डॉक्टर अगवा, मरीज बेहाल
१७ दिसम्बर २०१३खैबर पख्तून ख्वाह और बलूचिस्तान प्रांतों में इस साल 45 डॉक्टरों का अपहरण किया गया है. जातीय और प्रांतीय हिंसा झेल रहे देश को अब एक नए तरह की मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है. डॉक्टर मुश्किल और हिंसा वाले इलाकों को छोड़ कर भाग रहे हैं. दोनों ही प्रांतों में मरीज भगवान भरोसे हैं. पाकिस्तान की साढ़े 18 करोड़ की आबादी का लगभग 20 फीसदी हिस्सा इन दो राज्यों में रहता है.
प्रांतीय डॉक्टर संघ पीडीए के अध्यक्ष शाह सवर का कहना है, "वरिष्ठ डॉक्टरों के अपहरण की वजह से खैबर पख्तून ख्वाह और बलूचिस्तान के मरीजों पर बुरा असर पड़ा है." डॉक्टर आम तौर पर सुबह के वक्त सरकारी अस्पतालों में काम करते हैं और शाम में निजी क्लिनिकों में. ये हर महीने छह से 20 लाख रुपये (भारतीय मुद्रा में) कमा लेते हैं और ज्यादातर मौकों पर उन्हें फिरौती के लिए ही पकड़ा जाता है.
कहां जाएं मरीज
तीन दिसंबर को डॉक्टर अमजद तकवीम के अपहरण के बाद खैबर पख्तून ख्वाह के सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी. डॉक्टरों के संगठन पीडीए का कहना है कि इस प्रांत में इस साल अगवा किए गए वह 12वें डॉक्टर थे. इस हड़ताल की वजह से अस्पताल में काम काज नहीं हुआ, जहां हर रोज 5,000 मरीज आते हैं. यह प्रांत के सबसे बड़े अस्पतालों में है और यहां 500 विशेषज्ञ डॉक्टर हैं.
सवर का कहना है, "डॉक्टर मरीजों को परेशान नहीं करना चाहते हैं लेकिन सरकार पर दबाव बनाने का कोई दूसरा उपाय भी नहीं है." उनके मुताबिक इस राज्य में 700 विशेषज्ञ डॉक्टर हैं. लेकिन अपहरणों की घटना के बाद कम से कम 20 लोगों ने प्रांत छोड़ दिया है. पुलिस को शक है कि इन अपहरणों के पीछे तहरीके तालिबान का हाथ है. पुलिस अधिकारी अबीदुल्लाह शाह का कहना है, "डॉक्टरों के अपहरण से तालिबान सिर्फ मोटी रकम ही नहीं वसूल रहा है बल्कि लोगों को इलाज से भी दूर कर रहा है." उन्होंने प्रोफेसर मंजूर अहमद की मिसाल दी, जो कनाडा से अपने लोगों का इलाज करने पाकिस्तान आए. लेकिन उनका अपहरण कर लिया गया और करीब 60 लाख रुपये की फिरौती के बाद उन्हें छोड़ा गया. शाह ने कहा, "अगले दिन वह कनाडा के लिए रवाना हो गए."
दो ही उपाय
प्रोफेसर मूसा कलीम का कहना है कि डॉक्टरों के पास दो ही चारें हैं. या तो वे विदेश चले जाएं या निजी सुरक्षा गार्ड रखें, "ज्यादातर डॉक्टर लगातार डर में जी रहे हैं. लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान मरीजों को हो रहा है, जिन्हें वक्त पर इलाज नहीं मिल पा रहा है."
हालांकि पेशावर पुलिस प्रमुख एजाज अहमद का कहना है कि डॉक्टरों को पूरी सुरक्षा मिलेगी, "हम लोग निजी और सरकारी अस्पतालों के पास सुरक्षा बलों की तैनाती कर रहे हैं." उनका कहना है कि सरकार डॉक्टरों को हथियारों के लाइसेंस देने पर भी विचार कर रही है.
बलूचिस्तान में भी डॉक्टरों का यही हाल है, जहां पिछले साल 27 डॉक्टरों का अपहरण हुआ. उनमें से 26 का पता नहीं. करीब 30 लाख रुपये देकर एक डॉक्टर को रिहाई मिली. बलूचिस्तान में डॉक्टरों के संघ के सुल्तान तारीन कहते हैं, "उन्हें 17 सितंबर को पकड़ा गया और एक दिसंबर को रिहा किया गया. उनका परिवार बुरी हालत में है." तारीन का कहना है कि प्रांत में सिर्फ 200 स्पेशलिस्ट हैं, जिनसे एक करोड़ लोगों की देखभाल नहीं हो सकती. बलूचिस्तान एक विशाल प्रांत है, जो भूमि की लिहाज से पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है लेकिन पर्याप्त सुविधा नहीं होने की वजह से लोगों को इलाज के लिए दूर दराज जाना पड़ता है.
बंद हुआ कैंप
पेशावर में प्रोफेसर अब्दुल रहमान के मुफ्त डॉक्टरी कैंप मशहूर थे. फिर 29 जनवरी को उनका अपहरण कर लिया गया. पहले वह हर रोज 500 मरीजों को देखा करते थे. रिहाई के बाद गिनती के मरीज देखते हैं. पहले मरीजों का मुफ्त इलाज और यहां तक कि मुफ्त दवा भी मिलती थी. सब कुछ बंद हो गया है. उन्हें डर है कि शहर के दूसरे गैंग भी उन्हें निशाना बना सकते हैं. उनके साथ काम करने वाले डॉक्टर सुबहान अली ने बताया, "अब उन्होंने कैंप लगाने बंद कर दिए हैं."
एजेए/ओएसजे (आईपीएस)