत हुई थी.

Deutschland Vertriebene Kinder in Berlin Flash-Galerie
बर्लिन के पास विस्थापितों के एक कैंप में खाने के लिए जाते बच्चे(1947)तस्वीर: AP

विस्थापितों के संघ का दावा है कि उसके 20 लाख सक्रिय सदस्य हैं जिसका मतलब है कि सदस्यों की संख्या चांसलर अंगेला मैर्केल की सत्ताधारी सीडीयू पार्टी से चौगुनी है. संगठन की अध्यक्ष सीडीयू की सांसद और पोलैंड में जन्मी 67 वर्षीया एरिका श्टाइनबाख हैं. संगठन के शीर्ष पर दस साल तक रहने के बाद श्टाइनबाख राजनीतिक सत्ता पर धुरदक्षिणपंथी हमले की अगुआ है.

श्टाइनबाख को बर्लिन दीवार के गिरने के बाद पोलैंड के साथ लगी ओडर नाइसे सीमा को स्वीकार नहीं करने वाले के रूप में जाना जाता है. इसके अलावा वे इस बात की वकालत करती रही हैं कि जर्मन विस्थापित द्वितीय विश्व यु्द्ध के ऐसे शिकार हैं जिन्हें अब तक मान्यता नहीं मिली है. हाल ही में एक बयान में उन्होंने युद्ध के लिए पोलैंड के भी जिम्मेदार होने के संकेत दिए थे जिसकी कड़ी आलोचना हुई थी.

पिछले सप्ताहांत विस्थापितों की वार्षिक बैठक में हजारों वयोवृद्ध सदस्यों ने हिस्सा लिया. चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी में दत्रिणपंथियों की छटपटाहट के बीच मध्य दक्षिण सीडीयू पार्टी के दायें बाजू में एक पार्टी बनाए जाने की संभावना पर चर्चा हो रही है. श्टाइनबाख का कहना है कि नई दक्षिणपंथी पार्टी को संसद में पहुंचने के लिए आवश्यक पांच फीसदी वोट आसानी से मिल जाएंगे.

जब 65 साल पहले पूरब के विभिन्न इलाकों से विस्थापित जर्मनी आए थे तो उनका कोई साझा राजनीतिक रंग नहीं था. इस बीच वे अति दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक के रूप में शक्ति बन गए हैं जिसे नजरअंदाज करना चांसलर अंगेला मैर्केल के लिए आसान नहीं होगा.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: उ भट्टाचार्य