जर्मन सर्वोच्च न्यायालय में नारीवादी जज
१२ जनवरी २०११जज की कुर्सी को किसी भी देश में बेहद सम्मान के साथ देखा जाता है. खास तौर से तब जब वह सुप्रीम कोर्ट के जज की कुर्सी हो, क्योंकि बहुत चुनिन्दा लोगों को ही यह नसीब होती है. भारत की बात करें, तो वहां सुप्रीम कोर्ट में इस समय एक भी महिला जज नहीं है.
पहली बार उच्चतम न्यायालय में नारीवादी न्यायाधीश
सुज़ान्ने बेयर जर्मनी की सबसे प्रसिद्ध वकीलों में से एक हैं. वे लम्बे समय से औरतों के हक़ के लिए और उनके साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ लडती आईं हैं. जर्मनी में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक नारीवादी न्यायविद को देश के उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनाया जा रहा है. युट्टा वाग्नर जर्मनी के महिला वकीलों के संघ की अध्यक्षा हैं. उन्होंने सुज़ान्ने बेयर की नियुक्ति पर ख़ुशी ज़ाहिर की है: "पहला कारण तो यही है कि मैं मानती हूं कि वो इस ओहदे के योग्य है. और दूसरा यह कि सुज़ान्ने बाएर उन चुनिन्दा लोगों में से हैं जिन्हें बहस करना आता है और जो अपने तर्क से सामने वाले का विश्वास जीत सकती हैं. बुन्डेसफरफासुन्ग्सगेरिष्ट में आप अकेले ही फैसले नहीं ले सकते, आप को सफलतापूर्वक साथी जजों का बहुमत जीतना होता है और यह आप तभी कर सकते हैं अगर आप बहुत बुद्धिमान हों और आपके पास ढेर सारी जानकारी हो. साथ ही आप तर्क देने में भी सक्षम हों ताकि सामने वाला आपकी बात मान सके. और अगर मैं इस सब के लिए किसी को प्रतिभाशाली समझती हूं तो वो सुज़ान्ने बेयर ही हैं."
16 में से कुल दो सदस्य महिलाएं
जर्मनी में सर्वोच्च न्यायालय बुन्डेसफरफासुन्ग्सगेरिष्ट की स्थापना 60 साल पहले हुई थी. इसमें दो सीनेट होते हैं जिनमें आठ आठ जज होते हैं. एक सीनेट का नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश करते हैं और दूसरे का उप मुख्य न्यायाधीश. पिछले साठ सालों में बुन्डेसफरफासुन्ग्सगेरिष्ट में केवल एक ही महिला मुख्य न्यायाधीश रही हैं. महिला जजों की गिनती की जाए तो वे भी एक तिहाई से ज्यादा नहीं हैं. सुज़ान्ने बेयर की न्यायालय में नियुक्ति के साथ अब 16 में से कुल दो सदस्य महिलाएं है. अपने सेनेट में वे इकलौती महिला हैं. अन्य बातों के साथ मौलिक अधिकारों के पालन की गारंटी करना भी सीनेट का काम होता है. इसके साथ साथ सुज़ान्ने बेयर स्त्रियों के अधिकारों के लिए और लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध अपना योगदान देना चाहती हैं. वे स्वयं समलैंगिक हैं. वे बताती हैं: "न्यायालय के पास यह अवसर होता है कि वह मौलिक अधिकारों की रक्षा करे. पर फिलहाल तो ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा. मैं यह कहूंगी कि न्यायालय में इस सन्दर्भ में कुछ हलचल तो है, पर अभी और एक काम की ज़रुरत है."
सुज़ान्ने बेयर का मानना है कि अगर पश्चिमी देशों की तुलना की जाए तो कनाडा में मौलिक अधिकारों की रक्षा सबसे अच्छी तरह होती है: "कनाडा में लैंगिक रुझान के बारे में संविधान में कुछ नहीं लिखा है, लेकिन आप समलैंगिक हों या कुछ भी, आप को समाज में एक ही नज़र से देखा जाता है. लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप गे हैं, लेस्बियन हैं या बायसेक्शुअल हैं, बल्कि इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि आप किस तरह के इंसान हैं."
महिलाओं के साथ पक्षपात के खिलाफ
सुज़ान्ने बेयर को खास तौर से यह बात बेहद गलत लगती है कि लोग महिलाओं के साथ पक्षपात करते हैं और यह सोचते हैं कि वे सही निर्णय लेने के लायक नहीं हैं. वो मानती हैं कि यदि एक दल में पुरुष और महिलाएं दोनों ही हों तो निर्णय और भी अच्छी तरह से लिए जा सकते हैं क्योंकि आप उसी चीज़ को दो अलग अलग दृष्टिकोण से देख सकते हैं. "इसलिए यह देखना दिलचस्प है कि लोग कोटा लगाने के इतने खिलाफ क्यों हैं, लोग क्यों सोचते हैं कि हे भगवान, औरतों का पक्ष लेना पड़ेगा, यह तो गलत है. या फिर कहते हैं बेचारी औरतें अब कोटे वाली औरतें बन जाएंगी."
सुज़ान्ने बेयर को इस बात का पक्का यकीन है कि न्यायप्रणाली में औरतों के रहने से बहुत कुछ बदल सकता है. उन्होंने यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर के रूप में महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और अपमानजनक और अश्लील चित्रों से बचाने के लिए काम किया है. अब जज के रूप में भी वे महिलाओं के हक के लिए लड़ते रहना चाहती हैं.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया
सम्पादन: महेश झा