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टॉयलेट 'स्टोर रूम' तो नहीं बन रहे

१ जनवरी २०१५

भारत सरकार पता लगाने की कोशिश कर रही है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत जिन्हें टॉयलेट मुहैया कराए गए हैं वे उसका इस्तेमाल कर भी रहे हैं या नहीं. विशेषज्ञों के मुताबिक कई लोग इन्हें स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.

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तस्वीर: SAJJAD HUSSAIN/AFP/Getty Images

भारत में टॉयलेट का अभाव एक बड़ी समस्या है. ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में बड़ी संख्या में लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं. इस समस्या से निपटने के लिए मोदी सरकार बड़ी मुहिम चला रही है. इसके तहत अक्टूबर से अब तक घरों में 5,03,142 टॉयलेट मुहैया कराए गए हैं. लेकिन जानकारों का मानना है कि खुले में शौच के आदी हो चुके कई लोगों को टॉयलेट सीट इस्तेमाल करना ज्यादा अस्वच्छ लगता है. उन्हें खुले में शौच ज्यादा साफ सुथरा विकल्प लगता है. ऐसे में सरकार ने जो टॉयलेट मुहैया कराए हैं वे सामान इकट्ठा करने की जगह के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं.

टॉयलेट का सही इस्तेमाल किया जा रहा है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए स्वच्छता निरीक्षक घर घर जाकर चेकिंग कर रहे हैं. वे हाथ में अपने मोबाइल, लैपटॉप या आईपैड लेकर जाते हैं जिससे वे परिणाम सीधे वेबसाइट पर अपलोड कर देते हैं. इससे पहले इस बात का निरीक्षण किया जा रहा था कि कहां टॉयलेट हैं और कहां नहीं. लेकिन अब यह पता करना भी एक काम है कि इनका इस्तेमाल सही तरह हो रहा है या नहीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर भारत में स्वच्छता अभियान की घोषणा की थी और 2019 तक हर घर में टॉयलेट मुहैया कराने का संकल्प लिया था. यूनीसेफ के मुताबिक 59.4 करोड़ लोग यानि भारत की लगभग आधी आबादी आज भी खुले में शौच के लिए जाती है. ग्रामीण इलाकों में स्थिति खासतौर पर खराब है. वर्ल्ड बैंक की 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक टॉयलेट के अभाव से हर साल डायरिया और कम उत्पादकता के कारण भारत पर 54 अरब डॉलर का बोझ पड़ता है.

एसएफ/ओएसजे (एएफपी)