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जी20: हिंसक प्रदर्शनों के गुबार में डूब गयीं जायज मांगें भी

८ जुलाई २०१७

जी20 सम्मेलन से अहम मुद्दों पर सहमति की आस थी लेकिन यहां से हिंसक प्रदर्शनों की भद्दी तस्वीरें दुनिया भर में जा रही हैं. हेनरिक बोएमे कहते है कि पुलिस ने सख्ती दिखायी, वरना शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की बात कौन सुनता.

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Hamburg G20 Gipfel - Proteste Schanzenviertel
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Gateau

जुलाई के महीने में उत्तरी जर्मनी के सुंदर हैम्बर्ग शहर में आम तौर पर लोग खूब जाना पसंद करते हैं, लेकिन इन दिनों यहां से दूर ही रहना अच्छा लगता है. कुछ जगहों पर तो यह शहर आजकल खुद दिख ही नहीं रहा. काले धुंए के पीछे, पुलिस द्वारा छोड़ी जा रही पानी की बौछार के पीछे, हिंसक प्रदर्शनकारियों के गुट ब्लैक ब्लॉक के पीछे और युद्धक लिबास में छुपे पुलिसकर्मियों के पीछे उसकी चमक खो गयी है. सुरक्षा बाड़े, सड़कों की नाकेबंदी, अस्त व्यस्त शहर और परिवहन व्यवस्था. कारें जल रही हैं जिमें लक्जरी कार भी हैं और आम लोगों की सामान्य पारिवारिक कारें भी.

किसकी गलती

और उसके बाद, जैसा कि अकसर बच्चों के झगड़े में पूछा जाता है, वही पूछा जा रहा है, कि किसने शुरुआत की? कौन जिम्मेदार है? पुलिस, जिसने जरूरत से ज्यादा ताकत दिखाई और शायद उकसाया? या प्रदर्शनकारी जिनमें से ज्यादातर के इरादे शांतिपूर्ण थे, लेकिन सबके नहीं. कुछ लोग जो उन लोगों के पीछे छुप रहे हैं जो बहुत से कारणों से जी20 शिखर सम्मेलन के खिलाफ हैं, व्यवस्था के खिलाफ हैं, अन्याय के खिलाफ हैं, चाहे जिस चीज के भी खिलाफ हैं. यह लोकतंत्र है, लोगों को उसके खिलाफ होने का हक है और उसे दिखाने का भी.

हैम्बर्ग अपने अल्टरनेटिव गुटों और संगठनों के लिए विख्यात है. लेकिन ये भी हैम्बर्ग है जहां समृद्ध इलाके ब्लांकनेसे और गरीब इलाके सेंट पाउली के लोग एक दूसरे को पसंद नहीं करते. लेकिन आम तौर पर वे एक दूसरे को बर्दाश्त करते हैं, शांति से रहने देते हैं, ज्यादातर समय. इसलिए हैम्बर्ग में रेड फ्लोरा है, अल्टरनेटिव गुटों का केंद्र और वह भी काफी समय से.

झगड़ा

इसलिए इसकी समंभावना थी कि जी20 के मौके पर विवाद हो सकता है, आखिरकार यह अल्टरनेटिव सगठनों के लिए साल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी. और वह भी तब जब कहीं जाने का कोई खर्च भी न हो, क्योंकि दुश्मन यानी जी20 खुद चलकर आपके शहर में आ रहा हो. विरोध प्रदर्शन रंगारंग, रचनात्मक और शोर वाला हो सकता है, यह बात शिखर सम्मेलन से पहले ही साफ हो गयी थी. लेकिन कुछ लोगों के लिए यह काफी नहीं था. उन्हें जलती हुई तस्वीरें चाहिए थी, झगड़ा और झड़पें चाहिए था. पुलिस यूं ही नहीं आयी थी, वाटर कैनन में पानी फिर से भरा जाना चाहिए था.

पानी की बौछारों के बीच जी20 विरोधियों का प्रदर्शन

अफसोस कि शांसेनफियर्टेल इलाके में दुकानों के साथ तोड़फाड़ हुई जहां न सिर्फ लक्जरी दुकानें हैं बल्कि एकजुटता वाली और खुद से कढ़ाई की गई पोशाकों की दुकानें भी हैं. वहां रहने वाले लोगों का हिंसा से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन उन्हें उसमें घसीट जाता है.

कानून का राज्य 

एक बात साफ है कि प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक समाज का हिस्सा है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहुमूल्य है और इसके साथ शिखर भेंट के आसपास का माहौल भी, हैम्बर्ग आये उन नेताओं के लिए, जो लोकतंत्र को गंभीरता से नहीं लेते. जर्मनी जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक है. लेकिन शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की भूमंडलीकरण और शिखर भेंट से जो भी शिकायत रही हों वे सब उपद्रवियों की हिंसा के धुंए में डूब गयी है. और उसके साथ महत्वहीनता में. राज्य को हिंसा के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी. जो पटाखे से पुलिस के हेलिकॉप्टर पर हमला करता है, उसे सजा मिलनी चाहिए. इसमें कोई संदेह नहीं रहना चाहिए. यही कानून है. और अगर पुलिस की कार्रवाई में कोई गलती थी तो उसके खिलाफ अदालत में शिकायत की जानी चाहिए. अदालत फैसला करेगी कि क्या सही था और क्या गलत. यही कानून का राज्य है.

और जब धुएं के गुबार शांत हो जायेंगे और हैम्बर्ग फिर से अपनी सुंदरता दिखायेगा, तब ब्लांकनेसे और शांसेन के लोग एक साथ बैठेंगे, अमेरिकन बर्गर के बार्बेक्यू पर या स्वीडन की फर्नीचर दुकान पर. जिंदगी तो चलती ही रहती है.

हेनरिक बोएमे