1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मन सेना के अफगानिस्तान में बने रहने का समर्थन

१६ अक्टूबर २०१५

जर्मन संसद में जर्मन सेना को अफगानिस्तान में बनाए रखने की आवाजें बढ़ रही हैं. अंतरराष्ट्रीय सेनाओं की वापसी के बाद तालिबान के बढ़ते हमलों के कारण अमेरिका ने भी अपनी सेनाओं को फिलहाल अफगानिस्तान में रखने का फैसला किया है.

https://p.dw.com/p/1GpC1
Afghanistan Taliban Kämpfer in Kundus
तस्वीर: Reuters

जर्मनी की सत्ताधारी पार्टियों सीडीयू और एसपीडी के रक्षानीति प्रवक्ताओं का कहना है कि जर्मन सेना को उत्तरी अफगानिस्तान के मजारे शरीफ में बने रहना चाहिए. सीडीयू के संसदीय रक्षा प्रवक्ता हेनिंग ओटे और एसपीडी के संसदीय रक्षा प्रवक्ता राइनर आरनॉल्ड का भी विचार है कि मजारे शरीफ से जर्मन सेनाओं को पूरी तरह नहीं हटाया जाना चाहिए. इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को फिलहाल रोकने की घोषणा की थी. ओटे ने कहा, "यह हमारे लिए उत्तरी अफगानिस्तान में भी सैनिकों के प्रशिक्षण की गारंटी का रास्ता खोलता है."

एसपीडी सांसद आरनॉल्ड ने जर्मन सेना की तैनाती की अवधि बढ़ाने को जरूरी बताते हुए कहा है कि अमेरिका के फैसले के साथ इस बात की शर्त पूरी हो गई है कि जर्मन सेना मजारे शरीफ में बनी रहे. उन्होंने मजारे शरीफ के सैनिक अड्डे को इलाके की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण बताया. पहले अगले साल की शुरूआत तक अफगानिस्तान में तैनात जर्मन सेना की संख्या में भारी कमी करने की योजना थी. जर्मनी ने अमेरिका सहित दूसरे नाटो देशों की तरह अपने लड़ाकू दस्तों को 2014 के अंत में अफगानिस्तान से हटा लिया था. अब अफगान सैनिकों के प्रशिक्षण में मदद दे रहे सैनिक ही मौजूद हैं.

कुछ दिन पहले इस्लामी कट्टरपंथी तालिबान के लड़ाकों ने उत्तरी अफगानिस्तान के कुंदुज शहर पर हमला किया था और उसे कब्जे में ले लिया था. कुंदुज में काम कर रहे जर्मन सहयोग संगठन जीआईजेड के अफगान कर्मचारियों ने संगठन पर गंभीर आरोप लगाए हैं. जर्मन मीडिया के अनुसार जीआईजेड के जिम्मेदार अधिकारियों ने कुंदुज में तालिबान के हमले के दिन स्थानीय कर्मचारियों को उनकी नियति पर छोड़ दिया, जबकि इस्लामी कट्टरपंथियों की ओर से बदले की कार्रवाई की आशंका थी.

अफगान कर्मचारियों का मानना है कि वे और उनके परिवार के लोग सिर्फ संयोग से बच गए हैं. जीआईजेड ने आरोपों पर प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया और अखबार से कहा कि वे सुरक्षा कदमों के बारे में कोई बयान नहीं देते. संस्था ने कहा है कि वह राष्ट्रीय कर्मचारियों के साथ संपर्क में है.

एमजे/आरआर (डीपीए, एएफपी)