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झटके से लकवा का इलाज

१० अप्रैल २०१४

तीन साल पहले डॉक्टरों ने बताया कि उन्होंने लकवा के एक मरीज को बिजली का झटका दिलाकर उसे दोबारा पैरों पर खड़ा किया. इन्हीं डॉक्टरों ने अब और दो मरीजों का इस तरह इलाज किया है.

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तस्वीर: Fotolia/D. Ott

डॉक्टरों की नई कोशिश में सफलता से पता चलता है कि इलाज के इस तरीके का इस्तेमाल किया जा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि इलेक्ट्रिक शॉक देकर मरीज को सही करना उम्मीद तो दिलाता है लेकिन मरीज इससे पूरी तरह स्वस्थ नहीं होता. शॉक देने वाले उपकरण को जब ऑन किया जाता है तो मरीज अपने पैर उठा सकते हैं और थोड़ी देर तक खड़े हो सकते हैं. लेकिन चलने में उन्हें तब भी दिक्कत आती है और वह व्हीलचेयर की मदद से ही एक जगह से दूसरी जगह जा पाते हैं. लंदन के इंपीरियल कॉलेज में शरीर विज्ञान पढ़ा रहे पीटर एलावे कहते हैं, "कोई चमत्कारी इलाज नहीं आने वाला है. लेकिन इससे लकवा के मरीजों को जरूर थोड़ी और आजादी मिलेगी और उनकी जिंदगी बदलेगी."

ब्रिटिश पत्रिका ब्रेन में शोधकर्ताओं ने अमेरिकी राज्य ओरेगन से आए मरीज रॉब समर्स की बात की है. समर्स पर पहली बार इस तरह के इलाज का इस्तेमाल किया गया. समर्स के बाद तीन और मरीजों पर यह तरीका असरदार रहा. इन सारे मरीजों को लकवा था और गर्दन के नीचे से उनका शरीर पूरी तरह सुन्न हो चुका था. शोध पर काम कर रहीं क्लाउडिया आंगेली ने बताया कि उपकरण से इलेक्ट्रिक शॉक दिलाने पर शरीर दिमाग से छोटे और आसान सिग्नल पकड़ सकता है. इससे पहले डॉक्टरों का मानना था कि इन मरीजों के शरीर हमेशा के लिए खराब हो चुके हैं.

मरीजों को राहत

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तस्वीर: JEAN-SEBASTIEN EVRARD/AFP/Getty Images

29 साल के डस्टिन शिलकॉक्स अमेरिका के वायोमिंग से हैं. 2010 में वह एक घातक हादसे का शिकार बने और उनका शरीर सुन्न हो गया. पिछले साल उन्होंने शॉक उपकरण अपने रीढ़ की हड्डी पर लगवाई. पांच दिनों बाद वे अपने पैरों की अंगुलियां हिला पा रहे थे और फिर धीरे धीरे पैर भी काम करने लगा. शिलकॉक्स कहते हैं, "मैं बहुत ही चकित और भावुक हो गया. मेरे लिए एक नई उम्मीद सी जग गई थी." शिलकॉक्स अब रोज घर पर आधा घंटा अपने पैर हिलाने की कोशिश करते हैं. उन्हें लैब में ट्रेनिंग भी दी जाती है और कभी कभी प्रेरित होने के लिए सुपरमैन वाली टीशर्ट भी पहनते हैं. शोध में हिस्सा लेने वाले बाकी दो मरीज, टेक्सास के केंट स्टीफेनसन और कंटकी के ऐंड्रू मीस भी इलाज से बेहद खुश हैं. स्टिफेनसन का कहना है, "मैं अपने शरीर के कुछ अंग अपनी मर्जी से चला सकता हूं और इससे मेरी जिंदगी बदल गई है."

शोध में स्विट्जरलैंड के ग्रेग्वार कूर्तीन ने भी हिस्सा लिया है. उनका कहना है कि इस तरह के इलाज से अगले 10 साल में मरीजों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आ सकता है. लेकिन कुछ विषेषज्ञ कहते हैं कि इस तरह का इलाज दवाओं से ज्यादा असरदार हो सकता है. लंदन के डॉक्टर एलावे कहते हैं कि लकवा के मरीजों का ऐसे इलाज के बाद सही तरह चल पाना मुश्किल है. यह अभी देखना बाकी है कि क्या उन्हें जिंदगी भर शॉक देने वाला इंप्लांट अपनी रीढ़ की हड्डी पर लगाकर रखना होगा. शोध के लिए अमेरिकी स्वास्थ्य इंस्टीट्यूट और क्रिस्टोफर और डाना रीव फाउंडेशन ने आर्थिक मदद दी है. क्रिस्टोफर रीव हॉलीवुड के मशहूर एक्टर थे जिन्होंने कई फिल्मों में सुपरमैन का किरदान निभाया है. एक हादसे में वह बुरी तरह घायल हो गए और गर्दन के नीचे का पूरा हिस्से बेकार हो गया. इसके बाद रीव ने अपना जीवन लकवा के मरीजों की मदद में लगाया.

एमजी/एजेए (रॉयटर्स)