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जादूगोड़ा से सबक ले भारत

२८ जून २०१४

भारत 2050 तक अपनी जरूरत की 25 फीसदी बिजली परमाणु बिजलीघरों में बनाना चाहता है. लेकिन इस ऊर्जा की भारी कीमत भी चुकानी होगी. पूर्वी भारत के कई गांव अभी से इसकी चेतावनी दे रहे हैं.

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तस्वीर: Ashish Birulee

झारखंड के जादूगोड़ा में गर्मियों की एक दोपहर. चार महिलाएं यूरेनियम खदान के पास पानी भर रही हैं. तभी हवा चली और सभी महिलाएं फटाफट पानी भरे बर्तनों को ढंकने लगीं. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता कविता बिरुली के मुताबिक ग्रामीण रेडियोधर्मी कचरे से बेहद डरे हुए हैं. जादूगोडा में कैंसर, गर्भपात और जन्म के साथ बीमारी के मामले बढ़ रहे हैं.

बिरुली कहती हैं कि उनका दो बार गर्भपात हुआ, जिसकी वजह से घरवालों ने उन्हें निकाल दिया, "मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया. मुझे बांझ कहा गया. यूरेनियम के कचरे ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी. इसकी वजह से मेरा सामाजिक बहिष्कार हो गया. अब लोग अपने बेटों की जादूगोड़ा की लड़कियों से शादी कराने से कतरा रहे हैं."

तिल तिल मरते लोग

40 साल पहले जादूगोड़ा हरी भरी जगह थी. रेडियोधर्मी प्रदूषण नहीं था. लोग गांव का जीवन बिता रहे थे. लेकिन 1967 में यूरेनियम खनन शुरू होने के बाद तस्वीर बदलने लगी.

आज गांव के पास तीन सरकारी यूरेनियम खदानें रेडियोधर्मी कचरा फैला रही हैं. खदानें यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) की हैं. इनमें 5000 लोग काम करते हैं. ज्यादातर खनिक स्थानीय ग्रामीण हैं, जिन्हें रोजगार मिला हुआ है. लेकिन कचरे की वजह से अब 50,000 लोगों की जान जोखिम में है.

Uran Mine in Jadugoda Indien
रेडियोधर्मी प्रदूषण की वजह से जन्मजात विकलांग लोगतस्वीर: Ashish Birulee

एक ताजा अध्ययन में पता चला कि इन खदानों के आस पास बसे गांवों में 9000 लोग बांझपन, कैंसर, सांस संबंधी बीमारियों, गर्भपात और जन्मजात विकलांगता जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. गांवों में परमाणु कचरे का असर जांचने के लिए परमाणु वैज्ञानिक संघमित्र गाडेकर ने सर्वे किया. गाडेकर के मुताबिक वहां गर्भपात और गर्भ में ही शिशु के मरने के मामले बहुत ज्यादा हैं, "इसके साथ ही मजदूरों को हफ्ते में एक ही यूनिफॉर्म दी जाती है. उन्हें उसे पहने रहना पड़ता है, वे उसी को घर भी ले जाते हैं. वहां पत्नी या बेटियां उसे दूषित पानी से धोती है, इस दौरान वो विकीरण की चपेट में आ जाती हैं. जादूगोड़ा में रेडियोधर्मी प्रदूषण का दुष्चक्र चल रहा है."

समाजिक टूट फूट

स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के साथ ही रेडियोधर्मी कचरा आदिवासियों के इलाके में सामाजिक बंटवारा भी कर रहा है. संथाल, मुंडा, हो और महाली समुदाय की महिलाएं बीमार भी हैं और सामाजिक रूप से बहिष्कृत भी. जादूगोड़ा की लड़कियों की शादी बहुत दूर की जाती है, जहां पति उन्हें छोड़ देते हैं.

यूसीआईए जादूगोड़ा में रेडियोधर्मी प्रदूषण से इनकार करता है. इसके उलट कंपनी कहती है कि उसने स्थानीय लोगों का जीवन स्तर बेहतर किया है. यूसीआई के कॉरपोरेट कम्युनिकेशन के प्रमुख पिनाकी रॉय के मुताबिक जादूगोड़ा का यूरेनियम लो ग्रेड का है. भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के मुताबिक 65 ग्राम यूरेनियम पाने के लिए फैक्ट्री को 1000 किलो अयस्क खोदना पड़ता है.

Uran Mine in Jadugoda Indien
यूसीआईएल के परिसर में यूरेनियम से दूषित तालाबतस्वीर: Ashish Birulee

क्या हैं विकल्प

कर्मचारियों की सुरक्षा भी बड़ी चुनौती है. कंपनी खनिकों को सुरक्षा किट मुहैया कराती है लेकिन विकीरण के खतरे के प्रति जागरूकता में कमी है. आलोचकों के मुताबिक इसकी वजह से जब खनिक घर जाते हैं तो उनका पूरा परिवार विकीरण की चपेट में आ जाता है.

डॉयचे वेले से बातचीत में एक कर्मचारी ने कहा, "हम जानते है कि यूरेनियम की खदान में काम करने के खतरे को जानते हैं. लेकिन क्या किया जाए. क्या ज्यादा खतरनाक है, भूख से मरना या फिर बीमारी से? बीमारी आपको धीरे धीरे मारेगी, लेकिन बिना खाने के आप कितने दिन जिंदा रहेंगे. अगर हम खदान में काम न करें तो हमारे पास दूसरा विकल्प क्या है."

रिपोर्ट: संजय पांडे, जादूगोड़ा/ओंकार जनौटी

संपादन: अनवर जे अशरफ