1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

टेलीपैथी नहीं स्वांग है

६ अगस्त २०१३

दूसरों के मन की जान लेना आसान तो नहीं लेकिन हम सब रोजमर्रा में इससे रूबरू होते रहते हैं. आखिर कैसे मुमकिन हो पाता है एक इंसान का दूसरे इंसान के मन में चल रही बातों को जान लेना.

https://p.dw.com/p/19KNk
तस्वीर: vladgrin - Fotolia.com

एक इंसान दूसरे का दिमाग अगर पढ़ता है तो टेलीपैथी के जरिए नहीं बल्कि दूसरे की मानसिक अवस्था को समझते हुए. बर्लिन के विज्ञान सम्मेलन में एक शीर्ष वैज्ञानिक ने यह बताया है. दुनिया भर के मनोवैज्ञानिक, कंप्यूटर विज्ञानी और दार्शनिकों के एक विशाल नेटवर्क का नाम है कॉग्निटिव साइंस सोसायटी. बर्लिन में इस सोसायटी की सालाना बैठक में इंसानी दिमाग के रहस्यों पर चर्चा हो रही है.

नताली सेबांज इस बैठक के चार प्रमुख आयोजकों में हैं. नताली ने बताया, "हमने प्रयोग किए, जिनके दौरान लोगों को एक दूसरे से बात नहीं करने दी गई फिर भी उनके बीच बहुत अच्छा सहयोग रहा. तो क्या यह दिमाग को पढ़ना है, निश्चित ही नहीं. हमें लगता है कि इंसान इसलिए आपस में सहयोग कर पाते हैं क्योंकि वे दूसरों की स्टेप्स को इस तरह से प्लान कर सकते हैं, मानों वह उनकी खुद की हों."

अपने सहयोगी के इरादों को समझ कर हम साथ में संगीत बजा लेते हैं या फिर टीम के साथ खेल लेते हैं. ऑस्ट्रिया में जन्मीं और बुडापेस्ट की सेंट्रल यूरोपियन यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली नताली के मुताबिक, "हम अपने दिमाग में लोगों की हरकतों का खाका बनाते रहते हैं और यह अपने आप ही हो जाता है बिना इसके बारे में सोचे. जब कोई आपकी तरफ गेंद फेंकता है तो आप तैयार हो जाते हैं. आप आगे के बारे में सोच सकते हैं कि क्योंकि आप जानते हैं कि गेंद कैसे फेंकी जाती है."

University of Pittsburgh Lähmung Roboterarm
तस्वीर: Reuters

इस साल सम्मेलन का विषय है, 'कोऑपरेटिव माइन्ड्सः सोशल इंटरेक्शन एंड ग्रुप डायनामिक्स'. दुनिया भर से 1600 विशेषज्ञ बर्लिन आए हैं. कॉग्निटिव साइंस यानी संज्ञानात्मक विज्ञान आने वाले दिनों में एक ऐसा रोबोट बनाने में मददगार साबित होगा जो लोगों के मन मुताबिक चल सकेगा और सामान्य रोबोट जैसे अपने तय प्रोग्राम के दायरे में ही नहीं रहेगा. नताली ने बताया कि एक बार यह बढ़िया तरीके से समझ में आ जाए कि इंसान कैसे सोचते हैं तो अक्लमंद रोबोट बनाना संभव होगा जो समाज के लिए काफी फायदेमंद होगा. उन्होंने साफ किया, "अक्लमंद होने का मतलब इंसान जैसा होना नहीं है बल्कि ये है कि वो इंसानों की कुछ कामों में मदद कर सकते हैं."

सम्मेलन में आए कई वैज्ञानिकों ने कहा कि वो भविष्य में ऐसे रोबोट बनाने का सपना देख रहे हैं जो कमजोर और लाचार बुजुर्गों की ताकत बनेंगे उनकी मदद करेंगे. इनमें से कई खुद भी रोबोट बनाने में जुटे हैं. ऐसे रोबोट जो बड़ी आसानी से इंसानों के साथ जुड़ सकते हैं. दरअसल इंसानों के साथ अच्छी बात यह है कि वो बहुत जल्दी माहौल और अपने साथ रहने वालों के हिसाब से खुद को ढाल लेते हैं और हर छोटी बड़ी चीज उनके दिमाग में आ जाती है. रोबोट के साथ यह काम मुश्किल होता है और इसी का हल ढूंढने की कोशिश हो रही है.

एनआर/एएम (डीपीए)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी