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जिया खानः रूमानियत का कड़ा इम्तहान

१० जून २०१३

निःशब्द में अमिताभ के साथ काम करने के बाद जिया खान सहसा ही वर्चुअल प्रसिद्धि की ऐसी मीनार पर जा चढ़ीं जहां से उन्हें खुद को देखने में भी दुविधा सी हुई.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

करीब 25 साल की नफीसा खान ने ट्विटर प्रोफाइल पर खुद को अभिनेत्री, कवि, गायिका, संगीतकार और स्वप्नदर्शी बताया है. ये भी लिखा है कि वो जिंदगी को “गुलाबी चश्मे” से देखने वालों में एक है. शायद इसीलिए अपना नाम नफीसा से बदलकर उन्होंने जिया रख लिया था. उनके मुताबिक, नफीसा बॉलीवुड के लिए ऊबाऊ नाम था. अपनी पहली फिल्म में इसी नाम के किरदार में वो आईं और बॉलीवुड सकते में आ गया.

इस फिल्म में अपने अभिनय, अपने किरदार, मशहूर फिल्मकार के साथ काम, सिने महानायक आदि कहे जाने वाले अमिताभ के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करने में, सब कुछ वहां इतना आला दर्जे और उतनी कथित ऊंचाई का था कि उससे नीचे उतरने में जिया खान को दिक्कत हुई. वह कुछ सीढियां नीचे उतरीं, जब गजनी में काम किया लेकिन बहुत ही संक्षिप्त किरदार के बावजूद नाम पा गई क्योंकि फिल्म आमिर खान की थी और 2008 की सबसे बड़ी हिट फिल्म थी. जिया खान फिर से स्वप्न और उम्मीद की मीनार के निःशब्द से ऊंचे पायदान पर चली गईं. 2010 में हाउसफुल नाम की एक और मसाला फिल्म में साइड रोल निभाया लेकिन ये फिल्म भी हिट रही. अक्षय कुमार यहां लीड रोल में थे. सितारों की टीम थी.

इस तरह जिया खान ने अपने लिए मापदंड बड़े ऊंचे कर दिए थे. वे शायद अपनी प्रतिभा और अपनी अपील के मिलेजुले जादू से खुद ही मोहित हो गई थीं. इस लिहाज से वो इससे खुश भी थीं और नाखुश भी. निःशब्द फिल्म में अमिताभ की बेटी और जिया की दोस्त का किरदार निभा रही अभिनेत्री, जिया(खान) से कहती है, “तुम्हारी लाइफ में कोई एक्साइटमेंट नहीं है, किसी भी चीज से तुम खुश ही नहीं होती हो.”

जिया खान की छोटी सी अभिनय जिंदगी का यही जैसे मुख्य सूत्र था या शायद यही उसका व्यक्तित्व.  बहुत से कलाकार इस तक़लीफ से गुजरे हैं, गुजरते होंगे. रचना के ताप से जलकर कुछ निकल आते हैं, कुछ इस क्रिएटिविटी को मानो चैलेंज करते हुए अपनी जान गंवा देते हैं. कई कलाकार खपकर जलकर सतत ऊर्जा और सतत संघर्ष के दम पर एक मकाम हासिल करते हैं लेकिन आत्महंता नहीं बनते.

Bildergalrie Jiah Khan Bollywood Schauspielerin
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जिया खान कई कलाओं में माहिर थीं. ऑपेरा से लेकर विविध नृत्य कलाओं में पारंगत और कविता की ओर उनका रुझान था. उन्हें प्रेम था और वहां भी उन्होंने लगता है बहुत हाई स्टैंडर्ड सेट किए थे. अब जो सूचनाएं आ रही हैं और परिजनों के जो बयान आ रहे हैं उन्हें एक जगह रख कर देंखें तो कई बातें खुलती हैं. आत्महत्या की विफल कोशिश वो पहले कर चुकी थीं. प्रेम में वो एक जुनून थीं और असल जिंदगी में भी वो शायद ऐसी ही दोस्ती चाहती रही होंगी. यह एक बहुत जटिल, लगभग असंभव स्थिति है. जिया खान ने अपने लिए रोमान की यही असंभावनाएं जिंदगी से निकाल कर रखी थीं. वो शायद उन्हें पोस ही रही थीं कि अपने आसपास के पर्यावरण में अटपटी सी होती चली गईं. यहां तक कि उनका बॉयफ्रेंड भी उनसे हैरान हुआ. जिया की शख्सियत से एक सवाल उठता है कि क्या उन्हें प्रेम के बबलूकरण से चिढ़ रही होगी या प्यार का पार्लरीकरण ही उन्हें पसंद था.

फिल्म उद्योग के अंधेरों, पेशेवरों की बेदिली, काम के दबाव, सिने रौनक की वास्तविकताएं, नकली मित्रताएं, छल और बनते बिगड़ते और अंततः टूटते भरोसे- ऐसा नहीं हो सकता कि पूर्व अभिनेत्री और रचनाशील व्यक्ति राबिया खान की बेटी जिया खान को इस बात का इल्म न हो कि चमकदमक की दुनिया में कितनी वीरानी है. उन्हें हर एक बात का बेशक अंदाजा रहा होगा. लेकिन जैसा कि हम ऊपर जिक्र कर चुके हैं जिया खान ने शायद अपने ढंग की अतिशयताओं को चुना था और उनके जरिए वे इस मोटी और सख्त दीवार को भेदना चाहती थीं.

जिया खान के त्रासद अंत को हमारे मास मीडिया खासकर टीवी में भीषण अनर्गल तरीकों के साथ दिखाया गया. बड़े पर्दे की सनसनी को छोटा पर्दा उसी भयावह सनसनी के साथ पेश कर रहा है. इसी देश में कर्ज में डूबे और फसल से बरबाद किसान आत्महत्याएं करते रहे हैं, लेकिन मास मीडिया को उन दर्दनाक घटनाओं की कवरेज से क्या लेना देना. उसके लिए मृत्यु एक सनसनी है क्योंकि जिया खान एक सेलेब्रिटी(या उस दिशा में अग्रसर) है क्योंकि उसका जीवन भी सनसनी माना जाता रहा और वे तीन फिल्में और विभिन्न रैम्प्स पर वे कुछ चहलकदमियां, वे भी सनसनी माने गए. क्या हमने जिया खान को गाते, नृत्य करते या कविता लिखते सुनाते सुना या देखा है. क्या हमने मुख्यधारा के सिनेमा में एक उभरते हुए कलाकार की छटपटाहट और उसकी असमय मृत्यु की वजहों का निरीक्षण कथित सनसनी को हटाकर किया है.

जिया खान प्रतिबद्ध और ऊर्जा से भरी रही होंगी लेकिन वो कोई असाधारण कलाकार या ऐंद्रिक सौंदर्य की बेमिसाल प्रतिनिधि नहीं थीं. स्वाभाविक तौर पर उनकी मानवीय कमजोरियां भी थीं. शायद वो उन कमजोरियों की अतिशयता में ही जियीं और उन्हीं की अस्वाभाविकता में मरीं.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी

संपादनः एन रंजन