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जलवायु परिवर्तन के लिये अब आदिवासियों पर करना होगा भरोसा

१५ मई २०१७

विशेषज्ञों के मुताबिक जंगलों को बचाने की मुहिम में आदिवासी समुदाय बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन सरकारों को विवाद समाप्त करते हुए पहले जंगलों पर मालिकाना हक तय करना होगा.

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तस्वीर: Toby Nicholas/ Survival

जमीन पर विवाद सदियो से चला आ रहा है और जब जमीन वन्य क्षेत्रों की हो तो विवाद और भी गहरा जाता है. वन क्षेत्रों को लेकर दुनिया भर में सरकारें, आदिवासियों के साथ किसी न किसी विवाद में उलझी हैं. मोटा-मोटी सोचा जाये तो वनों में रहने वाले ये समुदाय सामान्य रूप से ऐसे लोग हैं जो सदियों से अपने वन्य क्षेत्रों को बचाने के लिये लड़ते आ रहे हैं. आदिवासी लोग दुनिया भर की महज 5 फीसदी आबादी का ही प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन इनके क्षेत्र दुनिया भर में जैव विविधता के लगभग 80 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं. साथ ही ये हिस्से प्राकृतिक संसाधनों से भी लैस हैं. लेकिन एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिकी क्षेत्रों में अब भी मालिकाना हक और इन क्षेत्रों में नियंत्रण से जुड़े नियम-कायदों पर स्पष्टता की कमी है. लेकिन अब जब जलवायु परिवर्तन पर दुनिया भर में चिंता बढ़ रही है तो स्थानीय लोग या आदिवासी भी ये मान रहे हैं कि अपने अधिकारों को हासिल करना न केवल उनके समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि जलवायु संरक्षण के लिए भी अहम है. धरती पर पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने में वन बहुत अहम भूमिक निभाते हैं. लेकिन अब भी आदिवासियों के साथ विवाद बरकरार है और इसका खामियाजा उठाना पड़ रहा है धरती को..

Infografik Global change in recognition of indigenous land rights ENG

आदिवासी ज्यादा बेहतर संरक्षक

अमेजन के जंगलों से जुड़ी साल 2016 की रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिवासी लोग धरती के बेहतरीन संरक्षक हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 15 सालों के दौरान आदिवासी क्षेत्रों में वनों की कटाई दर ब्राजील के अमेजन जंगलों के बाकी हिस्सों के मुकाबले कम रही. फरवरी 2017 की एक रिपोर्ट " इंडीजिनयस कम्युनिटीज इन द पेरुवियन अमेजन" की भी यही मुख्य बात थी. इस स्टडी के लेखक ऐलन ब्लैकमेन ने डीडब्ल्यू को बताया कि दो साल के अध्ययन में उन्होंने पाया कि कटाई क्षेत्र लगभग तीन-चौथाई तक घटा हैं और जंगलों का क्षरण लगभग दो-तिहाई. ब्लैकमेन वनों की कटाई में कमी आने के लिये दो कारकों को जिम्मेदार ठहराते हैं. ब्लैकमेन के मुताबिक अगर वनों पर मालिकाना हक तय हो जाता है तो वनों की अवैध कटाई में कमी आती है साथ ही ये पर्यावरण समूहों और मीडिया पर भी दबाव बनाता है. लेकिन अब भी वनों के स्वामित्व को लेकर स्पष्टता का अभाव है.

Dito Kayapo mit Laptop
तस्वीर: AP

लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अब वन्य क्षेत्रों पर आदिवासियों का मालिकाना तय कर दिया जाये तो पर्यावरणीय चिंतायें कुछ कम हो सकेगी. अमेजन बेसिन के लिये काम करने वाली एक संस्था से जुड़े एडविन वेस्कयुज के मुताबिक "अब तक जो भी अधिकार आदिवासी समुदायों को दिये गये हैं वे किसी राजनीतिक स्वेच्छा से नहीं बल्कि उनकी मांग के चलते दिये गये हैं. इसलिये अब यह समझना होगा कि आदिवासी लोग किसी के विकास के विरुद्ध नहीं बल्कि वे अपने क्षेत्रों की सुरक्षा और प्रबंधन को लेकर जागरुक हैं." ब्लैक ने कहा यही धरती को ठंडा रखने और ग्लोबल वार्मिंग नियंत्रित करने का यही बेहतर उपाय है.

एर्ने बानोस रुइज/एए