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ताकि थम सकें सुंदरबन में बाघों के हमले

२७ अगस्त २०१४

पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से लगे सुंदरबन इलाके में रहने वाले रॉयल बंगाल टाइगरों और इंसानों के बीच संघर्ष की घटनाएं हाल के वर्षों में तेज हुई हैं. अब इन पर अंकुश लगाने के लिए वन विभाग ने एक नई पहल की है.

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तस्वीर: picture-alliance/AP

वन विभाग ने इसके तहत इलाके में मिट्टी के चूल्हों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने की योजना बनाई है. इन चूल्हों के लिए जलावन की लकड़ियां बटोरते समय ही ज्यादातर लोग बाघों के हमले का शिकार होते हैं. इसके अलावा भी कुछ और उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन सुंदरबन के मछुआरे इन प्रस्तावों का विरोध कर रहे हैं.

नए नियम

पिछले एक सप्ताह के दौरान सुंदरबन इलाके में बाघ के हमले में एक महिला समेत दो लोगों की मौत हो चुकी है. यह लोग अपनी नावों से उतर कर जलावन की लकड़ी जुटा रहे थे. सुंदरबन टाइगर रिजर्व के फील्ड निदेशक सौमित्र दासगुप्ता कहते हैं, "बाघों के ज्यादातर हमले उस वक्त होते हैं जब मछुआरे अपनी नावों से उतर कर लकड़ी बटोरने के लिए जंगल के भीतर जाते हैं." उन्होंने कहा कि इलाके के लोग अगर मिट्टी के चूल्हे की जगह खाना पकाने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल करें तो ऐसी घटनाओं पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है.

Sunderbans
तस्वीर: Fotolia/lamio

वन विभाग ने जंगल में मिट्टी के चूल्हे समेत कई चीजों को ले जाने पर पाबंदी लगा दी है. इन नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने का भी प्रावधान रखा गया है. पहली बार ऐसा करने पर पांच सौ रुपए का जुर्माना देना होगा जबकि दूसरी और तीसरी बार नियमों के उल्लंघन पर क्रमशः एक हजार और ढाई हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है. विभाग ने हालांकि मछुआरों को आत्मरक्षा के लिए अपने साथ कुल्हाड़ी ले जाने की छूट दी है.

राज्य के मुख्य वन्यजीव संरक्षक उज्जवल भट्टाचार्य कहते हैं, "मछुआरों को नाव के लाइसेंस जारी करने का मतलब यह नहीं है कि वह जंगल के भीतर जाकर जलावन की लकड़ियां जुटा सकते हैं." वह कहते हैं कि मछुआरों को लकड़ी बटोरने से रोकने के लिए ही उक्त नियमों को सख्त बनाते हुए जुर्माने का प्रावधान रखा गया है.

विरोध

सुंदरबन के मछुआरे वन विभाग के नए नियमों का विरोध कर रहे हैं. मछुआरों के संगठन सुंदरबन जनश्रमजीवी मंच के सचिव पवित्र मंडल कहते हैं, "वन विभाग के नए नियम अव्यावहारिक हैं. ज्यादातर मछुआरों ने कभी गैस चूल्हा या एलपीजी सिलेंडर नहीं देखा है. इसलिए उनका इस्तेमाल करना तो एक सपना ही है." वह कहते हैं कि मछुआरे एलपीजी जैसी महंगी प्रणाली का खर्च नहीं उठा सकते. लेकिन फील्ड निदेशक दासगुप्ता कहते हैं कि वन विभाग एक गैर-सरकारी संगठन के साथ मिलकर मछुआरों को एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराने की दिशा में प्रयास कर रहा है.

पवित्र मंडल का दावा है कि वन विभाग ने इन नियमों पर सख्ती से अमल शुरू कर दिया है और मछुआरों से जुर्माना वसूलने का काम शुरू हो गया है. उनके संगठन ने वन विभाग से नए नियमों को वापस लेने की मांग की है. मछली पकड़ने के लिए नदी और समुद्र में जाने वाले मछुआरे पहले वन विभाग के डीप ट्यूबवेलों से पीने का पानी लेते थे. एक मछुआरे वनबीबी तरफदार ने आरोप लगाया है, "विभाग ने धमकी दी है कि अगर हमने नए नियमों का उल्लंघन किया तो हमें पानी नहीं लेने दिया जाएगा." मछुआरों का आरोप है कि कुल्हाड़ी साथ रखने की वजह से भी उनको जुर्माना भरना पड़ रहा है जबकि विभाग ने इसकी छूट दी है.

बढ़ते हमले

इलाके में बाघों के हमले लगातार बढ़ रहे हैं. पिछले साल जंगल में जाने वाले छह लोग इन हमलों के शिकार हुए थे. इस साल अब तक यह तादाद नौ तक पहुंच गई है. लेकिन गैर-सरकारी तौर पर ऐसे हमलों में मरने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है. वन विभाग का कहना है कि बाघों के बढ़ते हमलों की वजह से बदले की भावना में गांव वाले भी उन पर जवाबी हमले कर रहे हैं. वन विभाग पहले मछुआरों से जलावन की लकड़ी लेने जाने पर हर बार 12 रुपए की चुंगी वसूलता था, लेकिन नए नियमों के लागू होने के बाद इसे बंद कर दिया गया है.

वन्यजीव विशेषज्ञों ने विभाग की इस पहल की सराहना की है. लेकिन उनका कहना है कि जलावन की लकड़ी पर अंकुश लगाने से पहले मछुआरों के लिए खाना पकाने की वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए. एक वन्यजीव विशेषज्ञ दिनेश बर्मन कहते हैं, "इलाके के मछुआरों में जागरुकता अभियान चलाया जाना चाहिए."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा