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ट्यूनीशिया के मध्यस्थों को नोबेल पुरस्कार

महेश झा९ अक्टूबर २०१५

ट्यूनीशिया के नेशनल डायलोग क्वार्टेट को लोकतंत्र के निर्माण में उनके योगदान के लिए 2015 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. क्वार्टेट सदस्यों ने पुरस्कार को इलाके के लिए संवाद की ताकत का संदेश बताया है.

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Medaille Alfred Nobel
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Kay Nietfeld

अटकलें कई नामों पर लग रही थीं, लेकिन आखिरकार फैसला ट्यूनीशिया के डायलोग क्वार्टेट के नाम पर हुआ. ट्यूनीशिया के डायलोग क्वार्टेट को 2015 के नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया.
ट्यूनीशिया के राष्ट्रीय डायलोग क्वार्टेट को यह सम्मान 2011 की क्रांति के बाद लोकतंत्र के निर्माण के लिए दिया गया है. इस क्रांति के बाद अरब देशों में लोकतांत्रिक आंदोलनों वाले अरब वसंत की शुरुआत हुई थी. नॉर्वे की नोबेल कमिटी के अनुसार यह पुरस्कार 2011 में जासमीन क्रांति के बाद देश में बहुलवादी लोकतंत्र के निर्माण में मध्यस्थों के निर्णायक योगदान के लिए दिया गया है.

ट्यूनीशिया की मध्यस्थता टीम के सदस्यों ने नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद उसे इलाके के लिए संवाद की ताकत का संदेश बताया है. क्वार्टेट के नाम से जानी जाने वाली टीम ने, जिसमें लेबर यूनियन यूजीटीटी भी शामिल है, निरंकुश शासक जीने अल आबदीन बेन अली के पतन के बाद 2013 में देश को राजनीतिक गतिरोध से बाहर निकालने के लिए समझौता वार्ता की. यूजीटीटी के प्रमुख हुसैन अब्बासी ने कहा, "यह ट्यूनीशिया के लिए बहुत खुशी और सम्मान की बात है, लेकिन अरब दुनिया के लिए उम्मीद भी है. यह इस बात का संदेश है किसंवाद हमें सही रास्ते पर ले जा सकता है. यह पुरस्कार हमारे इलाके के लिए हथियार त्यागने और वार्ता की मेज पर बैठकर बात करने का संदेश है.“

पिछले साल पाकिस्तान की बाल अधिकार संघर्षकर्ता मलाला युसूफजई के साथ नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले भारत के कैलाश सत्यार्थी ने इस साल के विजेताओं को बधाई दी.

खुद नोबेल शांति पुरस्कार जीत चुके मोहम्मद अल बारादेई ने इस साल पुरस्कार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि संवाद, समावेशी नीति, लोकतंत्र और मानवाधिकारों का आदर एकमात्र रास्ता है.

संयुक्त राष्ट्र ने डायलोग क्वार्टेट को पुरस्कार दिए जाने का स्वागत करते हुए इसे शांति प्रयासों में लगे कार्यकर्ताओं के लिए प्रोत्साहन बताया है.

यूरोपीय संघ ने कहा है कि क्वार्टेट ने उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया को उथल पुथल से बाहर निकलने का लोकतांत्रिक रास्ता दिखाया.

इस साल नोबेल शांति पुरस्कार के लिए जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का नाम भी चर्चा में था. खासकर सितंबर के शुरू में शरणार्थियों के लिए जर्मनी की सीमा खोलने के उनके फैसले को मानवीय फैसला और शरणार्थी संकट के निबटारे की दिशा में महत्वपूर्ण कदम समझा जा रहा है. पहले भी जर्मनी के दो चांसलरों को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा चुका है.
नोबेल शांति पुरस्कार 1901 से दिया जा रहा है. दूसरे नोबेल पुरस्कारों के विपरीत यह पुरस्कार ऑस्लो में दिया जाता है. इसका आधार नोबेल पुरस्कार के लिए न्यास बनाने वाले अलफ्रेड नोबेल की वसीयत है.