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झुग्गी से यूनिवर्सिटी तक

२१ नवम्बर २०१२

मंगाराय के कम्यूनिटी हाउस में बच्चे पढ़ रहे हैं. यह इमारत एक झुग्गी बस्ती में है, इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के बीचों बीच. चार और सात साल के लगभग 30 बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं.

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तस्वीर: DW

ये यहां खेल खेल में सीखते हैं. गाने गा कर और सवाल जवाब से इन्हें संगीत और सवाल जवाब जैसे खेल खेलते हैं. स्कूल के लिए इन्हें तैयार किया जा रहा है.

इंडोनेशिया में इंडोनेशियन स्ट्रीट चिल्ड्रन ऑर्गनाइजेशन आईएससीओ की मदद के बिना ऐसा सोचना भी मुमकिन नहीं होगा. बच्चों को गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, इंडोनेशियाई और कला सिखाई जाता है. बच्चों की अध्यापिका लेडी कहती हैं कि इंडोनेशिया में स्कूल जाना अनिवार्य तो है लेकिन झुग्गी में पैदा होने वाले बच्चों के पास जन्म प्रमाण पत्र अकसर नहीं होते और इनका पंजीकरण भी नहीं हुआ होता है. इसलिए स्कूल इन्हें दाखिला नहीं देते.

आईएससीओ की इमारत में केवल दो मंजिले हैं लेकिन बच्चे जिन हालात में झुग्गी में रहते हैं, उसके मुकाबले यहां काफी आराम है. लेडी कहती हैं, "घरों में एक ही कमरा है जिसमें एक साथ छह साथ लोग रहते हैं और वह भी बेहद बुरे हालात में." मंगाराय में सबका जीवन मुश्किल है. झुग्गी में रह रहे ज्यादातर लोग कूड़ा जमा करते हैं और किसी तरह रोजी रोटी कमाते हैं. बचपन से ही छोटे बच्चे ऐसे काम में लग जाते हैं."

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खेल खेल में स्कूल की तैयारीतस्वीर: DW

केवल जावा में करीब 50 लाख बच्चे झुग्गियों में पलते बढ़ते हैं. ऑस्ट्रिया के योसेफ फुख्स को इनकी हालत काफी खराब लगी. उन्होंने 13 साल पहले अपने फ्रेंच मित्र के साथ आईएससीओ की स्थापना की. संगठन के जरिए करीब 2,500 बच्चों को स्कूल जाने का मौका मिला है. संगठन अब 29 झुग्गियों में काम करता है, जकार्ता में ही नहीं, बल्कि सुराबाया और मेदान में भी.

संगठन के काम का केंद्र है कम्यूनिटी हाउस. यहां झुग्गी के बच्चे मिलते हैं और फुख्स के मुताबिक दिन भर वे यहां रहते हैं. छोटे बच्चों के लिए किंडरगार्टन है और दोपहर में बड़े बच्चों की होमवर्क में मदद की जाती है. "हफ्ते में केवल एक दिन बच्चों को घर से खाना लाना पड़ता है ताकि हमें भी पता चले कि वे अपने बच्चों के लिए खाना बनाते हैं और सब कुछ हम पर नहीं छोड़ते."

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इंडोनेशिया के गरीब बच्चों के लिए संस्था आईएससीओतस्वीर: DW

फुख्स कहते हैं कि वे झुग्गी के बच्चों में से किसी एक होनहार बच्चे को पहचानकर और उसे बढ़ावा देने की कोशिश नहीं करते. बच्चों को केवल स्कूल के लिए तैयार किया जाता है. आईएससीओ के अपने स्कूल नहीं है लेकिन वह सरकारी संस्थाओं के साथ काम करता है. फुख्स के मुताबिक उनके बच्चों में से 22 प्रतिशत हर क्लास में पहले 10 बच्चों में शामिल हैं.

आईएससीओ बच्चों के स्कूल का सारा खर्चा उठाती है और अध्यापकों को भी काम में लगाती है. स्कूल के बाद बच्चों को छोड़ नहीं दिया जाता, "हम गारंटी दे सकते हैं कि हाई स्कूल के बाद भी बच्चों को काम करने की ट्रेनिंग मिले." एक युवती ने विश्वविद्यालय तक पहुंचकर झुग्गी का नाम रोशन किया है.

लेकिन इस स्तर तक पहुंचने तक बच्चों की ध्यान से देखभाल की जाती है. क्लास के बाद बच्चे कम्यूनिटी हाउस में दोबारा जमा होते हैं और फिर देखा जाता है कि वह कितने स्वस्थ हैं और क्या उनसे पैसों के लिए काम कराया गया है. मंगाराय के बच्चों को इस बीच पता चल गया है कि संगठन से उन्हें फायदा हो रहा है. अपनी टीचर लेडी की वह हर बात ध्यान से सुनते हैं. लेडी भी कहती हैं कि बच्चे खुशी से उनके पास आते हैं.

रिपोर्टः थोमास लाट्शान/एमजी

संपादनः आभा मोंढे

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