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जी-7 के लिए आखिरी मौका

५ जून २०१५

एलमाउ किले में हो रहा शिखर सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर का महाआयोजन है. डॉयचे वेले के हेनरिक बोएमे का कहना है कि सम्मेलन को तस्वीरों से ज्यादा नतीजे पेश करने होंगे और जर्मनी को अच्छे मेजबान से ज्यादा कुछ होना होगा.

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तस्वीर: Reuters/W. Rattay

20 जुलाई 2001 को गेनुआ. इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने विश्व नेताओं को प्राचीन गोदीनगर में बुलाया था. आए थे वे दसियों हजार प्रदर्शनकारी भी जो शिखर सम्मेलन का विरोध कर रहे थे. वे 8 विश्वनेताओं को सारी समस्याओं की जड़, नवउदारवाद का गढ़ और दुनिया में अन्याय के लिए जिम्मेदार मानते हैं. उस 20 जुलाई को विरोध प्रदर्शनों का नाटकीय चरम आया जब 20 वर्षीय पुलिसकर्मी मारियो प्लाकानिका की गोली से तीन साल बड़ा प्रदर्शनकारी कार्लो जुलियानी मारा गया. शिखर भेंट फिर भी चलती रही लेकिन इस घटना के कारण राजनीतिक मुद्दे धुंधले हो गए. नेताओं ने तय किया कि भविष्य में वे दूरदराज की जगहों पर मिलेंगे जहां प्रदर्शनकारी पहुंच ही न सकें. जी-8 के लिए गेनुआ पहला ताबूत का कील था.

मकसद की तलाश

कुछ साल बाद लेमन ब्रदर्स के दिवालिया होने पर वित्त बाजार में उथल पुथल मच गया. दुनिया को प्रलय दिखने लगा. बड़े औद्योगिक देशों ने बहुत जल्दी भांप लिया कि वे समस्या को अकेले नहीं सुलझा सकते. ऐसे में उन्हें जी-20 की याद आई जो उस समय तक सिर्फ वित्त मंत्रियों के स्तर पर सक्रिय था. उसे संकटमोचक का दर्जा दे दिया गया. नवम्बर 2008 में पहली जी-20 के राज्य व सरकार प्रमुख वाशिंगटन में एक मेज पर बैठे.

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तस्वीर: DW

नतीजतन जी-8 के दल का महत्व घट गया. 2010 की गर्मियों में कनाडा में दुहरे शिखर सम्मेलन की कोशिश हुई. पहले जी-8 फिर जी-20. लेकिन यह भी 8 देशों के क्लब को बचा नहीं पाया. उसने अब विदेशनैतिक मंच के रूप में काम करना शुरू किया. भविष्य में विश्व अर्थव्यवस्था की चर्चा जी-20 के दायरे में करने का फैसला हुआ. लेकिन वहां वित्तीय संकट के खत्म होने के साथ साथ गति धीमी होने लगी. कोई सार्थक चर्चा हो नहीं पा रही थी क्योंकि इस मंच पर शामिल देशों के हित एक दूसरे से बहुत अलग थे.

अन्याय का सामना

ऐसे में 8 देशों ने एक नया मौका देखा. मूल्यों के संघ के रूप में उन्होंने दुनिया की मुश्किलों का हल ढूंढने की कोशिश की. इनमें एक बड़ी मुश्किल है दुनिया में समृद्धि का असमान बंटवारा. जी-7 और जी-8 के सम्मेलनों में गरीबी से लड़ने, पूंजी पर ज्यादा कर लगाने, संरक्षणवाद को रोकने या बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कर बचाने की कोशिशें खत्म करने के कई दस्तावेज मिलते हैं.

लेकिन अक्सर छोटे कदमों से ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका. यह धन के बंटवारे में साफ देखा जा सकता है. पिछले चार सालों में, यानि वि्ततीय संकट के बाद 80 धनी लोगों की संपत्ति 1,300 अरब से बढ़कर 1,900 अरब डॉलर हो गई है. ऑक्सफैम के अनुसार इनके पास उतना धन है जितना दुनिया के आधी गरीब आबादी के पास. और ये साढ़े 3 अरब लोग हैं. यह विषमता सिर्फ उत्तर और दक्षिण के अमीर और गरीब देशों के बीच नहीं है. अमेरिका को देखने से यह बात साफ हो जाती है. वहां के शेयर बाजार में दर्ज कंपनियों के प्रमुख औसत कर्मचारियों से 250 गुना ज्यादा कमाते हैं जबकि 4.5 करोड़ अमेरिकी सरकारी मदद पर जीते हैं.

जिम्मेदारी उठाएं

यह सारी बातें रूस को बाहर किए जाने के बाद बचे सात देशों के प्रमुखों को पता हैं. लेकिन बेलगाम पूंजीवाद की समस्याओं के खिलाफ कोई नुस्खा दिख नहीं रहा है. वैसे चोटी के राजनेताओं के सामने एक मौका है. सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के विशेष सम्मेलन में टिकाऊ विकास के लक्ष्य तय किए जाएंगे. यहां जी-7 के देश अपना लक्ष्य तय कर सकते हैं कि वे 2030 तक भारी गरीबी को मिटाने के लिए क्या करेंगे.

उन्हें इसके लिए करों की बचत को रोकने के लिए पहले से कठोर कदम उठाने होंगे. करों को बचाने वाली कंपनियां मुख्य रूप से जी-7 देशों में हैं. उन्हें इसकी गारंटी करनी चाहिए कि पूरे सप्लाई चेन में पर्यावरण के अलावा समाजिक और श्रमिक मानदंडों का पालन किया जाए. और यह कानूनी तौर पर बाध्यकारी हो. हालांकि जर्मन अध्यक्षता में सही मुद्दे चुने गए हैं लेकिन चांसलर अंगेला मैर्केल को शिखर सम्मेलन में दिखाना चाहिए कि जर्मनी जिम्मेदारी उठाने और नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार है.

आखिरी मौका

फिर भी सवाल रहता है कि क्या जी-7 के लक्ष्यों पर अमल संभव है. शिखर सम्मेलन के भागीदारों को साफ होना चाहिए कि यह सफाई देने का आखिरी मौका है. सात विश्व नेताओं को यदि जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट लक्ष्य तय करने, सामाजिक मानदंडों पर सहमत होने और इन्हें अपने अपने देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए बाध्यकारी बनाने में सफलता मिलती है, तभी जी-7 का क्लब मूल्यों का संघ होने के दावे पर खरा उतरेगा.

टिक टिक करते सामाजिक टाइम बम को डिफ्यूज करने का यही रास्ता है. कुछ समय पहले अरबपति पॉल ट्यूडर जोंस ने कहा था, हम विनाशकारी मार्केटमेनिया के बीच हैं, सबसे बुरा जो मैंने देखा है. दुनिया के एक प्रतिशत लोगों और बाकी के बीच दूरी स्थायी नहीं हो सकती है. उन्होंने चेतावनी दी है, "इसका अंत क्रांति, ऊंचे कर या युद्ध में होगा."

यह जी-7 शिखर सम्मेलन का मुख्य वाक्य हो सकता है या फिर यह जी-7 संगठन की कब्र पर लिखा जाएगा.

हेनरिक बोएमे/एमजे