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स्पेशल ट्रेन से बर्लिन से बॉन जलवायु सम्मेलन

येंस थुराऊ
६ नवम्बर २०१७

जलवायु बचाने के लिए रेलगाड़ी का इस्तेमाल करें या हवाई जहाज का? जर्मन सरकार का प्रतिनिधिमंडल बर्लिन से रेलगाड़ी में बॉन आया. रिपोर्टर येंस थुराऊ की मुलाकात दक्षिणी प्रशांत के लोगों से भी हुई.

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ICE-Sonderzug "Train to Bonn" zur 23. UN-Klimakonferenz
तस्वीर: picture alliance/dpa/M. Gambarini

बॉन जलवायु सम्मेलन के अध्यक्ष देश फिजी के जर्मनी में राजदूत देव सरन स्पेशल ट्रेन के डब्बा नंबर 24 में खड़े हैं. कहते हैं, "स्वाभाविक रूप से अच्छा होता अगर सभी भागीदार इसी तरह जलवायु सम्मेलन में पहुंचते, जैसा हम कर रहे हैं, रेलगाड़ी से." लेकिन स्वाभाविक रूप से यह सबके लिए संभव नहीं है. मेजबान जर्मनी के सरकारी प्रतिनिधियों ने बर्लिन से बॉन तक की 650 किलोमीटर की दूरी प्लेन के बदले ट्रेन से तय करने का फैसला किया. एक स्पेशल ट्रेन उन्हें और पत्रकारों को लेकर बॉन आयी.

सोमवार को शुरु हुए संयुक्त राष्ट्र के 23वें जलवायु सम्मेलन में भाग लेने 190 देशों के 20,000 प्रतिनिधि, पत्रकार और पर्यावरण कार्यकर्ता बॉन पहुंचे हैं. बर्लिन बॉन स्पेशल ट्रेन में बमुश्किल 250 लोग सफर कर रहे हैं. लेकिन राजदूत सरन का मानना है कि यदि संभव हो तो हवाई जहाज के इस्तेमाल से बचना चाहिए. "हर कोई जो ग्रीनहाउस गैस बचाता है, महत्वपूर्ण है. आखिरकार हम सब दुनिया के लोग एक ही सफर पर हैं." यानि की जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में एकजुट.

UN-Klimakonferenz 2017 in Bonn | Train to Bonn
रेल प्रमुखरिचर्ड लुल्स, राजदूत देव सरन और पर्यावरण मंत्री हेंड्रिक्सतस्वीर: DW/J. Thurau

जर्मन रेल के लिए विज्ञापन

राइन नदी के तट पर स्थित बॉन शहर में दो हफ्ते चलने वाले विशाल सम्मेलन की अध्यक्षता फिजी कर रहा है. जर्मनी सम्मेलन का मेजबान है. और जर्मन रेल डॉयचे बान की स्पेशल ट्रेन जलवायु सम्मेलन के 250 भागीदारों को पर्यावरण सम्मत तरीके से बर्लिन से बॉन पहुंचा रही है. वह भी मुफ्त में और डॉयचे बान की चर्चा हो रही है. जर्मन रेल के प्रमुख रिचर्ड लुत्स खुद भी ट्रेन में सफर कर रहे हैं और बोर्ड माइक्रोफोन पर घोषणा करते हैं कि उनकी कंपनी 2030 तक ग्रीनहाउस गैस की आधी बचत करेगी. लंबी दूरी की गाड़ियां सिर्फ अक्षय ऊर्जा से चलेंगी.

लेकिन फिजी सुर्खियों में है. दक्षिण प्रशांत में स्थित इस द्वीप के लिए जहां बड़ी संख्या में भारतवंशी भी रहते हैं, शायद बहुत देर हो चुकी है. ट्रेन के एक पिछले डब्बे में फ्रांसिस नामूमू बैठी हैं. वे फिजी में प्रशांत गिरजा परिषद के पर्यावरण प्रभारी हैं. वे धरती के गर्म होने को 2 डिग्री या डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर रोकने का फैसला करने वाले पेरिस समझौते के बारे में कहती हैं, "हमारे लिए बहुत फर्क पड़ता है. हर कहीं खुशी के साथ कहे जाने वाले 2 डिग्री का मतलब हमारे लिये मौत की सजा होगा." वहां बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण एक गांव के 200 लोगों को ऊंचाई पर बसाना पड़ा है. लोगों को अपना घरबार गंवाना पड़ा है.

Frances Namoumou, Klimabeauftragte des Pazifischen Kirchenrates aus Fidschi
फ्रांसिस नामुमूतस्वीर: DW/J. Thurau

अस्तित्व का सवाल

जलवायु परिवर्तन इतना आगे बढ़ चुका है कि फिजी की तभी मदद हो पायेगी जब धरती के गर्म होने को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक दिया जाए. यह तभी होगा जब बॉन में सरकारें अपने अपने देशों के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करें. फिलहाल तो यही कहा जा रहा है कि पेरिस सम्मेलन के दौरान दिये गये लक्ष्यों से धरती 3 डिग्री गर्म होगी. कम से कम सम्मेलन की अध्यक्षता फिजी को स्थिति की गंभीरता को लोगों के सामने लाने का मौका दे रही है. फिजी की तरह तुवालू भी ज्वालामुखी से पैदा नहीं हुआ है, इसलिए वहां पहाड़ नहीं हैं, जहां लोगों को बसाया जा सके.

जर्मन पर्यावरण मंत्री बारबरा हेंड्रिक्स को पता है कि छोटे द्वीपों की हालत कितनी गंभीर है, "पेरिस संधि में जिम्मेदारियां तापमान में वृद्धि 2 डिग्री से नीचे रखने के लिए तय हुयीं हैं. लेकिन हमें 1.5 डिग्री की चुनौती स्वीकार करने का साहस होना चाहिए." जर्मन पर्यावरण मंत्री ने डॉयचे वेले से कहा कि प्रशांत के देश को अधिकार है कि वे उत्तर के देशों से और अधिक प्रयास करने के लिए कह रहे हैं. लेकिन वे मानती हैं कि यदि सारे देश लक्ष्यों को पूरा करने के लिए साझा नियमों पर सहमत हो जाते हैं तो इसे बॉन सम्मेलन की सफलता कहा जायेगा.